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इस पूजा से भरा रहता है अन्न भंडार, जानिए झारखंड की अनोखी पूजा के बारे में

कुड़मी समाज के कृषक धान काटने के बाद लक्ष्मी स्वरूप ठकुराइन पूजा करते हैं। इसके बाद ही वे अपने खलिहानों में धान झाडऩे का काम शुरू करते हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 08 Dec 2018 05:12 PM (IST)Updated: Sat, 08 Dec 2018 05:12 PM (IST)
इस पूजा से भरा रहता है अन्न भंडार, जानिए झारखंड की अनोखी पूजा के बारे में

जमशेदपुर [दिलीप कुमार]। झारखंड के कुड़मी समाज के किसानों के बीच यह अनूठी परंपरा प्रचलित है। मान्यता है कि इस पूजा से किसानों का अन्न भंडार भरा रहता है। मूलवासी कुड़मी समाज के कृषक धान काटने के बाद लक्ष्मी स्वरूप ठकुराइन पूजा करते हैं। इसके बाद ही वे अपने खलिहानों में धान झाडऩे का काम शुरू करते हैं।

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पूजा के लिए कोई खास तिथि निर्धारित नहीं रहती है। अमूमन यह पूजा अगहन संक्रांति यानी 15 दिसंबर तक कर ली जाती है। यह रोचक परंपरा इस समाज में आदिकाल से चली आ रही है। मान्यता है कि ऐसा करने से अन्न भंडार हमेशा भरा रहता है। अन्न यहां महादेवी महामाया है। उत्पादन कार्य उसकी पूजन पद्धति। अन्न उगाने की जनजातीय पद्धति के सभी चरण यहां पूजन पर्व हैं। जनजातीय परंपरा में अन्न उगाने के लिए खेत जुताई की शुरुआत आखाइन जातरा कहलाता है। उसी दिन से जनजातीय कृषि परंपरा का नया वर्ष आरंभ होता है।

यूं निभाते हैं इस अनूठी  परंपरा को कुड़मी कृषक

फसल तैयार होने के बाद किसान धान काटने का काम करते हैं। धान काट कर खलिहान तक पहुंचाने का काम अमूमन अगहन संक्रांति यानी 15 दिसंबर तक पूरा कर लिया जाता है। कुड़मी समाज में धान को खलिहान तक पहुंचाने की भी रोचक परंपरा है। किसान सभी धान खलिहान में नहीं लाते हैं। घर के पास वाले या रहीन के दिन जिस खेत में धान की बुवाई किए थे उस खेत में धान के दो तीन पौधे छोड़ दिए जाते हैं। उसे ही ठकुराइन कहा जाता है। धान काटने के बाद विशेष दिन देखकर किसान खेत से विधि पूर्वक ठकुराइन को खलिहान में लाते हैं। खलिहान में चावल के आटे से चारों ओर रंगोली बनाते हैं। किसान शुद्ध होकर शाम के वक्त खेत जाते हैं। रीति रिवाज के अनुसार पूजा कर खेत में छोड़े गए धान के आधे पौधा को काट कर और आधे को मिट्टी समेत सिर पर रख कर खलिहान लाते हैं।

फूलों से करते ठ‍कुराइन की सजावट

ठकुराइन को फूलों से सजाया जाता है। इसे लक्ष्मी स्वरूप खलिहान में स्थापित करते हैं। दूसरे दिन किसान खलिहान में प्रवेश नहीं करते। न ही खेती किसानी से संबंधित कोई काम करते हैं। घर में सिर्फ खान-पान और जश्न का माहौल रहता है। इसके बाद सुविधा अनुसार धान झाडऩे का काम प्रारंभ करते हैं। धान झाडऩे का काम खत्म होने के बाद ठकुराइन को घर के अंदर धान रखने वाले स्थान पर रखा जाता है। इस दौरान रोज शाम को घर की महिलाएं खलिहान में संध्या बत्ती दिखाकर पूजा करती हैं। दूसरे वर्ष बुवाई के समय इस धान को भी खेत में डालकर अच्छी फसल की कामना की जाती है।

रहीन के दिन धान की बुवाई से शुरू करते हैं खेती कार्य

इस समुदाय के कृषक खेती कार्य रहीन के दिन सांकेतिक रूप से धान की बुवाई कर करते हैं। बंगला कैलेंडर के जेठ माह के 13वें दिन रहीन शुरू होता हैै। सप्ताह भर यह रहता है। किसान इस रोज कांसा के बर्तन में धान और लोटा में पानी लेकर धान की बुवाई करते हैं। घर में पूर्वजों व रास्ते में ग्राम देव व अन्य सभी को प्रणाम कर बिना किसी से बात किए खेत जाते हैं। वहां कुदाल से मिट्टी खोदकर उसमें गोबर मिलाते हैं। इसमें बीज डाल पानी डालते हैं। इसके बाद आराध्यदेव से अच्छी फसल की कामना करते हैं।

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