ट्रेनों के निजीकरण से रेलकर्मियों की नौकरी पर आफत
साढ़े बारह लाख रेलकर्मियों में से साढ़े तीन लाख रेलकर्मियों को दो वर्ष के अंदर कम करने का टारगेट रेलवे ने लिया है।
गुरदीप राज, जमशेदपुर : रेलवे अब व्यावसायिक नजरिए से ट्रेनों के परिचालन सहित स्टेशनों को व्यवस्थित कर रही है, जिसके कारण रेलवे अब निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। जिसके तहत दक्षिण पूर्व रेलवे में कार्यरत साढ़े बारह लाख रेलकर्मियों में से साढ़े तीन लाख रेलकर्मियों को दो वर्ष के अंदर कम करने का टारगेट रेलवे ने लिया है। यानी दो वर्षो में करीब नौ लाख रेलकर्मी ही दक्षिण पूर्व रेलवे में कार्य करेंगे। इतना ही नहीं जैसे-जैसे निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा रेलकर्मी और कम होते रहेंगे। रेलवे ने कुल पदों का 50 प्रतिशत सरेंडर करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर अब रेलकर्मियों की नौकरी पर आफत आने वाली है, अब रेलकर्मियों के आश्रितों को नौकरी भी रेलवे में नहीं मिलेगी।
ट्रेनों के निजीकरण का असर यात्रियों के जेब पर : ट्रेनों के निजीकरण का सीधा असर यात्रियों की जेब पर पड़ेगा और प्राइवेट एजेंसियां मालामाल होंगी। रेलवे अभी यात्रियों को ट्रेन के टिकटों पर सब्सिडी देती है, लेकिन जब निजी ट्रेनों का जाल बिछ जाएगा तो सब्सिडी समाप्त हो जाएगी। हालांकि निजी ट्रेनों में हवाई जहाज के समान यात्रियों को सुविधा निजी एजेंसी उपलब्ध करा रही है, लेकिन किराया भी उसी तरह से वसूल रही है।
निजीकरण के खौफ में रेलकर्मी :
लगातार रेलवे के विभागों का भी निजीकरण किया जा रहा है जिसके कारण रेलकर्मियों में खौफ बढ़ने लगा है। टाटानगर स्टेशन पूछताछ केंद्र, क्लॉक रूम, शौचालय, सफाई का ठेका, डोरमेट्री, पार्किग, वेटिंग लॉज आदि को रेलवे ने आउटसोर्स कर दिया है। टाटानगर बुकिंग काउंटर को भी जल्द ही रेलवे आउटसोर्स कर सकती है। वहीं स्टेशन में ऑटोमेटिक वेडिंग मशीन का संचालन प्राइवेट लोगों द्वारा किया जा रहा है जो यात्रियों को टिकट बेच रहे हैं।
यात्रियों का फीड बेक लेगी मेंस कांग्रेस : ट्रेनों व स्टेशनों के निजीकरण को लेकर नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन (एनएफआइआर) व मेंस कांग्रेस द्वारा दक्षिण पूर्व रेलवे के यात्रियों का फीड बेक लेते हुए हस्ताक्षर अभियान चलाएगा। इतना ही नहीं यात्रियों को ट्रेनों व स्टेशनों के विभागों के निजीकरण होने से होने वाले नुकसान के बारे में बताया जाएगा।
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'निजी एजेंसियों पर रेलवे निर्भर होने लगा है। ट्रेनों के निजीकरण से यात्रियों की जेब काटी जाएगी। रेलवे में नौकरी करना अब सपना हो जाएगा। निजी एजेंसी जो भी काम कर रही हैं, उसकी गुणवत्ता देखी जा सकती है। निजी एजेंसी आइआरसीटीसी खान-पान की व्यवस्था को 15 वर्षो से तो पटरी पर नहीं ला पाई है। निजीकरण से सुरक्षित रेल परिचालन को खतरा तो होगा ही साथ ही भारतीय रेल की इमेज भी खराब होगी।
-शशि मिश्रा मंडल संयोजक मेंस कांग्रेस