Jamshedpur: डॉ शांति सुमन का जन्मदिन इस तरह बना खास, मौसम ने किया अपना काम ; कविता अपना काम करती रही
प्रसिद्ध कवयित्री और स्तंभकार डॉ शांति सुमन के जन्मदिन पर कविता का रंग जमा। इस मौके पर मौजूद कवियों ने शब्दों की माला से डॉ सुमन को उल्लासित कर दिया।
जमशेदपुर, जेएनएन। पहली बार लगा कि कविता का सहज रंग छोटी गोष्ठी में ही निखरता है। मौसम ने अपना काम किया, कविता अपना काम कर रही थी। मौका था 12 सितंबर को अनंत पूजा के दिन प्रसिद्ध कवयित्री और स्तंभकार डॉ शांति सुमन के जन्मदिन का।
रात से ही पूजा दिन के अपराह्रन तक सघन वर्षा के कारण कवियों के आने की कठिनाइयों को देखते हुए अत्यंत संक्षेप में इस कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई गई। अरविंद (पुत्र) भी उसकी सुबह कोलकाता गया। घर में डॉ विशाखा (बहू) और डॉ चेतना (बेटी) ने सारी तैयारियां की। छह कवियों को मोबाइल से सूचना दी गई जिनमें दिनेश्वर सिंह दिनेश, जयनंदन, राजदेव सिन्हा, अशोक शुभदर्शी, वरूण प्रभात, तरूण कुमार सुरीली गीत कवयित्री ज्योत्सना अस्थाना प्रमुख थे। दिनेश अपनी व्यस्तता और जयनंदन यात्रा में रहने के कारण नहीं आ सके।
अशोक शुभदर्शी की कविता से आगाज
सुरूचिपूर्ण अल्पाहार के बाद कविता पाठ प्रारंभ हुआ। अशोक शुभदर्शी की कविता के साथ गोष्ठी की शुरुआत हुई। उनकी छोटी-छोटी कविताओं ने अपनी सार्थक उपस्थिति से वातावरण को काव्यात्मक बना दिया।
मैं तराशता रहता हूं नया शब्द
जीवंत बने रहने के लिए
राजदेव सिन्हा ने कई उत्सवधर्मी बिम्बों से भरी कविता सुनाई। उसमें प्रकृति का उल्लसित और उदम्य सौंदर्य व्यक्त हुआ-
झूमता सावन
सनसनाता पवन
रिमझिम फुहार
अल्हड़ आवारा सी
कत्थक भंवर देती
वरुण प्रभात की कविताओं में समय की किताब की बहुत सारी बातें मिलती हैं। उन्होंने एक अत्यंत भाव, रस, रंग, स्पर्श और सुवास भरा प्रेम गीत सस्वर सुनाया। यह वरुण की कविता की नई उड़ान है-
बूंद बनकर जो बरसा आंखों से
गर नहीं तुम तो बोलो कौन है वो
तरूण कुमार ने नई पीढ़ी के सपने से अवगत कराते हुए कहा-
नयी पीढ़ी के सपने
पुरानी पीढ़ी के अपने कायदे कानून
सब अपनी-अपनी जगह हैं मील के पत्थर
पानी नहीं, अब स्वर बरसा ज्योत्सना अस्थाना के शब्दों में-
निरंतर दायरे का सिमटता जाना
शुभ संकेत नहीं देता
लाकर चुपके-चुपके वो रख देता है हाशिये पर
चेतना ने अपनी संघर्षजीविता को अपनी जिद में पिरोकर कहा-
कल से ही कुछ
होने लगी है दस्तक
उगने लगे हैं पंख
खिलने लगी हैं खुशियां
है मुझे सपनों को सपनों में सहेजने की जिद
अंत में शांति सुमन ने बहुत आग्रह पर अपने कविता संग्रह 'सुखती नहीं वह नदी' से पहली कविता-'सोलह फरवरी-तुम्हारे जन्मदिन पर' सुनाई जिसमें उन्होंने अपने एक पुत्र के एक जन्मदिन की खुशी को पीड़ा के साथ मनाया। नौकरीपेशा पुत्र के जन्मदिन पर उसको अपने हाथ से तिलक नहीं लगाने की पीड़ा कविता के शब्द-शब्द से झांक रही थी-
कल आनेवाली से सोलह फरवरी
फिर फेंक देगी मुझको अपने अंधेरे में
इस छोटे शहर की बड़ी लगनेवाली बड़ी रात में
उतरेगा तुम्हारा बचपन, तुम्हारी हंसी, तुम्हारी जिद और मेरा अजस्र प्यार
अंत में डॉ विशाखा ने सबको स्नेहाभार कहा और अगले बड़े आयोजन में आने का निवेदन भी किया।