दो साल से पैसे को तरस रहे झारखंड के रणजी क्रिकेटर, जानिए-क्यों बढ़ी परेशानी
झारखंड सहित देश के अन्य राज्यों के रणजी क्रिकेटरों को पिछले दो साल से न तो मैच फीस मिला है और न ही बीसीसीआइ से मिलने वाला पर्क।
जितेंद्र सिंह, जमशेदपुर। एक कहावत तो आपने तो सुनी होगी, ‘ऊंची दुकान, फीकी पकवान।’ आजकल क्रिकेट के गलियारे में यह कहावत चर्चा-ए-आम है। भले ही झारखंड राज्य क्रिकेट एसोसिएशन करोड़पति खेल संघ हो या फिर भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआइ) खुद को विश्व की सबसे धनी संस्था होने की दंभ भरती हो, लेकिन आज उसी के खिलाड़ी एक-एक पैसे को मोहताज है।
झारखंड सहित देश के अन्य राज्यों के रणजी क्रिकेटरों को पिछले दो साल से न तो मैच फीस मिला है और न ही बीसीसीआइ से मिलने वाला पर्क। लेकिन जीवटता की प्रतिमूर्ति खिलाड़ियों ने उफ तक नहीं की। आम तौर पर एक रणजी क्रिकेटर को मैच फीस, डीए व बीसीसीआइ से मिलने वाले लाभांश मिलाकर कुल 10 से 12 लाख रुपये तक मिलते हैं। मैच फीस प्रति मैच दस हजार रुपये दिए जाते हैं, जबकि झारखंड राज्य क्रिकेट एसोसिएशन अपनी ओर से प्रति खिलाड़ी को प्रतिदिन के हिसाब से आठ सौ रुपये डीए देता है। एक तरफ तो जेएससीए के पदाधिकारी कहते हैं कि पिछले सीजन का मैच फीस खिलाड़ियों को दे दिया गया है, वहीं दूसरी ओर झारखंड रणजी टीम के एक सीनियर खिलाड़ी ने बताया कि यह सही है कि उन्हें बीसीसीआइ की ओर से पिछले दो साल से कुछ भी नहीं मिला है।
मैच फीस राज्य संघ के मार्फत से बीसीसीआइ देती है, लेकिन लाभांश सीधे संबंधित रणजी क्रिकेटर के खाते में जाता है, जो करीब छह लाख के करीब होता है। गौरतलब है कि बोर्ड ने लाभांश का 26 फीसद क्रिकेटरों को देने का फैसला किया है। जिसमें 13 फीसद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर को दिया जाता है, वहीं 10.6 फीसद घरेलू क्रिकेटरों को दिया जाता है। बाकी बचा लाभांश महिला क्रिकेटर व जूनियर क्रिकेटरों के बीच बांटा जाता है।
लोढ़ा कमेटी की रिपोर्ट लागू नहीं होने का असर:
सूत्रों की माने तो राज्य संघों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को लागू नहीं किया है, यही कारण है कि पूर्व सीएजी प्रमुख विनोद राय के नेतृत्व में गठित कमेटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन ने राज्य संघों को दिया जाने वाला फंड रोक दिया।
जूनियर क्रिकेटरों का बुरा हाल:
राज्य के सीनियर क्रिकेटर को छोड़ दीजिए, इसका सीधा असर जूनियर क्रिकेटरों पर पड़ रहा है। पिछले दो साल से वह पैसे मिलने की बाट जोह रहे हैं। झारखंड अंडर-16 टीम के एक खिलाड़ी के अभिभावक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कम से कम पैसे मिल जाते तो कोई भी खिलाड़ी आगे का कॅरियर पर ध्यान देता। 25 अगस्त को बीसीसीआइ के कार्यवाहक सचिव ने कहा था कि खिलाड़ियों के बकाया राशि का भुगतान सीधे उनके खाते में किया जाएगा। लेकिन दूसरा सीजन भी खत्म हो गया, आज तक खिलाड़ी पैसे आने का इंतजार ही कर रहे हैं।
देश भर के 500 क्रिकेटर प्रभावित:
बीसीसीआइ के इस रवैये से देश भर के लगभग 500 क्रिकेटर प्रभावित हैं। एक क्रिकेटर ने कहा कि जो खिलाड़ी इंडियन प्रीमियर लीग का हिस्सा नहीं है और प्रथम श्रेणी क्रिकेट के मैच फीस पर ही निर्भर है, उसका क्या होगा।
एक खिलाड़ी को एक सीजन में औसतन मिलते दस लाख:
एक खिलाड़ी को मैच फीस, डीए व लाभांश मिलाकर 10 लाख रुपये से अधिक मिल जाता है। इस बार झारखंड टीम ने रणजी ट्रॉफी, विजय हजारे ट्रॉफी व सैयद मुश्ताक ट्रॉफी मिलाकर कुल 24 मैच खेले हैं। झारखंड ने रणजी ट्रॉफी के छह मैच (कुल 24 दिन), विजय हजारे ट्रॉफी के छह मैच (छह दिन) व सैयद मुश्ताक ट्रॉफी के चार मैच (चार दिन) खेले हैं। कुल मिलाकर खिलाड़ी ने 34 दिन मैदान पर बिताए। दस हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से एक खिलाड़ी को तीन लाख 40 हजार रुपये सिर्फ मैच फीस के तौर पर मिलने हैं। इसके अलावा 800 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से डीए मिलता है। अनुकूलन शिविर से लेकर सीजन खत्म होने तक प्रतिदिन के हिसाब से डीए मिलता है। लगभग तीन लाख रुपये प्रति खिलाड़ी का डीए बन जाता है। इसके बाद लगभग चार से छह लाख रुपये तक बीसीसीआइ द्वारा लाभांश प्रदान किया जाता है। जेएससीए अध्यक्ष कुलदीप सिंह ने से जब इस बाबत पूछा गया तो कुछ भी पता होने से इंकार किया।
निरंजन शाह ने माना, राशि बकाया
नेशनल क्रिकेट अकादमी के चेयरमैन निरंजन शाह ने दैनिक जागरण को दूरभाष पर बताया कि 2015-16 का बकाया का भुगतान तो कर दिया गया है, लेकिन 2016-18 सीजन की बकाया राशि का क्रिकेटरों को अब भी इंतजार है। रणजी खिलाड़ियों को प्रति मैच प्रति दिन दस हजार रुपये मिलते हैं, साथ ही लाभांश का 10.6 राशि उनके बैंक खाते में जाता है।