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मन मोह लेगी पेड़ के छाल और पत्तों के रंग से तैयार पेंटिंग, जानिए इस अनोखी कला के बारे में

पाटकर पेंटिंग में हस्त निर्मित सामग्री प्रयोग में लाई जाती है। पत्तों और पेड़ के छाल से रंग तैयार किए जाते हैं। ब्रश भी हाथों से बनाया जाता है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 22 Dec 2018 01:57 PM (IST)Updated: Sat, 22 Dec 2018 01:57 PM (IST)
मन मोह लेगी पेड़ के छाल और पत्तों के रंग से तैयार पेंटिंग, जानिए इस अनोखी कला के बारे में
मन मोह लेगी पेड़ के छाल और पत्तों के रंग से तैयार पेंटिंग, जानिए इस अनोखी कला के बारे में

जमशेदपुर [ वेंकटेश्वर राव]। झारखंड की विरासत पाटकर पेंटिंग को बचाने के लिए राज्य सरकार ने आमडुबी गांव को पर्यटन गांव घोषित कर रखा है। गांव में डेढ़ सौ की आबादी में चित्रकारों के तीस घर हैं। इनमें 50 लोग चित्रकार हैं। लेकिन इनके जीवन में सरकारी पहल रंग नहीं भर पा रही है। लुप्तप्राय झारखंड की इस कला को जिन चित्रकारों ने सहेज रखा है, वह शौचालय विहीन झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं।

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यह गांव पूर्वी सिंहभूम के धालभूमगढ़ प्रखंड का हिस्सा है। पाटकर चित्रकारी के लिए ही यह जाना जाता है। यह चित्रकारी लुप्तप्राय थी। यहीं के अनिल चित्रकार ने इसे विदेश में पहचान दिलाई। आलम यह रहा कि लंदन के कलाप्रेमी ने गांव आकर उनसे 30 हजार रुपये में पेंटिंग खरीदी थी। अब अनिल गुमनामी की जिंदगी बसर कर रहे हैं। शौचालय विहीन झोपड़ी में जीवन बसर कर रहे हैं।

यही हाल अन्य चित्रकारों का भी है। अनिल बताते हैं कि यह पेंटिंग पेड़ के छाल और पत्तों के रंग से ही बनाई जाती है। कला को बचाने वास्ते पर्यटन विभाग ने कुछ साल पहले अमाडुबी गांव को पर्यटन गांव घोषित तो किया, लेकिन चित्रकारों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। अनिल के अनुसार, 300 से 30 हजार रुपये तक में बिकने वाली इस पेंटिंग की ब्रांडिंग राज्य सरकार ठीक तरह से नहीं कर पा रही है।

घट रहा रूझान नहीं

गांव में चित्रकार जाति के कई युवा इस कला को जानते हैं, लेकिन उनका इसके प्रति रूझान नहीं है। इस कला के लिए कोई बाजार उपलब्ध नहीं होने से दैनिक मजदूरी करना ज्यादा बेहतर समझते हैं।

रंगों के सहारे कथा वाचन

इस पेंटिंग में हस्त निर्मित सामग्री प्रयोग में लाई जाती है। पत्तों और पेड़ के छाल से रंग तैयार किए जाते हैं। ब्रश भी हाथों से बनाया जाता है। फिर रंगों के माध्यम से किसी घटना या कहानी का चित्रण किया जाता है। इसे बनाने वाले एक खास जाति से आते हैं। इन्हें चित्रकार कहा जाता है। अनिल चित्रकार अबतक मां मनसा कथा, मां काली कथा, दुर्गा कथा, गोरू खुंटान, दांसाई, साड़पा नाच, मनुष्य की सृष्टि और पिलचू बूढ़ी के सहारे संथाली जन्म शास्त्र को रंगों की जुबानी उकेर चुके हैं।

होना पड़ता है शर्मसार

अनिल चित्रकार बताते हैं कि अमाडुबी गांव में पहुंचने के बाद पर्यटक चित्रकारों से मिलने आते हैं। जब महिला पर्यटक घर में आती है तो शर्मसार होना पड़ता है। घर में शौचालय तक नहीं होने के कारण उन्हें परेशानी होती है।


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