जमशेदपुर के बारीगोड़ा के मिथिलेश की मौत से उठे कई सवाल, कठघरे में व्यवस्था Jamshedpur News
आयुष्मान कार्डधारी को पांच लाख रुपए तक का इलाज फ्री है। लोग भी यही जानते हैं। परंतु लोगों का जब हकीकत से सामना होता है तो होश ठिकाने आ जाते हैं।
जमशेदपुर। जी हां,अव्यवस्था एवं लापरवाही की मार से बारीगोड़ा निवासी मिथिलेश सिंह की मौत हो गयी। कुछ ऐसी ही चर्चा है मिथिलेश के मौत पर। वह मेडिका में इलाजरत था। भुईयांडीह स्थित बर्निंग घाट पर गमगीन वातावरण में मिथिलेश का दाह संस्कार कर दिया गया। इस दौरान उसकी पत्नी और दो मासूम बच्चों का ध्यान कर हर कोई गमगीन था।
बताया जाता है कि मिथिलेश सिंह किडनी की बीमारी से ग्रसित थे। उनका इलाज बिष्टुपुर स्थित मेडिका अस्पताल में चल रहा था। 15 जून को उन्हें मेडिका अस्पताल में भर्ती कराया गया था। परिवार वालों ने बताया कि आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद एक रुपया का लाभ नहीं मिला। अस्पताल के हैरान करनेवाले तर्क थे। मरीज को भर्ती के लिए अस्पताल द्वारा शुरू में बीस हजार रुपए की मांग की गयी थी। परंतु उसकी पत्नी शुरू में महज पंद्रह हजार रुपए ही जमा करा पायी। तब जाकर मरीज को भर्ती लिया गया। दूसरा डायलोसिस होने के बाद मरीज को ब्रेन हैमरेज हो गया तथा शरीर के एक हिस्से में पैरालाइसिस अटैक हो गया। जैसा डॉक्टर ने मरीज के परिवार वालों को बताया। फिर मरीज को आईसीयू में भर्ती कर दिया गया। परिजनों का आरोप है कि अस्पताल में घोर अनियमितता बरती गयी, वह भी कई बार। आरोप है कि मरीज को वैंटिलेटर पर रखकर इलाज के नाम पर सिर्फ बिल बढ़ाया गया।
ये है परिजनों का आरोप
परिजनों का आरोप है कि बार-बार सिर्फ पैसा जमा करने को कहा जा रहा था। सीटी स्कैन के लिए रकम मांगी गई। फिर पांच हजार जमा कराया गया। परंतु सीटी स्कैन नहीं हुआ। सिर्फ एक बार पूर्व में हुआ था। परिजनों का आरोप है कि जब मरीज वैंटिलेशन पर था फिर सीटी स्कैन कैसे संभव था ? मिथिलेश की सांसे थम गयी। वह इस दुनिया को अलविदा कह कर चला गया। पर कई सवाल छोड़ गया। आयुष्मान कार्ड पर इलाज के दावे का क्या हुआ ? यदि सरकार गरीब की सुनती है तो फिर इस बेवश बेचारी की आवाज क्यों नहीं सुनी गयी ?
पत्नी पर टूटा दुखों का पहाड़, मासूमों के सिर से छिना साया
मिथिलेश की मौत से उसकी पत्नी लवली पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा है। दो मासूम बच्चे हैं उसके। आर्थिक तंगी है वो अलग से। आर्थिक तंगी ने लवली को वह दिन देखने पर मजबूर किया जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी। सुहाग की रक्षा के लिए हर मुमकिन कोशिश की। यहां-वहां भागी, हर चौखट पर दस्तक दी जहां से मदद की आस नजर आयी। परंतु नाकाम रही अपनी सुहाग को बचाने में। सुहाग छिन गया। परंतु पति की मौत के बाद भी पति का शव लेने में उसे बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। अस्पताल का भारी-भरकम बिल था। लगभग पचास हजार रुपए देने के बाद ही उसे पति का शव मिला। जिसका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
आयुष्मान योजना की सार्थकता पर उठा सवाल
आयुष्मान कार्डधारी को पांच लाख रुपए तक का इलाज फ्री है। लोग भी यही जानते हैं। परंतु लोगों का जब हकीकत से सामना होता है तो होश ठिकाने आ जाते हैं। अस्पताल का अपना ही तर्क है। ऐसे में कई ऐसे मामले उजागर हुए जो आयुष्मान योजना की हकीकत पर सवाल खड़े किए हैं। सामाजिक कार्यकर्ता राजेश कुमार आजाद ने कहा कि आयुष्मान कार्ड के बावजूद लोगों का इलाज नहीं होना व्यवस्था में दोष को दर्शाता है। सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग को इस विरोधाभास को दूर करना चाहिए ताकि आम लोगों को आयुष्मान योजना के बारे में सही जानकारी मिल सके। उन्होंने कहा कि मिथिलेश का मौत उदाहरण है कि आयुष्मान कार्ड था फिर भी एक रुपया का लाभ नहीं मिला।
नहीं मिल सका मुख्यमंत्री गंभीर बीमारी योजना का लाभ
मुख्यमंत्री गंभीर बीमारी योजना का लाभ लेने के लिए प्रयासरत थीं उसकी पत्नी। आय प्रमाण पत्र हासिल हो गया था। आवासीय की जटिलता ने देर कर दी और मिथिलेश की सांसे रुक गयी। सवाल है किसी के पास आधार में पता उल्लेखित है, वोटर कार्ड और वोटर लिस्ट में भी वही पता दर्ज है, गांव के सैकड़ों लोग गवाह है कि वह व्यक्ति का निवास अमुक है। मुखिया और वार्ड सदस्य भी गवाह हैं, फिर आवासीय की जटिलता क्यों ? यह बड़ा सवाल है। उनका तर्क है नियम जरूरतमंदों की सहूलियत के लिए बनता है लेकिन व्यवस्था ने जटिलता की बेड़ियां डालकर वाजिब लोगों को इससे दूर कर दिया है।
प्रस्तुति : दीपक कुमार।