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Oxygen Crisis: देश को आक्सीजन दे रहा झारखंड का जमशेदपुर, Tata Steel से रोजाना 300 टन की सप्लाई

Oxygen Crisis टाटा स्टील फिलहाल रोजाना 300 टन लिक्विड मेडिकल आक्सीजन उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश आंध्र प्रदेश झारखंड ओडिशा बिहार व बंगाल स्थित अस्पतालों को भेज रही है। आज सभी राज्य जमशेदपुर सहित अन्य स्टील सिटी की ओर आस भरी नजरें टिकाए बैठे हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Fri, 23 Apr 2021 09:57 PM (IST)Updated: Sat, 24 Apr 2021 12:48 PM (IST)
Oxygen Crisis: देश को आक्सीजन दे रहा झारखंड का जमशेदपुर, Tata Steel से रोजाना 300 टन की सप्लाई
टाटा संस के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा की पहल पर टाटा स्टील मेडिकल आक्सीजन की रोजाना सप्लाई कर रही है।

जमशेदपुर,  जितेंद्र सिंह। महाराष्ट्र से लेकर गुजरात, मध्य प्रदेश से लेकर देश की राजधानी दिल्ली में मेडिकल आक्सीजन को लेकर हाहाकार मचा है। आक्सीजन की कमी के कारण हजारों कोरोना संक्रमित मरीज की मौत हो गई। लेकिन जमशेदपुर इस मामले में भाग्यशाली है। यहां मेडिकल आक्सीजन की कोई कमी नहीं है। आज सभी राज्य जमशेदपुर सहित अन्य स्टील सिटी की ओर आस भरी नजरें टिकाए बैठे हैं। आज जमशेदपुर देश को ''आक्सीजन'' दे रहा है।

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टाटा स्टील के प्रवक्ता के अनुसार फिलहाल कंपनी रोजाना 300 टन लिक्विड मेडिकल आक्सीजन उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, बिहार व बंगाल स्थित अस्पतालों को भेज रही है। जमशेदपुर में कंपनी टीएमएच, एमजीएम मेडिकल कॉलेज व अस्पताल, टिनप्लेट हॉस्पीटल, टाटा मोटर्स व ब्रह्मानंद अस्पताल में आक्सीजन की सप्लाई कर रही है। टाटा स्टील की प्रवक्ता ने बताया कि केंद्र सरकार ने स्टील कंपनियों में आक्सीजन के उत्पादन, खपत व स्टॉक की समीक्षा करने के लिए विशेष कमेटी का गठन किया है। उन्होंने प्रत्येक स्टील प्लांट से विभिन्न राज्यों को लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजिन का वितरण आवंटित किया है। टाटा स्टील आपूर्ति बढ़ाने के लिए तैयार हैं, हालांकि, ऑक्सीजन की ढुलाई और परिवहन के लिए कंटेनरों और ट्रेलरों की कमी है। हम उम्मीद करते हैं कि परिवहन समस्या का जल्द समाधान हो जाएगा, ताकि आक्सीजन गंतव्य जगह पर सही समय पर पहुंच सके। हम वैकल्पिक साधनों पर भी काम कर रहे हैं।

जमशेदपुर में आक्सीजन के छह प्लांट

इसका मुख्य कारण लौहनगरी में स्टील प्लांट होना है। टाटा स्टील में सैकड़ों मीट्रिक टन लिक्विड आक्सीजन की रोजाना खपत होती है। इसलिए जमशेदपुर में छह प्लांट लगे हैं। इसमें लिंडे इंडिया लिमिटेड के बर्मामाइंस व साकची प्लांट के अलावा आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में बिहार एयर वाटर प्रोडक्टस प्रा. लिमिटेड, स्पॉक्सी गैसेस प्रा. लि., न्यू कार्बोनिक गैसेस प्रा. लि. व जमशेदपुर ऑक्सीजन प्रा. लि. शामिल हैं। सिर्फ लिंडे की ही उत्पादन क्षमता 5000 टन है। आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र की अन्य पांच कंपनियों में 150 से 200 टन प्रतिदिन उत्पादन की क्षमता है, जो फिलहाल 50 से 100 टन ही उत्पादन कर रही हैं। सामान्य दिनों में जमशेदपुर से ही बंगाल व ओडिशा के सीमावर्ती अस्पतालाें में मेडिकल आॅक्सीजन की आपूर्ति की जाती है। टाटा संस के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा की पहल पर टाटा स्टील देश भर में 150-200 टन मेडिकल आक्सीजन की रोजाना सप्लाई कर रही है।

