झारखंड के नंबर वन अस्पताल का हाल, इलाज के लिए न डॉक्टर न दवाएं
जमशेदपुर के खासमहल स्थित सदर अस्पताल में बीते सात माह से एक भी सर्जन नहीं है।
जमशेदपुर, अमित तिवारी। सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में जमशेदपुर के खासमहल स्थित सदर अस्पताल को झारखंड का सर्वश्रेष्ठ अस्पताल होने का तमगा प्राप्त है। हाल ही में यह तमगा 'कायाकल्प अवार्ड 2017-18' के रूप में इस अस्पताल को दिया गया। जिस सरकारी अस्पताल को कायाकल्प का प्रथम पुरस्कार मिला हो, उसे लेकर सहज ही उत्सुकता होती है कि आखिर इस अस्पताल में ऐसा क्या है, जिससे इसे सर्वश्रेष्ठ होने का पुरस्कार तक मिल गया। यह उत्सुकता उस समय काफुर हो जाती है, जब इस अस्पताल में पहुंचने के बाद आप खुद को अव्यवस्थाओं के बीच घिरा हुआ पाते हैं, फिर काहे का सर्वश्रेष्ठ अस्पताल?
जी हां, वास्तविकता को टटोलने पर पता चलता है कि झारखंड के सबसे बेहतर अस्पतालों में शुमार जमशेदपुर के इस सदर अस्पताल की स्थिति बेहद बदतर है। यहां न तो डॉक्टर हैं और न ही दवा। यह हालात तब हैं, जब चार माह पहले ही इस अस्पताल को केंद्र सरकार ने झारखंड के सबसे बेस्ट अस्पताल के रूप में चयनित कर उसे कायाकल्प अवार्ड के तहत 50 लाख रुपये का पुरस्कार दिया था। ऐसे में सवाल उठाना लाजिमी है कि जब इस अस्पताल को सबसे बेहतर कहा जा रहा है तो दूसरे बदलाह अस्पतालों की हकीकत कितनी बुरी होगी?
जमशेदपुर के खासमहल स्थित सदर अस्पताल में बीते सात माह से एक भी सर्जन नहीं है। इसकी वजह से हर्निया, एपेंडिक्स, हाइड्रोसील सहित सभी तरह के ऑपरेशन बंद हैं। इसके कारण रोज 20 से 25 मरीजों को मायूस वापस लौटना पड़ रहा है। छोटी-मोटी परेशानी लेकर भी अगर कोई मरीज पहुंचता है तो उसे भी तत्काल महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल या फिर दूसरे किसी अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है। चिकित्सकों का तर्क होता है कि यहां पर सर्जन हैं नहीं इसलिए बेहतर होगा कि मरीज दूसरे किसी अस्पताल में जाकर दिखाएं।
मेडिसीन विभाग में भी स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं हैं। किसी तरह जनरल फिजीशियन से काम चलाया जा रहा है। 100 बेड के इस अस्पताल में कुल 31 चिकित्सकों की जरूरत है। जबकि सिर्फ 16 ही तैनात हैं। यानी आधे चिकित्सकों के पद रिक्त पड़े हुए हैं। इसी तरह, नर्सों की संख्या आधे से भी कम है। कुल 70 नर्सों के स्थान पर सिर्फ 20 ही तैनात है।
37 दवाइयां नहीं, उधार लेकर मरीज करा रहे इलाज: सदर अस्पताल में दवाइयों की घोर किल्लत है। ओपीडी की सूची में 37 दवाइयां की संख्या शून्य बताई गई है। इससे मरीजों की परेशानी बढ़ गई है। आधी से अधिक दवाइयां बाहर से खरीदने पड़ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले गरीब मरीजों के पास उतने पैसे नहीं होने की वजह से वे उधारी लेकर दवा खरीदने को मजबूर हैं।
परसुडीह निवासी राम सिंह मुंडा का कहना है कि जब झारखंड का सबसे बेस्ट अस्पताल की यह स्थिति है तो बाकि की अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जो डॉक्टर ड्यूटी पर तैनात है वह भी समय पर ड्यूटी नहीं आते है। और आते भी है तो कुछ देर के बाद चले जाते है। इसी का नतीजा है कि करीब एक वर्ष से यहां पर बायोमैट्रिक्स मशीन खराब पड़ी है। लेकिन इसे बनाना जरूरी नहीं समझा जा रहा है, जबकि स्वास्थ्य विभाग को छोड़ दिया जाए तो दूसरे विभागों में बायोमेट्रिक्स सिस्टम सख्ती के साथ लागू है।
जानें, क्या कहते हैं मरीज
मेरी बड़ी बहन का प्रेशर कम होने की वजह से उसे अस्पताल में भर्ती कराया है। यहां पर दवाइयां नहीं होने की वजह से बाहर से दवाई लानी पड़ रही है। अब तक 300 रुपये की दवा खरीद चुका हूं।
- सुशांति मुंडू, सारजामदा।
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सुना था कि सदर अस्पताल में सभी तरह की सुविधाएं मिलती हैं पर यहां की स्थिति काफी बदतर है। अबतक 700 रुपये की दवा बाहर से खरीद चुका हूं। गरीब इतने पैसे कहां से लाएंगे।
- पिंकू सरदार, मरीज के परिजन।
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बेटी को बुखार व पेट दर्द की शिकायत होने पर उसे भर्ती कराया है पर यहां पर दवाइयां नहीं मिल रही हैं। एक दिन में 500 रुपये की दवा बाहर से खरीदनी पड़ी है।
-संजू देवी, जुगसलाई।
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पत्नी को पेट में दर्द है। यहां पर न तो इंजेक्शन है और न ही सिरिंज। 700 रुपये की दवा बाहर से खरीद चुका हूं। गरीब आदमी इतनी महंगी दवा बाहर से कैसे खरीदेंगे?
- जीरामुनी पात्रो, परसुडीह।
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अस्पताल में सर्जन होने चाहिए। इसके लिए विभाग को पत्र लिखा गया है। वहीं कुछ दवाइयों की कमी जरूर है, जिसे मंगाया गया है। जल्द ही दवाइयां आ जाएंगी।
- डॉ. वीणा सिंह, उपाधीक्षक, सदर अस्पताल।
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बेस्ट अस्पताल के लिए इन बिंदुओं पर होता है आकलन
कायाकल्प अभियान के तहत प्रति वर्ष दिल्ली व रांची की संयुक्त टीम जांच करने के लिए पहुंचती है। इस दौरान आधारभूत संरचना एवं गुणात्मक स्वास्थ्य सुविधाएं, परिसर में स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण, अवशिष्ट पदार्थों का समुचित निपटारा, संक्रमण से बचाव और नियंत्रण, बागवानी और वृक्षारोपण, वाटर सेनिटेशन, स्टरलाइजेशन, मच्छर और रोगाणुमुक्त वातावरण और स्वास्थ्य योजनाओं का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार आदि बिंदुओं पर जांच की जाती है।