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Jharkhand Assembly Election 2019 : झामुमो के लिए अब चुनौती बना बहरागोड़ा सीट बचाना, इस तरह बदल गए हालात Jamshedpur News

Jharkhand Assembly Election 2019. राजनीति के इस अनूठे खेल को देखकर जनता हैरान है और कार्यकर्ता परेशान। घटनाक्रम से अगर कोई दल सबसे अधिक अचंभ‍ित है तो वह झामुमो।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Fri, 25 Oct 2019 11:23 AM (IST)Updated: Fri, 25 Oct 2019 11:48 AM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019 : झामुमो के लिए अब चुनौती बना बहरागोड़ा सीट बचाना, इस तरह बदल गए हालात Jamshedpur News

चाकुलिया (पूर्वी स‍िंंहभूम), पंकज मिश्रा।  कहा जाता है कि राजनीति में कोई स्थाई मित्र होता है ना ही कोई शत्रु। राजनीति तो बस संभावनाओं का खेल है। यहां सब कुछ परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इसकी गवाही बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र से बेहतर भला और कौन दे सकता है।

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पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान एक दूसरे के कट्टर विरोधी रहे तथा अलग-अलग दलों से चुनाव लडऩे वाले तीनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वी आज एक ही दल में नजर आ रहे हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा से चुनाव लडऩे और जीतने वाले कुणाल षड़ंगी, भाजपा से चुनाव लड़ कर दूसरे स्थान पर रहे पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ दिनेशानंद गोस्वामी और तीसरे नंबर पर रहे झारखंड विकास मोर्चा के उम्मीदवार समीर महंती सभी आज भाजपा का झंडा थामे हुए हैं। राजनीति के इस अनूठे खेल को देखकर जनता हैरान है और कार्यकर्ता परेशान। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से अगर कोई दल सबसे अधिक ङ्क्षचतित है तो वह झारखंड मुक्ति मोर्चा है। पार्टी के समक्ष उस बहरागोड़ा सीट को बचाने की कठिन चुनौती उत्पन्न हो गई है जिस पर विगत एक दशक से उसका कब्जा रहा है।

लाल दुर्ग की रही है पहचान

 विद्युत वरण महतो।

विदित हो कि वर्ष 1980 से 2000 तक बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र लाल दुर्ग के नाम से जाना जाता था। यहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के देवीपद उपाध्याय लगातार चार बार चुनाव जीतकर 20 वर्षों तक विधायक रहे थे। वर्ष 2000 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे डॉ दिनेश षड़ंगी ने लाल दुर्ग को ध्वस्त कर भगवा झंडा लहराया और विधायक बने। उन्होंने करीब 1300 मतों से झामुमो प्रत्याशी विद्युत वरण महतो को हराया था। इसके बाद झारखंड अलग राज्य बना और डॉ षाडंगी प्रदेश के पहले स्वास्थ्य मंत्री भी बने। वर्ष 2005 में संपन्न चुनाव में डॉ षड़ंगी एकबार फिर झामुमो उम्मीदवार विद्युत वरण महतो को करीब 3300 मतों से पटखनी देते हुए दोबारा विधायक बने। लेकिन विद्युत वरण महतो ने मैदान नहीं छोड़ा। लगातार जनता के बीच बने रहे। इसका फल उन्हें वर्ष 2009 के आखिर में हुए चुनाव में मिला। व‍िद्युुत डॉ षाड़ंगी को करीब 17000 मतों के भारी अंतर से हराया और पहली बार झारखंड मुक्ति मोर्चा का हरा झंडा बहरागोड़ा में लहरा दिया। इसके बाद यहां झामुमो का संगठन मजबूत होता चला गया।

