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यहां की माटी में बसी हैं महापुरुषों की यादें, जानिए 113 वर्ष पुराने इस शहर का सफर

महात्मा गांधी से लेकर नेताजी सुभाषचंद्र बोस पं. जवाहरलाल नेहरू डॉ. राजेंद्र प्रसाद खान अब्दुल गफ्फार खां लाल बहादुर शास्त्री विनोबा भावे आदि ने इस धरती को धन्‍य क‍िया है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Tue, 04 Feb 2020 03:02 PM (IST)Updated: Wed, 05 Feb 2020 08:42 AM (IST)
यहां की माटी में बसी हैं महापुरुषों की यादें, जानिए 113 वर्ष पुराने इस शहर का सफर
यहां की माटी में बसी हैं महापुरुषों की यादें, जानिए 113 वर्ष पुराने इस शहर का सफर

जमशेदपुर, जेएनएन। Memories of great men are settled in jamshedpur Jharkhand झारखंड की औद्योगिक राजधानी कहे जाने वाले जमशेदपुर को बसे हुए 113 वर्ष ही हुए हैं, लेकिन इसी अवधि में यहां देश के अनगिनत महापुरुषों का आगमन हुआ। महात्मा गांधी से लेकर नेताजी सुभाषचंद्र बोस, पं. जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सीमांत गांधी के नाम से लोकप्रिय खान अब्दुल गफ्फार खां, लाल बहादुर शास्त्री, विनोबा भावे, ठक्कर बापा, जयप्रकाश नारायण समेत कई हस्तियों ने यहां की धरती को धन्य किया। जब-जब ये आए, अपने कार्यो-योगदान से उन क्षणों को यादगार बना दिया।

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महात्‍मा गांधी ने कंपनी क्वार्टर में खोला था यूनियन कार्यालय

महात्मा गांधी 1925 में जब जमशेदपुर आए थे, उस वक्त टाटा के मजदूरों की समस्या गहरा गई थी। प्रबंधन से टकराव की नौबत हो गई थी। गांधीजी ने कंपनी प्रबंधन से बात करके ना केवल मजदूरों की समस्या का समाधान कराया, बल्कि टाटा वर्कर्स यूनियन का भी गठन किया। आनन-फानन में यूनियन कार्यालय के लिए प्रबंधन ने क्वार्टर उपलब्ध कराया, जो बिष्टुपुर के आउटर सर्किल रोड पर है। गांधीजी ने उसी क्वार्टर (एच 6-1) में टाटा वर्कर्स यूनियन (लेबर एसोसिएशन) की नींव रखी थी। टेबुल, कुर्सी, आलमारी, फाइल, कागज आदि मंगाया और इसी क्वार्टर में लगभग तीन घंटे तक रूककर टाटा स्टील के मजदूरों से बातचीत भी की थी। शहर के लिए यह क्वार्टर किसी धरोहर से कम नहीं है।

गांधी की देन टाटा वर्कर्स यूनियन

बिष्टुपुर स्थित अब्दुल बारी द्वारा बनवाया गया टाटा वर्कर्स यूनियन कार्यालय। 

टाटा स्टील (तब टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड) ना केवल भारत की सबसे बड़ी निजी इस्पात उत्पादक कंपनी है, बल्कि इसके मजदूरों का संगठन भी देश का सबसे धनी व बड़ा यूनियन है। आज बिष्टुपुर में यूनियन का जो भव्य कार्यालय भवन है, वह भी गांधीजी की ही देन है। उन्होंने इसकी नींव 1925 में कंपनी के एक क्वार्टर में रखी थी। वहां से मौजूदा परिसर में इसका स्थानांतरण 1978 में हुआ था, जब इसका नाम बारी स्मृति भवन रखा गया। भवन में माइकल जॉन आडिटोरियम व मानव संसाधन विकास केंद्र का उद्घाटन 1984 में कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव राजीव गांधी ने किया था। यह भारत में मजदूरों द्वारा संगठित पहला श्रमिक संघ माना जाता है। इस यूनियन का मार्गदर्शन करने वालों में देशबंधु चित्तरंजन दास, लाला लाजपत राय, पं. मोतीलाल नेहरू व दीनबंधु सीएफ एंड्रयूज भी शामिल रहे।

