Move to Jagran APP

9 देश, 23 राज्यों के 137 जनजातीय समुदाय करेंगे संवाद

जमशेदपुर में अंतरराष्ट्रीय जनजातीय सम्मेलन संवाद का शुभारंभ हो गया। पांच दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में 137 जनजातीय समुदाय के बीच संवाद होगा।

By Edited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 08:00 AM (IST)Updated: Fri, 16 Nov 2018 11:32 AM (IST)
9 देश, 23 राज्यों के 137 जनजातीय समुदाय करेंगे संवाद
9 देश, 23 राज्यों के 137 जनजातीय समुदाय करेंगे संवाद

जमशेदपुर, जासं।  जमशेदपुर में  अंतरराष्ट्रीय जनजातीय सम्मेलन 'संवाद' का शुभारंभ हो गया। पांच दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में 137 जनजातीय समुदाय के बीच संवाद होगा। इसमें नौ देशों व 23 राज्यों के आदिवासियों के प्रतिनिधि शिरकत कर रहे हैं। सभी आदिवासियों में आए सामाजिक बदलाव पर चर्चा करेंगे। इसका आयोजन टाटा स्टील कर रही है।

loksabha election banner

इस कार्यक्रम में आदिम जनजातियों की संस्कृति, सभ्यता, उनकी भाषा, इलाज की पद्धति, व्यंजन सहित रहन-सहन व पहनावे से भी परिचित होने का लोगों को मौका मिलेगा। आयोजन का उद्देश्य, देश में खत्म होते आदिम जनजातियों की समस्याओं को समझते हुए उनकी कला-संस्कृति को बचाए रखने के लिए मंच प्रदान करना है।

जनजातीय समारोह में 23 राज्यों से 101 वैद्य आ रहे हैं, जो गोपाल मैदान में अपने स्टॉल लगाएंगे और पारंपरिक तरीके से इलाज करेंगे। इसके साथ ही शहरवासियों को विभिन्न बीमारियों पर विशेषज्ञ राय भी देंगे। ट्राइबल कल्चर सेंटर में 16 से 19 नवंबर के बीच हर सुबह संस्कृति व पहचान, वन और वनाधिकार, पारंपरिक गर्वनेंस व विवादों के बीच शांति पर परिचर्चा भी होगी।

 101 नगाड़ों की थाप के बीच बिरसा को श्रद्धांजलि

गोपाल मैदान में गोलाकार मंच पर करीने से सजे 101 नगाड़ों की थाप के बीच गुरुवार की शाम भगवान बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि दी गई। इसके साथ ही पांच दिनों तक चलने वाले 137 जनजातीय समुदाय के बीच संवाद की शुरुआत हो गई।

पारंपरिक तरीके से हुआ आगाज

संवाद का आगाज पूरी तरह से आदिवासी परंपराओं के अनुसार हुआ। पीटर ब्लूहॉफ, संजीव पॉल, बैजू मुर्मू, दिगंबर हांसदा, पिट्रिशा मुखीम, निता रुवा कुरी, उषा मांडवी, जनकम्मा, केशव मति सहित विभिन्न आदिवासी समुदायों से आए अतिथियों को पहले आदिवासी साफा (पगड़ी) पहनाकर सम्मानित किया गया। इसके बाद इन्हें खुशहाली का प्रतीक जौ दिया गया। जिसका अनावरण कर धार दिशोम परगना (आदिवासी स्वशासन की इकाई के प्रमुख) बैजू मुर्मू की उद्घोषणा के साथ संवाद का आगाज हुआ। इसके बाद जमशेदपुर के उरांव, भूमिज, चेरो, हो, खेरवार, मुंडा, पहाड़िया व संताल समाज के द्वारा पारंपरिक गीत व नृत्य से अतिथि का स्वागत किया गया।

आदिवासी रंग में रंगा गोपाल मैदान

गुरुवार की शाम बिष्टूपुर का गोपाल मैदान पूरी तरह से आदिवासी रंग में सराबोर दिखा। यहां देश-विदेश से आए आदिवासी कलाकार अपने परिधान में दिखे। मैदान के बीच में गोलाकार मंच, जो चारो ओर से दुधिया रोशनी से चमक रहा है। वहीं, मंच के दोनो ओर मचान बना हुआ है जहां बैठकर कार्यक्रम का लुत्फ उठाने का स्थान बनाया गया है। वहीं, मैदान के सभी किनारों पर वैद्य, हैंडीक्राफ्ट व आदिवासी व्यंजनों के स्टॉल इसे मेले का रूप दे रहे हैं। जबकि मैदान के द्वार के सामने ही भगवान बिरसा की प्रतिमा इसे झारखंड की पहचान को दर्शा रही है।  थिरकने से अतिथि भी खुद को रोक नहीं पाए

101 नगाड़ों की थाप की धुन इतनी मनमोहक रही कि टाटा स्टील के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर पीटर ब्लूहोफ, रुचि नरेंद्रन, श्रीमंती सेन, वाइस प्रेसिडेंट संजीव पॉल, केपीओ ऑपरेशन के वाइस प्रेसिडेंट राजीव कुमार, इंटक के राष्ट्रीय सचिव राकेश्वर पांडेय सहित देश-विदेश से आए कलाकार खुद को झूमने से रोक नहीं पाए। इसमें समां बांधा साउथ अफ्रीका से आए दो कलाकार ने। पारंपरिक परिधान में इन्होंने सांबा डांस की तरह पैरों को थाप के नृत्य कर सबका ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब रहीं।