तब राजन‍ीत‍ि में कूद पड़े कुणाल

कुणाल षाडंगी।

लेकिन वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विद्युत वरण महतो ने झामुमो छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। पार्टी ने उन्हें जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया। विद्युत वरण महतो सांसद बन गए। इस दौरान डॉ षाड़ंगी के युवा एवं तेज तर्रार पुत्र कुणाल षाडंगी सक्रिय राजनीति में कूद पड़े। माना जाता है कि उनकी पहली पसंद भाजपा ही थी जिसमें शामिल होकर वह विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते थे। लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों में टिकट सुनिश्चित नहीं होने के कारण उन्होंने चुनाव से ठीक पहले झामुमो का झंडा थाम लिया। झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन से निजी रिश्ते होने के कारण उन्हें टिकट मिलने में कोई परेशानी नहीं हुई। परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि, कुणाल की मेहनत, उनके पिता डॉ षाड़ंगी का क्षेत्र में प्रभाव तथा झामुमो के परंपरागत जनाधार, सबने मिलकर कमाल दिखाया और पहली बार चुनाव लड़ रहे कुणाल षाडंगी विधानसभा पहुंच गए। उन्होंने भाजपा प्रत्याशी डॉ गोस्वामी को करीब 15,000 मतों से हराया और दूसरी बार बहरागोड़ा में झामुमो का परचम लहरा दिया।

भाजपा के प्रत‍ि बना रहा सॉफ्ट कार्नर

झामुमो विधायक बनने के बाद कुणाल ने पार्टी के भीतर एवं बाहर तेजी से अपनी छवि का विस्तार किया। पार्टी ने उनकी योग्यता को देखते हुए विधायक दल के सचेतक एवं केंद्रीय प्रवक्ता तो बनाया ही, संगठन की कोर कमेटी में भी जगह दी। लेकिन कहीं ना कहीं कुणाल के मन में भाजपा के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर बना हुआ था। शायद यही कारण था कि उन्होंने क्षेत्र में पार्टी कार्यालय खोलने के बजाय विधायक कार्यालय खोलना पसंद किया। पार्टी के साथ उनकी दूरी पहली बार खुलकर संभवत: तब सामने आई जब जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने को लेकर उन्होंने पार्टी लाइन के विपरीत बयान दिया। केंद्र सरकार के निर्णय का समर्थन किया। इसके बाद से ही क्षेत्र में उनके भाजपा में जाने की अटकलें तेज हो गईं, जिस पर आखिरकार 23 अक्टूबर को विराम लगा।

गोस्वामी और समीर पर लगी सबकी टकटकी

समीर महंती। 

बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र में तेजी से बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में अब सबकी नजर भाजपा से टिकट के दोनों प्रमुख दावेदारों डॉ दिनेशानंद गोस्वामी एवं समीर महंती पर टिकी हुई है। गोस्वामी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। संगठन के बड़े नेताओं से उनके अच्छे संपर्क एवं रिश्ते हैं। लिहाजा उनका अगला कदम क्या होगा, यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। गोस्‍‍‍‍‍‍वामी नहीं खोल रहे पत्ते

डॉ दिनेशानंद गोस्वामी ।

हालांक‍ि इस मसले पर अभी न तो कुछ बोल रहे हैं और ना ही अपना पत्ता खोल रहे हैं। लेकिन माना जा रहा है कि पार्टी के भीतर रह कर अपनी दावेदारी को कायम रखेंगे। बहरागोड़ा विधानसभा सीट से भाजपा से टिकट के दूसरे दावेदार समीर महंती का झामुमो में जाना तय माना जा रहा है। कुणाल के झामुमो छोडऩे से समीर के लिए वहां टिकट की राह आसान हो गई है। समीर महंती ने अपना राजनीतिक सफर झामुमो से ही शुरू किया था। टिकट नहीं मिलने के कारण वे दो बार आजसू और एक बार झारखंड विकास मोर्चा से चुनाव लड़े। इसबार भी चुनाव लडऩे की घोषणा उन्होंने कर रखी है। हालांकि समीर झामुमो का दामन कब थामेंगे इस पर अभी सस्पेंस बना हुआ है। 


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