शहर के रसोई घरों में मिट्टंी के बर्तनों का बढ़ रहा क्रेज
इनसे मिलिए। ये हैं साकची निवासी अनिल सिंह। जुबिली पार्क के पास सड़क किनारे लगी राजस्थान से आए बंजारे की दुकान से मिट्टंी का तवा खरीदने आए हैं। पिछले एक साल से घर पर खाना मिट्टंी के बर्तनों में बनवा रहे हैं। अब दूसरे सज्जन को जानिए।
जागरण संवादादाता, जमशेदपुर : इनसे मिलिए। ये हैं साकची निवासी अनिल सिंह। जुबिली पार्क के पास सड़क किनारे लगी राजस्थान से आए बंजारे की दुकान से मिट्टंी का तवा खरीदने आए हैं। पिछले एक साल से घर पर खाना मिट्टंी के बर्तनों में बनवा रहे हैं। अब दूसरे सज्जन को जानिए। ये हैं पवन शंकर। साकची के डॉ. सुनील कुमार से जानना चाहते हैं कि मिट्टंी के बर्तन में भोजन पकाने के क्या फायदे हैं।
जी, हां। यह तो एक बानगी है। जीवन शैली में किसी तरह के आए नए चलन को अपनाने में जमशेदपुर हमेशा आगे रहता आया है। मिट्टंी के बर्तनों को लेकर लोगों का बढ़ता क्रेज इसी को रेखांकित कर रहा। लोगों की इसी पसंद को देखकर राजस्थान से आया एक बंजारा परिवार पूरे शहर में सड़क किनारे दिहाड़ी दुकानें लगाकर मिट्टी से बने बर्तन बेच रहा है। इसके अलावा शहर के प्रमुख बाजारों में स्थित कई दुकानों में भी ऐसे बर्तनों की बिक्री हो रही है।
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क्यों बढ़ रही पसंद
बिष्टपुर इलाके में सड़क किनारे गुजरात में बने तवे की खरीदारी कर रहे मानगो के महेश अग्रवाल बताते हैं कि नए जमाने के बर्तनों के बढ़े उपयोग के बाद बढ़ रही बीमारियों के कारण अब मिट्टी के बर्तनों का चलन बढ़ रहा हैे। दुकानदार लाला शर्मा बताते हैं कि मिट्टी के बर्तन में खाना देर से ठंडा होता है। इससे खाने को केसरोल में रखने की जरुरत नहीं होती है।
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पूरे परिवार संग करते व्यापार
शहर के अलग-अलग इलाकों में सड़क किनारे मिट्टंी के बर्तनों की बिक्री करनेवाले राधेश्याम अपनी पत्नी बन्नी बाई समेत पूरे परिवार के साथ राजस्थान से शहर आए हैं। ये मुख्य रूप से मिट्टंी के बनी तावड़ी (तवा) का व्यापार करते हैं। उनके परिवार के सदस्य साकची, बिष्टुपुर, जुबिली पार्क के पास, कदमा, परसुडीह समेत शहर की विभिन्न सड़कों के किनारे सुबह से शाम तक तवा बेचते हैं। दो दिन रहने के बाद ये नए स्थान पर चले जाते हैं।
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गुजरात निर्मित तवा बेचते हैं राधेश्याम
राधेश्याम बताते हैं कि ये लोग यह व्यापार पिछले पांच साल से कर रहे हैं। हर साल अलग-अलग शहरों में जाते हैं और मिट्टी की तावड़ी बेचते हैं। ये तावड़ी गुजरात स्थित राजकोट की एक फैक्ट्री में बनती है। वहां तावड़ी के साथ मिट्टी का कूकर, गिलास, थाली, कप से लेकर फ्रिज तक बनता है। तावड़ी विक्रेता दारा सिंह ने बताया कि उनके यहां सबसे ज्यादा तावड़ी ही बिकती है। एक तावड़ी पर 90 रुपये की लागत आती है, जिसे हम 100 रुपये में बेचते हैं।
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गैस की खपत बढ़ गई
एक ओर जहां मिट्टंी के बर्तनों में खाना पकाने का क्रेज बड़ रहा, वहीं दूसरी ओर इससे घर का बजट भी बढ़ जा रहा। मानगो की गृहिणी आशा सिंह बताती हैं कि मिट्टंी के बर्तन में खाना बनाना शुरू होने के बाद उनके घर में गैस की खपत डेढ़ गुना बढ़ गई है।
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क्या हैं फायदे
मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से खाने की पौष्टिकता बढ़ जाती है। हमारे शरीर को हर दिन 18 तरह के माइक्रो न्यूट्रीएंट्स की जरूरत होती है। यह सभी माइक्रो न्यूट्रीएंट्स मिट्टी में पाए जाते हैं और इसमें खाना पकाने से यह खाने में भी आ जाते हैं। इससे खाने की पीएच वैल्यू भी नियंत्रित रहती है। दूसरी ओर मिट्टी के बर्तन में खाना देरी से पकता है। इसलिए कम तेल की जरूरत होती है। इससे कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है। दूसरी ओर धातु के बर्तन में खाना पकाने से धातु के रसायन खाने में मिलते हैं। यही कारण है कि लोहे की कढ़ाई में भी खाना पकाने की सलाह दी जाती है जिससे शरीर को अधिक आयरन मिल सके।