लोग जान सकेंगे आदिम जनजातियों की संस्कृति

पांच दिन तक चलने वाले इस कार्यक्रम में आदिम जनजातियों की संस्कृति, सभ्यता, उनकी भाषा, इलाज की पद्धति, व्यंजन सहित रहन-सहन व पहनावे से भी देश-दुनिया को परिचित कराना है। आयोजन का उद्देश्य, देश में खत्म होते आदिम जनजातियों की समस्याओं को समझते हुए उनकी कला-संस्कृति को बचाए रखने के लिए मंच प्रदान करना है।

वैद्य करेंगे पारंपरिक इलाज

जनजातीय समारोह में 23 राज्यों से 101 वैद्य शामिल हुए हैं। इसके लिए गोपाल मैदान में 45 स्टॉल लगाए गए हैं। हर राज्य से आए वैद्य अलग-अलग बीमारियों के लिए साथ में पारंपरिक दवाएं भी लेकर आएं हैं।

हर तरह की कैंसर की दवा भी उपलब्ध

मेघालय से डनवरम लीज अपनी टीम के साथ आए हैं, जो ब्लड कैंसर, मुंह, पेट व गले के कैंसर की दवा बेच रहे हैं। 375 मिलीमीटर की एक बोतल की दवा की कीमत तीन से पांच हजार रुपये है। डनवरम बताते हैं कि उनकी दवा पूरी तरह से आयुर्वेद से बनी है। विधि व औषधीय बताने से परहेज करते हुए उन्होंने सिर्फ इतना बताया कि इसमें मुईसाव व अदरक के पेड़ से इस दवा को तैयार किया है, जो प्रारंभिक से लेकर तीसरे स्टेज तक के कैंसर को ठीक कर सकता है। डनवरम के औषधीय टीम को सिडबी और मेघालय सरकार से एक्सिलेंस सर्विस अवार्ड से नवाज चुकी है।

हैंडीक्राफ्ट को लाइव देखने का मौका

 इस बार शहरवासियों को हैंडीक्राफ्ट बनते देखने का मौका मिलेगा। गोपाल मैदान में 20 राज्यों से आए कलाकारों द्वारा 75 स्टॉल लगाए जा रहे हैं। इनमें से 10 स्टॉल में लद्दाख के पहाड़ी उत्पाद, नागालैंड, मिजोरम, नागा देवरा व झारखंड के उरांव पेंटिंग को बनते देख पाएंगे।

इन देशों से आएं हैं कलाकार व वैद्य

साउथ अफ्रीका, युगांडा, कैमरुन, मैक्सिको, न्यूजीलैंड, कीनिया, इंडोनेशिया, श्रीलंका, जाम्बिया, म्यंनमार व लोआस।

इन राज्यों से आएं हैं आदिम जनजातीय समुदाय

-झारखंड : भूमिज, चेरो, हो, खेरवार, मुंडा, पहाड़िया व संथाल।

-छत्तीसगढ़ : आहिर, डंडमी मडिया, धुर्वा, गोघूल मडिया, मेहरा, मानिकपुरी, मुडिया व राजा मुडिया।

-मध्य प्रदेश : बरेला, भरिया व परधान।

-असम : रभा।

-मणिपुर : मरम, वार।

-हिमाचल प्रदेश : किन्नौरी व स्वरांगल।

-सिक्किम : लापचा।

-पश्चिम बंगाल : खरिया व सरना उरांव।

-महाराष्ट्र : ठाकुर, भील।

-तमिलनाडु : मुल्लुकुरुम्बा।

-केरला : कणी।

-तेलंगाना : परधान।

-लद्दाख : लद्दाखी।

-अरुणाचल प्रदेश : मिश्मी।

-कर्नाटक : कुदिया।

पूरी दुनिया को जोड़ने की अच्छी पहल 

कैमरून से आए फाई फमोनियन गू एडवर्ड ने टाटा स्टील की तारीफ करते हुए कहा कि यह अच्छी पहल है कि पूरी दुनिया को कला-संस्कृति द्वारा एक साथ जोड़ा जाए। वे बताते हैं कि केवल एशिया ही नहीं पूरे विश्व में कहीं भी इस तरह के आयोजन नहीं होते। किसी भी देश या राज्य की 100 वर्षो पुरानी आदिवासी कला-संस्कृति को बचाने और उन्हें मंच देने के लिए यह बेहतरीन पहल है। फाई पेशे से वैद्य हैं और पिछले 64 वर्षो से इस कार्य में लगे हुए हैं।

साउथ अफ्रीका में भी नहीं होता ऐसा आयोजन

साउथ अफ्रीका से आए डॉ. डीडीडी एहालवाना मसेको और जनेले सिथोले के साथ पांच सदस्यीय टीम पहली बार संवाद में शामिल होने शहर आए हुए हैं। जनेले बताती हैं कि संवाद जैसे आयोजन तो साउथ अफ्रीका में भी नहीं होते। जनेले पिछले 30 वर्षो से आयुर्वेद और अध्यात्मवादी चिकित्सा पर शोध कर रही हैं। वे बताती हैं कि आदिवासी सभ्यता और परंपरा को बचाने के लिए इस तरह का आयोजन बेहद जरूरी हैं।

भारतीय संस्कृति आकर्षक, सहेजकर रखने की जरुरत

नमन चांपिया से आए नमन और अभिजय पहली बार शहर पहुंचे हैं। नगाड़ों की थाप पर ये भी खूब थिरके। मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस में नमन पिछले दो वर्षो से भारतीय संस्कृति का अध्ययन कर रहे हैं और टूटी-फूटी ¨हदी भी बोल लेते हैं। नमन कहते हैं भारतीय संस्कृति, कला, व्यंजन और साहित्य बेहद आकर्षक और कलर फूल है। इसे सहेज कर रखने की जरूरत है। नगाड़ों की थाप हमें हमारे घर की याद दिला रहा है। चांपिया में नमन खुद सोशल साइंस के शिक्षक हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.