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समस्याओं के मकड़जाल में उलझा मुसाबनी टाउनशिप

अंग्रेजों के जमाने से ताम्र खदानों का बड़ा केंद्र रहे पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत मुसाबनी टाउनशिप की पहचान अब तारों के जाल टूटी सड़कें अतिक्रमण जर्जर इमारतें अवैध निर्माणों और गंदगी के ढेर के तौर पर होने लगी है। शासन-प्रशासन व जनप्रतिनिधियों ने टाउनशिप क्षेत्र को उपेक्षित ही रखा है..

By JagranEdited By: Published: Thu, 05 Aug 2021 07:30 AM (IST)Updated: Thu, 05 Aug 2021 07:30 AM (IST)
समस्याओं के मकड़जाल में उलझा मुसाबनी टाउनशिप
समस्याओं के मकड़जाल में उलझा मुसाबनी टाउनशिप

मुरारी प्रसाद सिंह, मुसाबनी : अंग्रेजों के जमाने से ताम्र खदानों का बड़ा केंद्र रहे पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत मुसाबनी टाउनशिप की पहचान अब तारों के जाल, टूटी सड़कें, अतिक्रमण, जर्जर इमारतें, अवैध निर्माणों और गंदगी के ढेर के तौर पर होने लगी है। शासन-प्रशासन व जनप्रतिनिधियों ने टाउनशिप क्षेत्र को उपेक्षित ही रखा है। शिकायतों के बावजूद रोजमर्रा की जिदगी से जुड़ी समस्याओं का कोई हल नहीं निकलता है। लोगों को शुद्ध पानी तक नसीब नहीं। ऐसे में, यहां के लोग इस व्यवस्था को अपनी नियति मान कर ही चल रहे हैं कभी ताम्र खदानों के लिए विश्व में चर्चित था मुसाबनी : ब्रिटिश शासन काल से मुसाबनी तांबा खदानों के लिए पूरे विश्व में चर्चित था। मुसाबनी माइंस आफ ग्रुप के तहत कई खदानें चलती थीं। बादिया, बनालोपा, पाथरगोड़ा, सुरदा, केंदाडीह और राखा कापर माइंस प्रोजेक्ट। मुसाबनी माइंस आफ ग्रुप की खदानों में करीब 14 हजार मजदूर एक जमाने में काम करते थे। सभी मजदूरों को रहने के लिए एचसीएल कंपनी ने बेहतरीन सुविधायुक्त आवास दिए थे। आवासों में 24 घंटे बिजली-पानी की व्यवस्था रहती थी। मजदूरों के बच्चों की पढ़ाई के लिए मुसाबनी में कंपनी ने स्कूल खोले थे। मुसाबनी में एचसीएल कंपनी ने करीब चार ह•ार आवासों का निर्माण कराया था। जिनमें कई कालोनियां, लाइन क्वार्टर, फ्लैट, बंगला आदि शामिल थे। इन आवासों में अधिकारी और मजदूर रहते थे। जब तक मुसाबनी माइंस ऑफ ग्रुप की कापर माइंस सुचारु रूप से चलती रही । यहां की व्यवस्था दुरुस्त रही। लेकिन विगत 15 महीने से सुरदा माइंस बंद होने के कारण 1500 मजदूर बेरोजगार बैठे हैं। समस्या से लोग परेशान, सिमट गई सुविधाएं : समय के साथ एक-एक कर सभी खदानें बंद हो गई। कालोनियों व गलियों का मिजाज बदला। शहर की देखरेख बंद हो गई। कम्पनी ने मुसाबनी टाउनशिप की सभी जमीन व आवास झारखंड सरकार को 2005 में सौंप दिया। आवासों में मजदूर व उनके आश्रित वर्षो से रह रहे हैं। लीज मिलने की आस में लोग अब भी इसमें जमे हैं। अब तो क्वार्टर के भवन जर्जर व जानलेवा बन गए हैं। स्कूल बंद है। शिक्षक बिना वेतन के जीवन जीने को मजबूर हैं। दर्जनों शिक्षकों ने राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु की मांग की है। अस्पताल भी खंडहर में तब्दील हो गया है। अधिकांश सड़कें खस्ताहाल :

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मुसाबनी टाउनशिप में कई कालोनियों में सड़क का निर्माण विभिन्न मदों से किया गया है। बावजूद इसके लाइन क्वार्टर इलाके में अधिकांश सड़कें खस्ताहाल हैं। सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे हैं। कहीं-कहीं सड़कों का नामोनिशान तक मिट चुका है। जर्जर सड़कों पर गिरकर लोगों का चोटिल होना आम बात है। लटकते तार दे रहे हादसे को दावत : मुसाबनी टाउनशिप में भूमिगत बिजली के जर्जर और जानलेवा तारे इन दिनों मौत बनकर दौड़ रही हैं। । खंभे पर लटकते तार बड़े हादसों को दावत दे रहे हैं। तारों का बोझ उठाए खंभे भी खतरनाक स्थिति तक लटक गए हैं। कई जगह तार नंगे ही लटक रहे हैं। ये किसी बड़े हादसे का सबब बन सकते हैं। नहीं है स्वच्छ भारत अभियान का असर : मुसाबनी टाउनशिप की विभिन्न कालोनियों में जगह-जगह लगे कूड़े के ढेर 'स्वच्छ भारत अभियान' की हवा निकालते दिखाई देते हैं। नालियां जाम हैं। कई मकानों के खंडहर कूड़ादान में तब्दील हो गए हैं। सड़कों पर भी जगह-जगह कूड़े का ढेर लगा रहता है। सीवर की सफाई नहीं होती है। मच्छरों का प्रकोप ज्यादा है। सीवरों का पानी सड़कों पर बह रहा है।


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