Pravasi LIVE : मालिकों को बददुआ देते पैदल घर लौट रहे प्रवासी मजदूर
Pravasi LIVE. खाने-पीने में दिक्कत हुई तो मजदूरों को अपना गांव-घर याद आया और वे हजारों किलोमीटर की यात्रा पर पैदल ही निकल पड़े।
जमशेदपुर, जासं। खुद और परिवार के लोगों की भूख मिटाने गए और भुखमरी की वजह से लौट रहे हैं। ये वही लोग हैं जिनकी बदौलत शहरों में आलीशान बिल्डिंगें खड़ी हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियों के मालिक महंगी गाडिय़ों पर फर्राटा भरते हैं। फैक्ट्री चलाने वालों व ठेकेदारों की शाम रंगीन होती हैं। लॉकडाउन के बाद अधिकतर मालिक अपने मजदूरों की ओर देखे तक नहीं।
ज्यादातर ठेकेदार आधा-तिहाई ही वेतन दिए। कुछ तो एक धेला भी देना मुनासिब नहीं समझे। ऐसे मालिकों पर घर लौट रहे मजदूरों की बददुआ पड़ेगी। खाने-पीने में दिक्कत हुई तो मजदूरों को अपना गांव-घर याद आया और वे हजारों किलोमीटर की यात्रा पर पैदल ही निकल पड़े। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र से घर लौट रहे अधिकतर मजदूरों की हालत दयनीय नजर आई।
रांची-टाटा मार्ग पर प्रवासी मजदूरों का रेला
रांची-टाटा मार्ग पर प्रवासी मजदूरों का रेला लगा हुआ है। इसी तरह ओडिशा से प्रवासी मजदूर हाता-करनडीह और स्टेशन के बाद शहर होते हुए रांची-टाटा राजमार्ग से बिहार व उत्तर प्रदेश की ओर जा रहे हैं। घर लौट रहे दर्जनों मजदूरों से बातचीत हुई। वे लोग अपनी किस्मत को कोस रहे थे। अधिकतर ने कहा-जहां हम काम करते थे, वहां से कुछ मदद नहीं मिली। वेतन तक नहीं दिया गया। मकान मालिक को भी रहम नहीं आया। विपत्ति में अपना गांव-घर और अपने लोगों की यादें सता रही थीं।
दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए
टाटा-रांची राजमार्ग पर भिलाई पहाड़ी के पास बिहार के जमुई अपने घर जा रहे राम खिलावन मिले। बताया, छह माह पहले तमिलनाडु कमाने के लिए गया था। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से 'पत्थर' का काम करता था। दोस्तों के साथ सबकुछ ठीक चल रहा था। अचानक कोरोना ने कहर बरपा दिया। लॉकडाउन की वजह से चेन्नई व वाइजक में हमलोग दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए। मालिक ने मदद नहीं की। किसी तरह से सभी लोग मिलकर गाड़ी किराये पर किए और घर लौट रहे हैं। राम खिलावन के साथ जा रहे महेश राम ने बताया कि अब तो टाटा आ गए हैं। देख लीजिए, घर लौटने की खुशी चेहरे पर दिखाई दे रही है। रास्ते में क्या-क्या परेशानी हुई मत पूछिए। खाने-पीने का संकट ही रहा। आते वक्त वेतन भी नहीं मिला।
25 दिनों में पहुंचे जमशेदपुर
राजमार्ग पर नरगा गांव के पास ट्रक पर सवार मजदूरों को रोककर पूछा-कहां से आ रहे और कहां जाना है? इस पर एक ने कहा-महाराष्ट्र से भाई। 25 दिन पहले मुंबई से बिहार जाने के लिए साथियों के साथ पैदल निकले थे। तब पास में नौ हजार रुपये थे। अब कुछ नहीं बचा है। हमलोग जमशेदपुर पहुंचे हैं। रास्ते में कोई ट्रक वाला बैठा लेता था। कुछ मजबूर समझकर बिना किराये के आगे बढ़ा देते थे और कई चालक किराये भी लिए। आज जमशेदपुर दिखा तो राहत की सांस ली। उसके साथ के दर्जनों मजदूरों ने कहा-हम यही सोच रहे हैं कि जल्द से जल्द कैसे घर पहुंचे। अगर बिहार में काम मिल गया होता तो हम बाहर नहीं गए होते। आते वक्त मालिक ने मदद तक नहीं की।
मांग रहे पुराने जूते-चप्पल, दे रहे पैदल जाने वाले मजदूरों को
आशियाना सन सिटी के लोग वाहनों को रोककर प्रवासी मजदूरों को पानी की बोतल बांट रहे हैं। सौमित्र वर्मा ने बताया कि हमलोग पैदल चल रहे मजदूरों को पानी व पुराने जूते-चप्पल एक सप्ताह से मुहैया करा रहे हैं। युवकों की टोली आशियाना के हर घर से पुराने जूते व चप्पल मांग कर पैदल चलने वाले मजदूरों को दे रही है। सौमित्र के अलावा आलोक, रमेश, सावा पटेल, संजीव सिंह, राजीव लोचन, जूल्फीकर अहमद, डा. प्रवीण राणा, निलेश सिंह व विक्रम सर्राफ सेवा में लगे हैं। भिलाई पहाड़ी के पास कुछ समाजसेवियों की ओर से ठंडे पानी की व्यवस्था की गई है।