बाग्लादेश से झारखंड की कला-संस्कृति बहुत समृद्ध
बांग्लादेश की अपेक्षा भारत और खासकर झारखंड की कला-संस्कृति बेहद समृद्ध है। यहां के लोगों के अपनत्व की परंपरा बेहद खास है।
जासं, जमशेदपुर : बांग्लादेश की अपेक्षा भारत और खासकर झारखंड की कला-संस्कृति बेहद समृद्ध है। यहां के लोगों के अपनत्व की परंपरा बेहद खास है। यह कहना है बांग्लादेश के दिनेशपुर से आए माणिक सोरेन का। माणिक पहली बार टाटा स्टील द्वारा आयोजित छठे जनजातीय सम्मेलन संवाद में शामिल होने के लिए जमशेदपुर आए हैं।
शनिवार को सोनारी स्थित ट्राइबल कल्चर सेंटर में दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में माणिक ने कहा कि बांग्लादेश में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय हैं। इनमें सोरेन, उरांव, कोल, मुंडा, मालो, पहाड़ी, सिंह, तुरी और कोंडा समुदाय की आबादी है। हमारे पूर्वज यहीं की धरती पर जन्मे थे। वर्ष 1855 में जब हूल दिवस हुआ था तो हमारे पूर्वज भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के सीमावर्ती जिले में बस गए। हमारी और झारखंडवासियों की परंपरा, संस्कृति, भाषा, खेती की पद्धति लगभग एक ही है।
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खुशनसीब हैं झारखंड के लोग
माणिक ने कहा कि यहां के लोगों को खुशनसीब मानता हूं। जिनके लिए सरकार और टाटा स्टील इतना सोचती है। माणिक के साथ स्टीफन सोरेन, मिखाइल सोरेन, सुहासिनी हांसदा और सावित्री हेम्ब्रम जमशेदपुर पहुंचे हैं। वे बताते हैं कि हम आज भी जल, जंगल और जमीन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सरकार ने हमारी 1842 एकड़ जमीन को कब्जा कर दूसरी कंपनी को लीज पर दे दिया। जब हमने संघर्ष किया तो तीन आंदोलनकारी भी मारे गए। हमें वहां हमेशा न्याय के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
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भारत की संस्कृति लाजवाब : एंड्रयू फ्लेन
आस्ट्रेलिया से आए एंड्रयू फ्लेन भारत में दूसरी बार और झारखंड की धरती जमशेदपुर में पहली बार आए हैं। एंड्रयू का कहना है कि वहां भी भारतीय सहित सूडान, वियतनाम, चीनी, फिलिपिंस, इंडोनेशिया के मूल निवासी रहते हैं। उनके यहां भी अलग-अलग कला और संस्कृति है लेकिन भारत की कलरफुल संस्कृति है। यह लाजवाब है। यहां की पेंटिंग, परिधान, मसालेदार खाना और म्युजिक शानदार है। मैं यहां आकर बेहद खुश हूं और खुद को रॉक स्टार समझ रहा हूं क्योंकि सुबह से मैं 100 से ज्यादा लोगों की सेल्फी का हिस्सा बन चुका है। एंड्रयू पिछले पांच वषरें तक इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल के साथ काम कर चुके हैं और पिछले दस माह से रेड क्रॉस के साथ काम कर रहे हैं।
फोटो : 16 जेएमडी 06 एनआइ
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भारत में महिलाओं को सम्मान, युगाडा में नहीं
युगांडा से एसख्लोम, स्टेफना, ईक समुदाय से जैकोफ लोचुन आए हैं। उन्होंने जब अपनी संघर्ष की कहानी बताई तो ट्राइबल कल्चर सेंटर में विभिन्न समुदाय से आए प्रतिनिधि भी चौंक गए। एसख्लोम बताते हैं कि भारत में महिलाओं को सम्मान दिया जाता है लेकिन युगांडा में महिलाओं को बेहद हीन भावना से देखा जाता है। इसलिए एक उम्र के बाद महिलाओं के जननांग को क्षति पहुंचाकर नष्ट कर दिया जाता है। पिछले 15 वर्षो के संघर्ष के बाद युगांडा की सरकार ने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार के खिलाफ कानून बनाया। जैकोफ बताते हैं कि ईक समुदाय की संख्या मात्र 6725 ही है। हम अल्पसंख्यक हैं और उन्हें अपनी कला, संस्कृति, सभ्यता को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। मुख्यत: पहाड़ों में निवास करते हैं। हमारी अपनी सीमा है। इसके बावजूद सूडान व केन्या की कुछ जनजाति हम पर अक्सर हमला करते हैं। उनके लोगों का अपहरण कर उनकी हत्या करते हैं। हमें अपने वजूद को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। बच्चों की शिक्षा अब भी बड़ी चुनौती है। सामाजिक कार्यो की कमी है। इसलिए हमने युवाओं का संगठन बनाया। उन्हें रोजगार से जोडा। इससे होने वाली आय से अब बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। एसख्लोमा का कहना है कि भारत में बहुत शांति है और यहां लोगों को अपना जीवन जीने का, अपनी बात बोलने का संवैधानिक अधिकार है लेकिन हमारे पास कुछ नहीं है।
फोटो : 16 जेएमडी 04 एनआइ