पिता छोड़ गए थे अनाथालय की देहरी पर, बिटिया बन गई ‘स्वर्ण परी’
अनाथ बिटिया देश का नाम रोशन कर रही है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साइकिलिंग प्रतियोगिताओं में अनेक स्वर्ण पदक जीत कर ‘स्वर्ण परी’ बन गई है। नाम है नंदिता।
जमशेदपुर [जितेंद्र सिंह]। जन्म के साथ ही मां ने दुनिया को अलविदा कह दिया। जब पिता को पता चला कि बेटी मानसिक रूप से कमजोर है तो जमशेदपुर शहर के शिशु निकेतन अनाथालय की देहरी पर छोड़ गए। अनाथालय की सेविकाओं ने उसे बड़े जतन से पाला-पोसा। अब वही अनाथ बिटिया देश का नाम रोशन कर रही है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साइकिलिंग प्रतियोगिताओं में अनेक स्वर्ण पदक जीत कर ‘स्वर्ण परी’ बन गई है। नाम है नंदिता।
बचपन से ही साइकिलिंग की शौकीन रही नंदिता वर्ष 2011 में एथेंस में आयोजित स्पेशल ओलंपिक्स की 500 मीटर रेस में स्वर्ण और पांच हजार मीटर रेस में कांस्य पदक जीत चुकी है। कहती हैं, मैंने अपनी मां (कल्याण निकेतन की प्रशासक) से वादा किया था कि एथेंस से स्वर्ण पदक लेकर आऊंगी। जब मैं 1000 मीटर टाइम ट्रायल में चौथे स्थान पर रही तो खूब रोई थी, क्योंकि मां से वादा कर रखा था। मैंने 500 मीटर की प्रतियोगिता में स्वर्ण जीत कर अपना वादा पूरा कर दिखाया।
एथेंस में स्वर्ण पदक जीत चौंकाया
अनाथालय की कर्मचारी सीमा और अंशु के अनुसार, साल 2007 की बात है। नंदिता के शौक को देखते हुए उसे एक साइकिल खरीद कर दी गई। चलाने के क्रम में कई बार गिरी, पर हिम्मत नहीं हारी। एक दिन स्पेशल बच्चों के कोच अवतार सिंह की नजर नंदिता पर पड़ी। उन्होंने उसे प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया। अवतार सिंह बताते हैं कि विशेष बच्ची होने के कारण नंदिता का प्रशिक्षण काफी कठिन था। दो साल की ट्रेनिंग के बाद नंदिता ने एथेंस में स्वर्ण जीतकर चौंका दिया।
कई राष्ट्रीय खिताब किए अपने नाम
नंदिता कई राष्ट्रीय खिताब भी अपने नाम कर चुकी है। साल 2010 में स्पेशल ओलंपिक्स में एक किलोमीटर टाइम ट्रायल में दूसरा स्थान हासिल करने वाली नंदिता टेनिस, फ्लोर हॉकी, योग और फुटबॉल में भी माहिर है। वह साल 2013 में नेशनल फुटबॉल टूर्नामेंट में भी तीसरा स्थान हासिल कर चुकी है। भले ही नंदिता को विशेष की संज्ञा दी जाती हो, पर वह बहुमुखी प्रतिभा की धनी है। चित्रंकन, नाटक व संगीत प्रतियोगिताओं में भी भाग लेती है।
सचमुच स्वर्णपरी है नंदिता
एथेंस स्पेशल ओलंपिक्स सहित अन्य राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साइकिलिंग प्रतियोगिताओं में जीते स्वर्ण पदक
नंदिता का मानसिक विकास आम बच्चों की तरह नहीं था। लेकिन उसकी जिजीविषा की दाद देनी होगी। वह हर क्षण हिम्मत से काम लेती है। वह सचमुच स्वर्ण परी है।
- विजयलक्ष्मी दास, प्रशासक, शिशु निकेतन, जमशेदपुर
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