औद्योगिक क्षेत्र में बड़े बदलाव का वाहक एडिटिव मैन्यूफैक्चरिंग
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : एडिटिव मैन्यूफैक्च¨रग अभी शुरुआती चरण में है लेकिन भविष्य में अ
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : एडिटिव मैन्यूफैक्च¨रग अभी शुरुआती चरण में है लेकिन भविष्य में औद्योगिक क्षेत्र में बड़े बदलाव का वाहक बनेगा। एनएमएल में एडिटिव मैन्यूफैक्च¨रग पर तीन दिवसीय कार्यशाला के अंतिम दिन भारत व जर्मनी के वैज्ञानिकों-विशेषज्ञों ने मीडिया कांफ्रेंस कर इस उभरते हुए क्षेत्र की विशेषताओं और संभावनाओं के साथ ही चुनौतियों पर प्रकाश डाला।
आइआइटी खड़गपुर के प्रो. इंद्रनील मन्ना, एनएमएल जमशेदपुर के निदेशक इंद्रनील चट्टोराज, कार्यशाला के सह समन्वयक विकास चंद्र श्रीवास्तव, जर्मनी के डर्क लोहमस व टोर्स्टन क्राफ्ट ने संयुक्त रूप से मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि भारत व जर्मनी साथ मिलकर एडिटिव मैन्यूफैक्च¨रग पर काम करते रहेंगे। वक्ताओं ने कहा कि यह यह तकनीक मध्यम व लघु उद्योगों के लिए कहीं ज्यादा उपयोगी है क्योंकि वे कम समय में जरूरत के हिसाब से थ्रीडी तकनीक का उपयोग करते हुए उपकरण व मशीनरी तैयार कर सकेंगे। इसके लिए बहुत बड़े सेटअप की जरूरत नहीं।
मेटल पाउडर के मामले में 95 प्रतिशत आयात पर निर्भर देश :
एडिटिव मैन्यूफैक्च¨रग की सबसे बड़ी चुनौती मेटल पाउडर की उपलब्धता का नहीं होना है। भारत इस क्षेत्र में 95 प्रतिशत बाहर की कंपनियों से आयात पर निर्भर है। यह कहना था आइआइटी खड़गपुर के प्रोफेसर इंद्रनील मन्ना का। उन्होंने कहा कि कुछ कंपनियां मेटल पाउडर के उत्पादन की दिशा में काम कर रही हैं। वहीं एनएमएल सहित कई संस्थान वैकल्पिक तरीकों पर भी शोध कर रहे हैं।
तैयार किए जा सकेंगे क्रिटिकल पार्ट्स : वैज्ञानिकों का दावा है कि एडिटिव मैन्यूफैक्च¨रग के जरिए उन छोटे उपकरणों को बनाया जाना सहज होगा जो पारंपरिक तरीकों से नहीं बनाए जा सकते। उदाहरण के लिए यदि किसी मशीन के नोजल की साइज में थोड़ा अंतर वाले साइज की जरूरत है। ऐसे में पारंपरिक तरीके से निर्माण के लिए बड़े बदलाव करने होंगे। एडिटिव तकनीक से एक्यूरेट साइज की थ्रीडी प्रिंटिंग तैयार कर कम समय में बिना किसी बदलाव के तैयार करना संभव है। यूं समझ लें कि हर किसी के दांतों का आकार अलग-अलग होता है। यह तकनीक अलग-अलग साइज के मामूली अंतर वाले दांत की ड्राफ्टिंग करने में भी मददगार हो सकती है।
यानि मेडिकल साइंस टेक्नोलोजी में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। यह तकनीक रेलवे, एयरोस्पेस, ऑटोमोटिव्स के क्षेत्र में अहम भूमिका निभाएगी जहां अलग-अलग साइज के पार्ट्स की कम संख्या में जरूरत है। एआरसीआइ हैदराबाद, पीएचईएल लैब सहित देश के कई तकनीकी संस्थाओं में चल रहे शोधों के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। फिलवक्त जरूरत है कि कुछ सक्सेस स्टोरी सामने लाया जाए ताकि औद्योगिक क्षेत्र इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रेरित हों और कमर्शियल उत्पादन बढ़ाया जा सके।