कैंपस : सिनेमा को पढ़ाई का हिस्सा बनाया जाए : डॉ. विजय शर्मा
जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज में संकाय विकास कार्यक्रम के दसवें दिन पहले और दूसरे सत्र में स्त्रोतविद् के रूप में डॉक्टर विजय शर्मा उपस्थित थीं। उन्होंने सिनेमा स्टडीज इन हायर एजुकेशन विषय पर गंभीर चर्चा की।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज में संकाय विकास कार्यक्रम के दसवें दिन पहले और दूसरे सत्र में स्त्रोतविद् के रूप में डॉक्टर विजय शर्मा उपस्थित थीं। उन्होंने सिनेमा स्टडीज इन हायर एजुकेशन विषय पर गंभीर चर्चा की। प्रतिष्ठित फिल्मों की चुनिंदा क्लिप दिखाकर उन्होंने विभिन्न वैचारिक संदभरें को उजागर किया और बताया कि सिनेमा का फार्मेट इंक्लूसिव है। इसमें दृश्य, ध्वनि, रंग, संगीत, मौन, सजीव, निर्जीव सभी की उपस्थिति हुआ करती है। इसलिए मानव चेतना पर इसका गहरा और बहुआयामी प्रभाव पड़ता है। दुनिया सहित भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में सिनेमा पढ़ाई का हिस्सा है। झारखंड में भी सिनेमा का भविष्य बेहतर है। इसकी शुरुआत यहा के विश्वविद्यालयों की उच्च शिक्षा में सिनेमा को पाठ्यक्रम के रूप में शामिल करके की जा सकती है।
दूसरे सत्र में उन्होंने एफ्रो अमेरिकन साहित्य और भारतीय दलित साहित्य आदोलन के बीच तुलना करते हुए बताया कि एफ्रो अमेरिकी समुदाय के लोग वषरें तक रंगभेद और नस्लभेद केआधार पर सताए जाते रहे। इस कार्यशाला को स्त्रोतविद् के रूप में आकाशवाणी और दूरदर्शन की ग्रेड ए वोकलिस्ट प्रज्ञा बनर्जी ने भी अपना विचार रखा। सभी समन्वयक डॉ. काकोली बसाक ने किया।
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समाज को बदलने, नई दिशा देने की क्षमता रखने वाला ही शिक्षक : डॉॅ. सिंह
जासं, जमशेदपुर : वीमेंस कॉलेज में आयोजित कार्यशाला के तीसरे सत्र में एलबीएसएम कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अमर सिंह ने उच्च शिक्षा की चुनौतियों के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि शिक्षक को समाज को नई दिशा देने के लिए आगे आने होगा। जैसा कि चाणक्य ने किया था। शिक्षक का मूल्यांकन उसके पर्क्स से या फिर सैलरी से आकलन नहीं किया जा सकता। शिक्षकों को उसके गुरु समान गुर से समझा झा सकता है। डॉ. सिंह ने उच्च शिक्षा पर चर्चा करते हुए कहा कि अकादमिक संस्कृति में आमूलचूल बदलाव की जरूरत है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए शिक्षकों की पर्याप्त संख्या, आधारभूत संरचना, नई तकनीकों सुलभता आवश्यक हुआ करती है। झारखंड सहित भारत के कई राज्यों में उच्च शिक्षा में इनका अभाव है। इसके चलते गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में हम पिछड़ रहे हैं और यही कारण है कि दुनिया भर के विश्वविद्यालयों की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में राज्यों के विश्वविद्यालय जगह नहीं बना पाते।