नेताजी पर जी. टाउन मैदान में हुआ था हमला

बिष्टुपुर स्थित इसी जी. टाउन मैदान में नेताजी ने की थी जनसभा। 

बिष्टुपुर स्थित जी. टाउन मैदान की पहचान आज खेलकूद के अलावा पूजा-समारोह स्थल की वजह से है। लेकिन यहां सभाएं भी होती हैं। इस मैदान पर 21 सितंबर 1931 को नेताजी सुभाषचंद्र बोस भी सभा कर चुके हैं। उसी दौरान उनपर हमला भी हुआ था। नेताजी को उनके समर्थकों ने किसी तरह बचा लिया था, लेकिन उस हमले में कुल 40 लोग घायल हुए थे। नेताजी की वजह से यह मैदान जमशेदपुर के इतिहास का हिस्सा बन गया। नेताजी 1928 से 1936 तक टाटा वर्कर्स यूनियन (तब लेबर एसोसिएशन) के अध्यक्ष रहे। इससे पहले आठ अप्रैल 1929 को भी लेबर एसोसिएशन कार्यालय पर हमला हुआ था। इसके बावजूद नेताजी मजदूरों के लिए संघर्षरत रहे।

नेहरू ने जुबिली पार्क में लगाया था बरगद का पौधा

जमशेदपुर शहर के बहुचर्चित जुबिली पार्क में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु द्वारा लगाया गया बरगद का पेड़। 

प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू वैसे तो जमशेदपुर कई बार आए, लेकिन वर्ष 1958 का दौरा आज भी जीवंत अवस्था में है। टाटा स्टील की स्थापना के 50 वर्ष पूरे होने की खुशी में जुबिली पार्क जनता को समर्पित किया गया था। स्वर्ण जयंती समारोह में आए पं. नेहरू ने बरगद का पौधा लगाकर जुबिली पार्क का उद्घाटन किया था। नेहरू ने यहां के रोज गार्डेन की काफी तारीफ की थी। कई वर्ष तक टाटा कंपनी नेहरू को लाल गुलाब भेजती रही, जिसे वे बड़े शौक से अपनी कोट में लगाते थे। करीब 500 एकड़ में फैला जुबिली पार्क जमशेदपुर शहर की पहचान है। यहां आने वाले सैलानी आज भी उस बरगद के पास आकर ठहर जाते हैं, जहां शिलापट पर इस पार्क के साथ पं. नेहरू के संबंध उकेरे गए हैं।

पोटका के कालिकापुर में नेताजी ने की थी सभा

 पटमदा स्थित कालिकापुर में सभा करते नेताजी सुभाष चंद्र बोस। 

नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आंदोलन की लड़ाई के क्रम में पांच दिसंबर 1934 को पोटका आए थे, जहां उन्होंने कालिकापुर में जनसभा की थी। नेताजी यहां के कुम्हारों पर अंग्रेजी शासन के दमन की कहानी सुनकर आए थे। कुम्हारों ने कालिकापुर थाना पर हमला करके अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब भी दिया था, जिससे नेताजी काफी प्रभावित हुए। नेताजी का यहां के लोगों ने ढोल नगाड़ा बजाकर स्वागत किया था। नेताजी के लिए करीब सवा किमी तक सड़क खचाखच भर गया था। उन्होंने दो घंटे तक बांग्ला में भाषण दिया था। यहां से नेताजी घाटशिला में हंिदूुस्तान कॉपर लिमिटेड के मजदूरों द्वारा आयोजित जनसभा को संबोधित करने के बाद चाकुलिया व बहरागोड़ा होते हुए कोलकाता रवाना हो गए थे। कालिकापुर की सभा में नेताजी जिस कुर्सी पर बैठे थे। उनके सामने जो टेबुल रखी गई थी, उसे आज भी स्व. ईशानचंद्र भकत का परिवार धरोहर के रूप में संजोकर रखे हुए है। उनकी स्मृति में 1996 में कालिकापुर में नेताजी सुभाष चन्द्र उच्च विद्यालय की स्थापना की गई, जो आज भी चल रही है।

यूनाइटेड क्लब के मैदान में गांधी ने की थी जनसभा

बिष्टपुर स्थित यूनाइटेड क्लब परिसर के पीछे का मैदान, जहां गांधी ने की थी सभा। 

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दो बार जमशेदपुर आए थे, लेकिन उनकी पहली यात्र बहुत महत्वपूर्ण रही। पहली बार गांधीजी 1925 में टाटा वर्कर्स यूनियन (तब लेबर एसोसिएशन) के अध्यक्ष दीनबंधु सीएफ एंड्रयूज के बुलावे पर जमशेदपुर आए थे। इस दौरान उन्होंने यूनाइटेड क्लब (टिस्को इंस्टीट्यूट) परिसर के पीछे मैदान में एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया था। इसमें टाटा स्टील (टिस्को) कर्मचारियों के अलावा शहर के अनगिनत नागरिक भी उपस्थित थे। इस सभा में गांधीजी ने टाटा कंपनी और कर्मचारियों के बीच स्थापित संबंध पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा था कि टाटा घराने का यहां के मजदूरों के साथ जैसा दोस्ताना माहौल है, उससे यह स्थान छोटा स्वराज जैसा लगता है। उन्हें उम्मीद है कि यह संबंध दिनोंदिन प्रगाढ़ होगा। प्रबंधन व यूनियन इस वृहद परिवार के हित में एकता व शांति की दिशा में प्रयासरत रहेगी। उन्होंने कहा कि यह संबंध कंपनी के बाहर भी स्थापित होना चाहिए। यदि इसमें सफलता मिलती है, तो सच्चे अर्थो में स्वराज की स्थापना होगी।

