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एक दूजे के संस्कृति व भावना से परिचित हो रही विश्व के जनजाति Jamshedpur News

बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में चल रहे संवाद के तीसरे दिन विश्वभर के आदिवासियों की पारंपरिक कला-संस्कृति की झलक देखने को मिली।

By Edited By: Published: Mon, 18 Nov 2019 08:00 AM (IST)Updated: Mon, 18 Nov 2019 09:42 AM (IST)
एक दूजे के संस्कृति व भावना से परिचित हो रही विश्व के जनजाति Jamshedpur News

जमशेदपुर (जासं)। बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में चल रहे संवाद के तीसरे दिन विश्वभर के आदिवासियों की पारंपरिक कला-संस्कृति की झलक देखने को मिली। टाटा स्टील द्वारा आयोजित संवाद में रविवार शाम गोपाल मैदान में सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत राजस्थान के सहरिया जनजाति द्वारा जीवंत प्रदर्शन के साथ हुई। सहारिया नृत्य-नाटिका ने लोगों मन मोह लिया।

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इस जनजाति में समृद्ध सास्कृतिक परंपराएं हैं, जिसमें से एक स्वाग नृत्य है। मंच पर लगभग एक दर्जन लोगों ने मिमिक्री, अभिनय, संवाद, गीत और नृत्य से दर्शकों को रोमाचित किया। हारमोनियम, ढोलकी, नगरी, गिंगरा और मजीरा जैसे लोक वाद्ययंत्रों के साथ मौसम आधारित लोक गीतों जैसे लंघुरिया, फाग और रसिया के गायन से नाटक को उत्कृष्ट बनाया। स्वांग नृत्य आमतौर पर रंगों के त्योहार के समय किया जाता है। इसमें विशिष्ट उच्चारण, बॉडी पेंटिंग और मास्क का उपयोग किया जाता है।

यह नृत्य सहरिया जनजाति का सबसे महत्वपूर्ण नृत्य है। इसके बाद नागपुरी लोक गायक मधु मंसूरी ने अपने प्रदर्शन से दर्शकों को खूब झूमाया। उनके गीतों में आदिवासी और वन भूमि के रूप में झारखंड की सुंदरता को दर्शाया गया। नागपुरी गायन के बाद ऑस्ट्रेलिया के जॉनी हकल का जादू चला। उनका गायन प्रेरणादायक और करुणा से भरा था। कोकराझार, असम के लौर्गी थिएटर ग्रुप के कलाकारों ने अपनी प्रतिभा को शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से व्यक्त किया। कलाकारों ने चार पारंपरिक नृत्य किए। जिसमें दोसरी दलाई सबसे महत्वपूर्ण और आकर्षक कला रूपों में से एक था। दोसरी का अर्थ मयना पक्षी है और दलाई का अर्थ सुंदर है। लड़किया शादियों के दौरान यह नृत्य करती हैं। अन्य नृत्यों में बागुरूम्बा, बरदवी या बारडीआई, सिखला और दहलंग नृत्य थे। सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान कर्नाटक राज्य से कुड़िया जनजाति द्वारा ओराटेकोट नृत्य का प्रदर्शन किया। यह एक कटाई नृत्य है जो कृषि क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं दोनों के महत्व को दर्शाता है। मौके पर त्रिपुरा की जमातिया जनजाति ने गरिया नृत्य प्रस्तुत किया।

यह नृत्य लगभग सभी शुभ अवसरों पर सामूहिक रूप से किया जाता है। इसके साथ ही फाग नृत्य, जो बैगा जनजाति फाग के दिन से 13 दिनों तक करते हैं। इस नृत्य में मुख्य वाद्ययंत्र मादर, टिमकी और बासुरी हैं। इसके बाद घोड़ी पैठई नृत्य जो दशहरे के दिन से शुरू होकर दिसंबर के अंत तक किया जाता है। इसके बाद करमा लोक नृत्य किया गया। कार्यक्रम के तीसरे दिन आदिवासियों के पारंपरिक सांस्कृति विरासत देखने लोगों का हुजूम उमड़ा। गोपाल मैदान शहरवासियों से भरा हुआ था। पूरे मैदान में झूम रहे थे लोग गोपाल मैदान में शाम को हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान लोग पारंपरिक धुनों पर थिरक रहे थे। मंच से देश के विभिन्न प्रदेशों से पहुंचे आदिवासियों ने अपने समुदाय के गीत-संगीत प्रस्तुत किए। उनके गीतों पर पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन पर मैदान के चारों ओर लोग थिरक रहे थे।

प्राचीन कहानियों से सीख लेकर उसे आत्मसात करें

 सोनारी स्थित ट्राइबल कल्चर सेंटर में संवाद के तीसरे दिन रविवार को हुई परिचर्चा में आदिवासियों के सामूहिक संघर्ष की कहानियों के साथ-साथ जनजातीय समुदायों के बलिदान और सफलताओं की चर्चा की गई। परिचर्चा का विषय आज की आदिवासियत था। परिचर्चा के दौरान सुनाई गई कहानियों से आत्मीय खोज करने और उसे स्थापित करने के साथ परिचर्चा का समापन हुआ।

वहीं गोपाल मैदान में देश-विदेश के जड़ी-बूटी से उपचारकर्ता वैद्य, पारंपरिक चिकित्सा की विभिन्न प्रणालियों और वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता पर परिचर्चा किए। इस विषय पर पारंपरिक जड़ी-बूटी से उपचार करने वाले वैद्य के साथ अग्रणी संस्थानों के विशेषज्ञों की चर्चा हुई। मौके पर परंपरा और सदियों पुराने शिल्प कला पर वर्तमान तकनीक के प्रभाव समेत अन्य समकालीन विषयों पर कारीगरों और विशेषज्ञों की परिचर्चा हुई। वर्तमान समय में आदिवासियत को परिभाषित करने वाले संघषरें और सफलताओं का अनुभव एक्सपीरियंस वॉल पर अंकित किया गया। आगंतुकों के साथ परिचर्चा में आयोजन स्थल पर 40 हस्तकला और 20 पारंपरिक वैद्य शामिल हुए। संवाद कार्यक्रम के चौथे दिन सोमवार को सामुदायिक यात्रा और पाक कार्यशाला, कबिला आदिवासी व्यंजन, ट्राइबल आर्ट एंड क्राफ्ट, आदिवासी औषधीय हाट, टॉम मुर्मू और उनके आदिवासी गान समेत अन्य आदिवासी समुदायों के कलाकारों की प्रस्तुति खास रहेगी।


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