प्रवासी मजदूरों का दर्द : कहीं मिली मदद तो कहीं मालिक ने फेरी आंखें Jamshedpur News
लॉकडाउन ने जहां मजदूरों का रोजी-रोजगार छीन गया वहीं बेवजह परदेस में रहने की कोई वजह। आमदनी के साथ घर का चूल्हा भी बंद हो गया।
जमशेदपुर (जागरण संवाददाता)। कोरोना संक्रमण काल में मुसीबतों की सबसे बड़ी मार मेहनतकश मजदूरों की झोली में ही पड़ी। रोजी-रोजगार के लिए अपने घर-परिवार से सैकड़ों किलोमीटर दूर रहने वाले इन मजदूरों पर लॉकडाउन आफत लेकर आया है।
लॉकडाउन ने जहां मजदूरों का रोजी-रोजगार छीन गया वहीं बेवजह परदेस में रहने की कोई वजह। आमदनी के साथ घर का चूल्हा भी बंद हो गया। जमापूंजी खत्म होने के बाद वापस घर लौटना चुनौती बन गया था। ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश समेत देश के विभिन्न राज्यों में रोजगार के लिए गए लोगों को लॉकडाउन ने कई मुसीबत और चुनौतियों से रू ब रू कराया तो कई मजदूरों को इंसानियत से भी आमना-सामना कराया।
होली में घर आने के बाद वापस काम पर लौटते ही देश में लॉकडाउन हो गया। हाथ खाली और काम बंद। ऐसे में गुजर-बसर करना कठिन हो गया। कंपनी परिसर में ही रहने के कारण किराया संबंधी कोई परेशानी हुई, लेकिन काम बंद होने पर वेतन भी बंद हो गया और खाने के लाले पडऩे लगे। ये कहना है बोड़ाम प्रखंड क्षेत्र के बोंटा गांव निवासी रंजीत महतो का।
रंजीत बताते हैं कि वे सिविल मैकनिकल का काम करने ओडिशा के कङ्क्षलगानगर गए थे। लॉकडाउन के दौरान उन्हें मुश्किल हालातों से सामना करना पड़ा। भोजन के लिए मालिक सप्ताह में एक दिन काम कराते थे और उसके ऐवज में राशन सामग्री देते थे। ऐसे में कितना दिन काट सकते थे। हाथ खाली रहने के कारण घर वापसी भी आसान नहीं था। मजबूरन घरवालों से 42 सौ रुपये मंगाए और नई साइकिल खरीदा। साथ में रहने वाले पश्चिम बंगाल के दो और सरायकेला-खरसावां जिले के पांच लोगों के साथ साइकिल से ही निकल पड़े।
चार दिनों के सफर के बाद क्योंझर, चंपुवा, चाईबासा के रास्ते वापस घर पहुंचे। रास्ते में भोजन के लिए क्या किसी ने पानी के लिए भी नहीं पूछा। हालांकि रास्ते में कोई दिक्कत नहीं हुई। कई जगह पुलिस वालों ने रोका, पूछताछ की। रास्ता पूछने पर शहर के बाहर होकर जाने वाले रास्ते बताए। बताए कि शहर होकर जाने पर क्वारंटाइन में रख दिए जाओगे।
मिर्जाडीह, डिमना के राजेश कुशवाहा तेलंगाना के केजुअल शहर में स्टील कंपनी में काम करने गए थे। कंपनी बंद हो गई तो मजदूरी करने लगे।लॉकडाउन होने के बाद घर वापस लौटने के सारे उपाय बंद हो गए थे। बकौल राजेश लॉकडाउन के दौरान मकान मालिक का सहयोग मिला। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने मकान का किराया नहीं लिया। तेलंगाना सरकार की ओर से 12 किलो चावल और पांच सौ रुपये मिले थे। घर वापसी के लिए वहां के थाना से ही पास बना दिया गया।
सरकार बस रेलवे स्टेशन तक छोड़ा। आसपास मुस्लिम समुदाय के लोग रहते थे सभी ने सराहनीय सहयोग किया और स्टेशन तक छोडऩे भी पहुंचे। ट्रेन से उन्हें देवघर लाया गया। रास्ते में भोजन-पानी की सुविधा मिली थी। देवघर से जमशेदपुर बस से आने के दौरान कोई सुविधा नहीं मिली। रात को 12.30 में उन्हें डिमना चौक में उतार दिया गया। वहां से क्वारंटाइन सेंटर पैदल जाने के लिए कहा गया। अब सरकार से रोजगार मुहैया कराए जाने की आस है।