आक्सीजन तो है पर सिलिंडर की भारी कमी

सिंहभूम चैंबर आफ कॉमर्स के अध्यक्ष अशोक भालोटिया का कहना है कि जमशेदपुर में लिक्विड ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है। कमी है तो व्यक्तिगत उपयोग में आने वाले सिलेंडर की। ऑक्सीजन सिलेंडर का उत्पादन सबसे ज्यादा गुजरात में होता है। यहां वितरकों के पास भी छोटे सिलेंडर की कमी है। अमूमन छोटे सिलेंडर लेने वाले उपयोग के बाद भी लौटाते नहीं हैं। इसकी वजह से ज्यादा दिक्कत है। बड़े अस्पतालों में सेंट्रलाइज्ड चैंबर व पाइपलाइन की व्यवस्था है, इसलिए उन्हें दिक्कत नहीं है। छोटे अस्पताल व नर्सिंग होम में 30 किलो वाले सिलेंडर की ज्यादा खपत है। मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडर एक, दो, पांच व 30 किलो का होता है। सरकार को सिलेंडर खरीदकर उपलब्ध कराना चाहिए।

आक्सीजन एक्सप्रेस पहुंची जमशेदपुर

टाटानगर स्टेशन पर सोमवार को ही 22 बॉडी फ्लैट रेक (बीएफआर) वाली आक्सीजन एक्सप्रेस पहुंच गई। राउरकेला में भी ऐसा ही एक रैक तैयार रखा गया है। आदित्यपुर इंडस्ट्रीयल एरिया में संचालित बिहार एयर वाटर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी से संपर्क किया गया है जहां से लिक्विड ऑक्सीजन मिलेगा। आदित्यपुर इंडस्ट्रीयल एरिया में संचालित बिहार एयर वाटर कंपनी की उत्पादन क्षमता प्रतिदिन 300 टन है। एक टैंकर में 30 टन लिक्विड ऑक्सीजन आ सकता है। हालांकि बिहार एयर वाटर औद्योगिक क्षेत्र में ब्लास्ट फर्नेस के संचालन के लिए भी गैस की आपूर्ति करती है। इसके अलावे स्थानीय अस्पतालों को भी लिक्विड ऑक्सीजन दिया जाता है। ऐसे में रेलवे प्रबंधन ने केंद्र सरकार द्वारा जारी आदेश का हवाला देते हुए जल्द से जल्द लिक्विड ऑक्सीजन उपलब्ध कराने का आग्रह किया है।

आक्सीजन तो है पर टैंकर का अभाव

टाटानगर रेलवे यार्ड में बीएफआर तो खड़ी है, लेकिन ना तो रेलवे के पास और ना ही लिक्विड आक्सीजन आपूर्ति करने वाली कंपनी के पास टैंकर है। जमशेदपुर में संचालित प्लांट के पास स्थानीय स्तर पर लिक्विड ऑक्सीजन आपूर्ति करने के लिए ही टैंकर हैं। यदि सभी टैंकर रेलवे को कंपनी दे देगी तो स्थानीय स्तर पर गैस आपूर्ति प्रभावित होगी। चक्रधरपुर मंडल के डीसीएम ऑक्सीजन एक्सप्रेस के लिए हम तीन तरह से टैंकर को रैक पर चढ़ाने के लिए सिक्योरिंग, उसे स्टील की जंजीर से बांधने और जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त रैक के साथ तैयार हैं। कंपनी से जैसे ही हमें लिक्विड ऑक्सीजन मिलेगा, हम उसे प्राप्त आदेश के आधार पर गंतव्य की ओर भेज देंगे।

शहर में 200 टन मेडिकल आक्सीजन की खपत

कोरोना संक्रमण से पहले तक जमशेदपुर में 150 टन ऑक्सीजन की खपत होती थी, जो अब 200 टन तक पहुंच गई है। वैसे जमशेदपुर से झारखंड समेत बंगाल व ओडिशा के सीमावर्ती इलाकों के अस्पतालाें में लगभग 300 टन आॅक्सीजन की आपूर्ति हो रही है। पहले कुल मिलाकर 200 टन की खपत थी।

