ज्योतिष के आडंबर से किसी का हित नहीं होने वाला
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में चली रही श्रीराम कथा के छठवें दि
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में चली रही श्रीराम कथा के छठवें दिन गुरुवार को मोरारी बापू ने हर आयु वर्ग के लोगों को जीवनोपयोगी गूढ़ रहस्यों से अवगत कराया। मोरारी बापू ज्योतिष की आडंबरी व्यवस्था पर अपनी खिन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि ज्योतिष एक शास्त्र है। एक गणित है। एक ज्ञान है। लेकिन, अगर आत्मबल मजबूत हो तो हाथों में लिखे प्रारब्ध को बदला जा सकता है। इससे इस गणित को झुठलाया भी जा सकता है। हांथों में लिखे प्रारब्ध को हरि भजन भी मिटा सकता है। राम रूप, राम नाम और चित्रकूट धाम का सत्संग भाग्य परिवर्तन का आधार बन सकता है। ज्योतिष के आडंबर से किसी का हित नहीं होने वाला। मानस सत्संग के संवाद के रूप में बापू युवाओं को, दांपत्य जीवन जी रहे जोड़ों को कुछ न कुछ प्रेरक मंत्र देते जा रहे थे। युवा शक्ति का आह्वान करते हुए बापू ने बताया कि युवा देश की और मेरी कथा की शान हैं। युवाओं को घटों पूजा कक्ष में बैठकर पूजा करने की परंपरा का हिमायती न बनाकर उन्हें देश, समाज और परिवार के संरक्षण और विकास के कार्य में लगना चाहिए। बापू ने मनुष्य तन की चर्चा करते हुए बताया कि राग, द्वेष के बाद भी मनुष्य तन मिला तो इसका अर्थ यह है कि बहुत कृपा हुई और परमात्मा ने रहमत बरसाई है। जबकि हम कर्म से इस तन के योग्य नहीं थे। माला बेचने वालों को दी नसीहत
सड़कों पर रुद्राक्ष, तुलसी और अन्य धार्मिक सामग्री बेचने वालों से ऐसा न करने की अपील करते हुए बापू ने आग्रह किया कि मेरी तस्वीर का गलत उपयोग करके ऐसी सामग्री न बेचें। मेरी कोई भी आधिकारिक दुकान या एजेंसी ऐसे कार्यो हेतु नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर निर्ममता से कहूं तो यह है कि मेरी बातों को बाटा जाए, लेकिन बेचा न जाए। नेताओं ने की दलितों की गलत व्याख्या
भगवान के मुखकमल से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय, पेट से वैश्य, पैरों से शूद्र की उत्पत्ति हुई है। लेकिन, नेता और राजनेताओं ने अपने-अपने फायदे के लिए स्वार्थवश दलितों की गलत व्याख्या कर दी है। जबकि बिना पैरों के संपूर्ण शरीर का कोई सार्थक मोल नहीं। गौशाला है मानस
सत की चर्चा करते हुए बापू ने बताया कि सत का अर्थ है सतीत्व का समावेश। पृथ्वी स्त्री रूपा हैं, उनमें भी सतीत्व भाव का पदार्थ मिश्रित है। मानस की नई पहचान से उपस्थित श्रोताओं को परिचित कराते हुए बापू ने बताया कि मानस एक गौशाला है। गंगा और सत्संग समान
सत्संग की महत्ता को बताते हुए बापू ने कहा कि सत्संग का कोई मैप नहीं है। यह रहस्यपूर्ण गैप है। गंगा और सत्संग सामान है। गंगा में स्नान करें या साधु की आंखों की आंसुओं की धारा में खो जाएं, बात एक ही है। सत्संग कभी भी बिना हरि कृपा के नहीं मिलता और हरि कृपा बिना संत नहीं मिलती। समझें प्रभु स्मरण का संकेत
मोरारी बापू ने बताया कि तमाम दायित्वों का निर्वाहन करने के बाद भी अगर रात को नींद न आए तो यह संकेत है कि परमात्मा उस जीव को याद कर रहे हैं। अत: सोने से पहले अंतिम क्रिया के रूप में भजन करना चाहिए। मनुष्य को सदैव ऊपर ले जाता है संत
गंगा को भगीरथ की तपस्या के बाद भी नीचे की ओर आना पड़ा, जबकि संत का संग सदैव मनुष्य को ऊपर ले जाता है। संत मनुष्य को मोह माया और बंधन से मुक्त करते हुए अवरोधों से ऊपर ले जाते हैं। बापू ने बताया कि भक्ति स्वतंत्र है। बिना किसी बंधन के उपलब्ध है, लेकिन मिलती है केवल हरि कृपा से ही। हरि कृपा भी मिलती है तो केवल संत के आश्रय के साथ।