धतकीडीह स्थित हरिजन बस्ती में गांधी ने मांगा था चंदा

धतकीडीह स्थित हरिजन बस्ती, जहां महात्मा गांधी ने मांगा था चंदा। 

महात्मा गांधी दूसरी बार 1934 में जमशेदपुर आए थे। उस वक्त गांधीजी हरिजन आंदोलन के दौरान भारत भ्रमण के क्रम में सड़क मार्ग से रांची होते हुए आए थे। यहां उनका गर्मजोशी से स्वागत हुआ था। इस बार उनके साथ डॉ. राजेंद्र प्रसाद व खान अब्दुल गफ्फार खां उर्फ सीमांत गांधी भी थे। इन्होंने यूनाइटेड क्लब में सभा करके आने का उद्देश्य बताया, फिर यहीं से धतकीडीह स्थित हरिजन बस्ती भी गए थे। यहां उन्होंने हरिजन आंदोलन के लिए चंदा भी एकत्र किया था।

जुगसलाई के गार्डेन हाउस में महात्मा गांधी ने गुजारी थी रात

जुगसलाई के गार्डेन हाउस में रखा बिस्तर, जिसपर सोए थे गांधी जी। 

देश को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाने के लिए जुगसलाई के गार्डेन हाउस में आजादी के दीवाने जुटा करते थे। यहां बैठकें होती थीं, जिसमें देश को आजाद कराने की रणनीति बनती थी। जुगसलाई स्थित एतिहासिक गार्डेन हाउस के उस कमरे को आज भी सुरक्षित रखा गया है, जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद अपने साथियों के साथ बैठक किया करते थे। स्व. मुरलीधर अग्रवाल के प्रपौत्र विट्ठल अग्रवाल कहते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिस गद्दे पर बैठते थे, जिस बिस्तर पर रात गुजारे थे उसे संजोकर रखा गया है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जुगसलाई रामटेकरी रोड स्थित स्वतंत्रता सेनानी सह समाजसेवी स्व. मुरलीधर अग्रवाल के घर गार्डेन हाउस में 1934 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आए थे और रात गुजारी थी। उस समय की दास्तान आज भी स्व. मुरलीधर के भतीजे 74 वर्षीय संतुलाल खंडेलवाल सुनाते हैं।

पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस में चार माह रहे विनोबा भावे

चमरिया गेस्ट हाउस के पास पीडब्ल्यूडी का गेस्ट हाउस। 

विनोबा भावे का भी इस शहर से गहरा संबंध रहा है। विनोबा यहां ग्राम दान आंदोलन के दौरान 19 दिसंबर 1965 को आए थे। उसके एक दिन बाद लाल बहादुर शास्त्री आए। दोनों की जमशेदपुर वीमेंस कालेज (तब पत्थर स्कूल) में दोनों की मीटिंग हुई। विनोबा भाव यहां चाईबासा होते हुए आए थे और यहां से उन्हें ओडिशा जाना था, लेकिन बीमार पड़ गए। उस समय उनके सहयोगी रहे चंद्रमोहन सिंह बताते हैं कि विनोबा भावे बीमारी की अवस्था में बिष्टुपुर स्थित चमरिया गेस्ट हाउस के पास पीडब्ल्यूडी के गेस्ट हाउस में रहे। स्वस्थ होने के बाद करीब साढ़े चार माह बाद विनोबा यहां से ओडिशा गए। विनोबा इससे पहले भूदान आंदोलन में भी आए थे, लेकिन चांडिल में सभा करके ओडिशा चले गए थे।

गोपाल मैदान में गांधी-शास्त्री समेत कई ने की सभा

बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान, जहां लाल बहादूर शास्त्री व गांधी जी ने की थी सभा। 

बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान इस मामले में इतिहास के पन्नों में दर्ज है, क्योंकि यहां महात्मा गांधी से लेकर लाल बहादुर शास्त्री तक की सभा हुई थी। महात्मा गांधी ने 1934 के दौरे में यूनाइटेड क्लब के अलावा यहां भी सभा की थी, जबकि लाल बहादुर शास्त्री ने 21 दिसंबर 1965 को इस मैदान में विनोबा भावे के साथ जनसभा को संबोधित किया था। शास्त्री यहां से जाने के बाद दिल्ली होते हुए ताशकंद गए थे, जहां उनकी मौत हो गई। इस मैदान में पं. जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी व राजीव गांधी भी सभा कर चुके हैं।

प्रस्तुति - वीरेंद्र ओझा, मनोज सिंह, विद्या शर्मा


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