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जाने को सड़क नही, चुभते पांव में ‘शूल’ Jamshedpur News

सात से आठ सौ परिवारों वाला यह गांव आदित्यपुर नगर निगम के वार्ड संख्या नौ में आता है। 80-90 वर्ष पुराने इस गांव में सड़क नहीं बनने से ग्रामीणों में नाराजगी है।

By Vikas SrivastavaEdited By: Published: Sat, 30 Nov 2019 12:35 AM (IST)Updated: Sat, 30 Nov 2019 12:38 AM (IST)
जाने को सड़क नही, चुभते पांव में ‘शूल’ Jamshedpur News

जमशेदपुर (अवनीश कुमार)। सरकार सभी गांवों को मुख्य पथ से जोड़ने को लेकर प्रयासरत है। लेकिन सरायकेला-खरसावां जिले के आदित्यपुर नगर निगम क्षेत्र स्थित आदिवासी बहुल गांव पार्वतीपुर में जाने के लिए सड़क नहीं है।

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सात से आठ सौ परिवारों वाला यह गांव आदित्यपुर नगर निगम के वार्ड संख्या नौ में आता है। इसके बावजूद मुख्य सड़क तक जाने के लिए ग्रामीणों को करीब तीन किलोमीटर तक कच्ची व उबड़खाड़ सड़क पर सफर तय करना पड़ता है। 80-90 वर्ष पुराने इस गांव में सड़क नहीं बनने से ग्रामीणों में नाराजगी है। मीरुडीह स्थित राणी सती कंपनी तक सड़क का कालीकरण किया गया है। जिसकी लंबाई करीब पचास फीट है। यहां से पार्वतीपुर गांव में जाने के लिए सड़क नहीं है। 

ग्रामीण डॉक्टर महतो व डोमन हेम्ब्रम ने बताया कि ग्रामीणों ने वर्षो पहले पहाड़ काटकर सड़क बनाई थी, लेकिन पथरीली होने के कारण इसपर चलना काफी कष्टदायक था। यह गांव के हरिमंदिर तक जाती है। इस पथ पर करीब ढाई किलोमीटर जाने के बाद सड़क झाड़ियों में ‘फंस’ जाती है और पार्वतीपुर हरिमंदिर तक जाने के लिए सरकारी जमीन छोड़कर एक रैयतदार के जमीन पर होते हुए हरिमंदिर तक पहुंचती है।

दरअसल ग्रामीणों का हरिमंदिर तक आना जाना कम होता है जिसके कारण सरकारी जमीन पर झाड़ियां उग आयी हैं। यहां से करीब आधा किलोमीटर तक लोग रैयती जमीन से होते हुए गांव में जाते हैं। साथ चल रहे ग्रामीण डोमन हेम्ब्रम ने आशंका जताई कि कभी भी रैयतदार अपनी जमीन पर आने-जाने से रोक सकता है। 

गांव में नहीं है चुनावी तपिश: विधानसभा चुनाव को लेकर ग्रामीणों से रायशुमारी करने पर वे मौन हो जाते हैं। चुनाव को लेकर गांव में सरगर्मी नहीं है। जबकि गांव में आठ सौ मतदाता हैं। ये लोग पार्वतीपुर से साढ़े तीन किलोमीटर दूर किशुनपुर में मतदान केंद्र संख्या 98 व 99 पर वोट डालने जाते हैं।

ग्रामीण डॉक्टर महतो कहते हैं, गांव के बुजुर्ग इतनी दूर वोट डालने नहीं जा पाते जबकि गांव में डेढ़ सौ से अधिक नये वोटरों का पहचान पत्र नहीं बना है। ग्रामीणों का कहना है कि जब गांव में स्कूल है तो गांव का बूथ इसमें ही होना चाहिए। ...तभी पास खड़े डोमन हेम्ब्रम बीच में टोकते हुए कहने लगे ‘गांव में आने के लिए सड़क होती तो शायद यह संभव हो सकता था।’

गांव के प्राथमिक विद्यालय तक जाने के लिए पगडंडी ही है सहारा: गांव में प्राथमिक विद्यालय है जिसमें कक्षा पांच तक में 84 बच्चों का नामांकन है। इन्हें पढ़ाने के लिए दो पारा शिक्षकों की नियुक्ति की गई है। विद्यालय में चार कमरे है, लेकिन पढ़ाई दो कमरों में ही होती है। एक में कक्षा एक व दो और दूसरे कमरे में तीन, चार व पांच कक्षा की पढ़ाई होती है।विडम्बना यह है कि स्कूल तक जाने के लिए सड़क नहीं होने के कारण बच्चों को पगडंडी के सहारा लेना पड़ता है। हर बार चुनाव के समय आए नेताजी सड़क बनवाने का आश्वासन देते हैं लेकिन कब..? यह नहीं बताते। बहरहाल, देखना है एक अदद सड़क के लिए तरस रहा यह गांव और कितने दिनों तक सरकार और जन प्रतिनिधियों की तरफ  टकटकी लगाए बैठता हैं।

गांव में 18 साल के दर्जनों युवा, जिनका नहीं है वोटर कार्ड

राज लोहार, संतोष गोराई, बुधा सरदार, मंगल सरदार, दखिन मार्डी, शिवलाल मार्डी, राजेश मार्डी समेत दर्जनों ऐसे ग्रामीण युवा हैं जिनका वोटर कार्ड नहीं बना है। साथ कई नवविवाहिताओं के नाम भी नहीं जुड़ सके। वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए फॉर्म भरकर जमा कराया गया, लेकिन हमें कुछ नहीं मिला है। इन्हें मतदान के लिए अन्य विकल्पों की जानकारी नहीं है। सो, ये वोटर कार्ड को ही मतदान का ‘हथियार’ मानते हैं।

गर्भवती को पैदल या खाट पर लेकर जाना मजबूरी

ग्रामीणों ने बताया कि आम दिनों में तो ग्रामीण किसी तरह मुख्य सड़क तक पैदल चले ही आते हैं, लेकिन बरसात में मुश्किलें बढ़ जाती है। सहियाओं को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है तब, जब गर्भवती महिला को लेकर अस्पताल तक जाना होता है। गर्भवती को गांव से पैदल या खाट पर लेकर मुख्य सड़क तक आती हैं।  गांव में पानी के लिए नगर निगम व जुस्को ने टंकी की व्यवस्था की है। गांव के अधिकतर चापाकल सूख गए हैं। कुछ तो मरम्मत योग्य भी नहीं हैं। 

 

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