कहां होता है लिक्विड आक्सीजन का प्रयोग

आमतौर पर लिक्विड आक्सीजन का प्रयोग स्टील प्लांट, ब्लास्ट फर्नेस, वेल्डिंग इंडस्ट्री, फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री, दवा कंपनी, पेट्रोलियम रिफाइनरी, न्यूक्लियर एनर्जी, ऑक्सीजन सिलेंडर निर्माता, वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट, फूड एंड वाटर प्यूरीफिकेशन में किया जाता है। लेकिन वैश्विक महामारी में इस आक्सीजन की मांग अचानक बढ़ गई है।

कैसे बनता है मेडिकल आक्सीजन

हम जानते हैं आक्सीजन में हवा और पानी दोनों मौजूद होता है। हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि हवा में 21 फीसद आक्सीजन व 78 फीसद नाइट्रोजन होती है। इसके अलावा एक फीसद अन्य गैसें होती हैं। हवा में हाइड्रोजन, नियोन व कार्बन डाईआक्साइड भी होती है। पानी में भी आक्सीजन की मात्रा होती है। अलग-अलग जगहों का पानी में आक्सीजन की मात्रा में भिन्नता हो सकती है। दस लाख मॉलिक्यूल में से आक्सीजन के दस मॉलिक्यूल होते हैं। यही कारण है कि पानी में इंसान सांस नहीं ले पाता है।

क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रॉसेस

ऑक्सीजन गैस क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रॉसेस के जरिए बनती है। यानी हवा में मौजूद विभिन्न गैसों को अलग-अलग किया जाता है, जिनमें से एक ऑक्सीजन भी है। क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रॉसेस में हवा को फिल्टर किया जाता है, ताकि धूल-मिट्टी को हटाया जा सके। उसके बाद कई चरणों में हवा को कंप्रेस (भारी दबाव डालना) किया जाता है। उसके बाद कंप्रेस हो चुकी हवा को मॉलीक्यूलर छलनी एडजॉर्बर से ट्रीट किया जाता है, ताकि हवा में मौजूद पानी के कण, कार्बन डाई ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन को अलग किया जा सके। इस पूरी प्रक्रिया से गुजरने के बाद कंप्रेस हो चुकी हवा डिस्टिलेशन कॉलम में जाती है, जहां पहले इसे ठंडा किया जाता है। उसके बाद 185 डिग्री सेंटीग्रेट (ऑक्सीजन का उबलने का स्तर) पर उसे गर्म किया जाता है, जिससे उसे डिस्टिल्ड किया जाता है। बता दें कि डिस्टिल्ड की प्रक्रिया में पानी को उबाला जाता है और उसकी भाप को कंडेंस कर के जमा कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया को अलग-अलग स्टेज में कई बार किया जाता है, जिससे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और अर्गन जैसी गैसें अलग-अलग हो जाती हैं। इसी प्रक्रिया के बाद लिक्विड ऑक्सीजन और गैस ऑक्सीजन मिलती है।

क्रायोजेनिक टैंकर से ट्रांसपोर्ट होता है लिक्विड आक्सीजन

मेडिकल आक्सीजन को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए विशेष टैंकरों की जरूरत होती है, जिसे क्रायोजेनिक टैंकर कहते हैं। मेडिकल आक्सीजन को सिलिंडर और तरल रूप में इन क्रायोजेनिक टैंकरों में रखा जाता है। क्रायोजेनिक टैंकर में तरल आक्सीजन को -183 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है।

इन राज्यों में है मेडिकल आक्सीजन की कमी

मेडिकल ऑक्सीजन की सबसे ज़्यादा कमी 12 कोरोना प्रभावित राज्यों में है जिसमें महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान शामिल हैं।

इंडस्ट्रियल ग्रेड व मेडिकल आक्सीजन में क्या है अंतर

इंडस्ट्रियल ग्रेड और मेडिकल ऑक्सीजन में बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता। जहां इंडस्ट्रियल ग्रेड ऑक्सीजन 99.5 प्रतिशत साफ होती है, वहीं मेडिकल ऑक्सीजन 90 फीसद से लेकर 93 फीसद साफ होती है।


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