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ओलचिकी झारखंड में तिरस्कृत पश्चिम बंगाल-ओडिशा में समृद्ध, जमशेदपुर के थे लिपि के जनक

ओलचिकी लिपि झारखंड की बजाय पश्चिम बंगाल और ओडि़शा में काफी समृद्ध है जबकि ओलचिकी लिपि के जनक झारखंड के जमशेदपुर में ही रहते थे।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Fri, 02 Aug 2019 01:10 PM (IST)Updated: Fri, 02 Aug 2019 01:10 PM (IST)
ओलचिकी झारखंड में तिरस्कृत पश्चिम बंगाल-ओडिशा में समृद्ध, जमशेदपुर के थे लिपि के जनक
ओलचिकी झारखंड में तिरस्कृत पश्चिम बंगाल-ओडिशा में समृद्ध, जमशेदपुर के थे लिपि के जनक

जमशेदपुर, दिलीप कुमार। संताली लिपि ओलचिकी का विकास झारखंड की तुलना में पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में तेजी से हो रहा है। पश्चिम बंगाल में प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय तक ओलचिकी में पठन-पाठन हो रहा है, जबकि अपने झारखंड में ऐसा नहीं है। ओलचिकी के अधिष्ठाता पंडित रघुनाथ मुर्मू ओडिशा के मूल निवासी थे, लेकिन उनका कर्मक्षेत्र झारखंड रहा है। जमशेदपुर के करनडीह में उनका मकान भी है।

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पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में आने वाले झारखंड में संतालियों को अब तक उनकी मातृभाषा में शिक्षा देने की कोई सरकारी व्यवस्था नहीं की गई है। यहां संताली ओलचिकी से बीएड की शिक्षा लेने वाले और नेट पास युवा बड़ी संख्या में है। वैसे ओडिशा सरकार ने अब उत्तर ओडिशा क्षेत्र के विद्यालयों में ओलचिकी की पढ़ाई शुरू कर दी है। यहां प्राथमिक स्तर पर शिक्षक भी बहाल किया गया है। पश्चिम बंगाल में संतालियों की संख्या झारखंड से कम है। इसके बावजूद राज्य सरकार ने उनकी बात सुनी और उनके मातृभाषा में उन्हें शिक्षा देने की समुचित व्यवस्था की।

पांच राज्यों में नियम एक जैसे

तिलका हूल लीडरशिप के तत्वावधान में जमशेदपुर में आयोजित ट्राइबल लीडरशिप कार्यक्रम में झारखंड समेत ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार और असम के आए युवाओं ने अपने क्षेत्र में संताली लिपि ओलचिकी की स्थिति के बारे में बताया। इसके साथ ही युवाओं ने पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था व धार्मिक रीति-रिवाजों की जानकारी दी। पांचों राज्यों में संतालियों की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था, रीति-रिवाज और अन्य नीति नियम लगभग एक जैसे हैं, लेकिन मातृभाषा में शिक्षा की दशा पांचों राज्यों में अलग-अलग है। इनमें सबसे अधिक समृद्ध पश्चिम बंगाल है। बिहार और असम में भी संताली ओलचिकी की पढ़ाई नहीं होती। असम के कोकड़ाझार से आए युवक दुर्गा मुर्मू ने बताया कि वहां संतालियों को अनुसूचित जनजाति की सूची में न रखकर अति पिछड़ा वर्ग की सूची में रखा गया है।

बंगाल में द्वितीय राजभाषा का दर्जा 

 पश्चिम बंगाल सरकार ने संताली को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया है। बंगाल में पांचवी अनुसूची नहीं है, बावजूद इसके यहां संताली लिपि ओलचिकी में प्राथमिक स्तर से विश्वविद्यालय स्तर तक शिक्षा की व्यवस्था है। राज्य में अलग से संताली स्कूल भी हैं।

-मार्शल हांसदा, विज्ञान में स्नातकोत्तर के छात्र सह ओलचिकी के अतिथि शिक्षक

इतिहास को संजोना जरूरी

अपनी मातृभाषा में शिक्षा हासिल करने के मामले में पश्चिम बंगाल के संताली सबसे समृद्ध हैं। सरकार ने सभी आवश्यक सुविधा मुहैया कराई है। अब जरूरत है अपने पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने की। अपने इतिहास को कैसे संरक्षित कर रखा जाए इसके लिए क्षेत्र में लोगों के बीच जाकर बात की जाएगी।

-संजी कुमारी मुर्मू, सामाजिक कार्यकर्ता, वर्धमान, पश्चिम बंगाल

अभियान चलाने की तैयारी

पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के क्षेत्र में पश्चिम बंगाल के संताली झारखंड से पिछड़े हैं। युवाओं की टोली अब बंगाल में पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को लेकर जागृति अभियान चलाएंगे। इसके साथ ही राज्य में ओलचिकी की पढ़ाई प्राथमिक स्तर से विश्वविद्यालय स्तर पर शुरू हो इसके लिए अभियान चलाया जाएगा।

-सुकुमार सोरेन, संयोजक, तिलका हूल लीडरशिप

आदिवासियों को जोड़ने पर जोर

युवाओं को संताल समाज की परंपरा, रूढ़ी व स्वशासन व्यवस्था को जानना बेहद जरूरी है। पूर्वी सिंहभम में यह व्यवस्था पूरी तरह समृद्ध है। जरूरत है इससे ज्यादा से ज्यादा आदिवासी युवाओं को जोड़ने की। माझी-परगना, जोगमाझी, नायके के बिना संताल गांवों में एक भी काम नहीं हो सकता।

-भुगलू सोरेन, माझी बाबा, सरजामदा (बोकोम टोला)

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