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    Jamshedpur को यूं ही नहीं कहा जाता झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी, जानिए इसका सांस्कृतिक सफर

    By Rakesh RanjanEdited By:
    Updated: Wed, 31 Jul 2019 11:33 AM (IST)

    जमशेदपुर कल-कारखानों का ही शहर नहीं है। कला साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में भी यह शहर काफी सक्रिय नजर आता है। कई चर्चित नाम हैं जिन्होंने इस शहर को पहचान दिलाई है।

    Jamshedpur को यूं ही नहीं कहा जाता झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी, जानिए इसका सांस्कृतिक सफर

     जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। लौहनगरी यानी जमशेदपुर। इसे झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है। बहुसंस्कृति वाले इस शहर में शास्त्रीय संगीत का शायद ही कोई कलाकार बचा हो, जिसने यहां अपनी प्रस्तुति नहीं दी हो। जो भी कलाकार यहां आए, अपने मुरीद भी बनाकर चले गए। शायद यही वजह है कि आज भी शहर में शास्त्रीय संगीत से जुड़े कलाकार और उन्हें प्रशिक्षण देने वाले संस्थानों की भरमार है। यहां के भी कई कलाकारों ने देश-विदेश में ख्याति अर्जित की है।

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    आज भले ही शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम कम होते हैं, लेकिन गाहे-बगाहे उनकी मौजूदगी संगीत प्रेमियों को रोमांचित करती है। लौहनगरी की मिट्टी में शास्त्रीय संगीत की खुशबू बिखरने वाले कलाकारों में कथक नृत्यांगना सितारा देवी, बिरजू महाराज, शोभना नारायण, शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, गायक पंडित भीमसेन जोशी, पंडित जसराज, पंडित विश्वमोहन भट्ट, तबला वादक जाकिर हुसैन, किशन महाराज, गुदई महाराज, बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया, वायलिन वादक पंडित वीजी जोग, सितारवादक पंडित रविशंकर, उस्ताद विलायत अली खां, संतूरवादक पंडित शिवप्रकाश शर्मा आदि उल्लेखनीय हैं।

    गिरजा देवी के ठुमरी पर थिरक उठा था जमशेदपुर

    वर्ष 2016 में पद्म विभूषण से सम्मानित होने वाली ठुमरी गायिका गिरिजा देवी वर्ष 2005-06 में जमशेदपुर आई थीं। उनका कार्यक्रम बिष्टुपुर स्थित मिलानी सभागार में हुआ था। उन्होंने अपने गायन से कला प्रेमियों को झूमने पर मजबूर कर दिया था। अर्से तक यहां के कलाकारों के बीच उनकी चर्चा होती रही। शास्त्रीय संगीत के जानकार रंजीत सिंह गाबरी बताते हैं कि जमशेदपुर में ठुमरी की जन्मदाता कही जानेवाली और बनारस घराने की शास्त्रीय गायिका सिद्धेश्वरी देवी की पुत्री सविता देवी भी यहां कार्यक्रम दे चुकी हैं।

    दोनों बेटियों के साथ सितारा ने नृत्य से मोह लिया था मन

    भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय कथक नृत्यांगना सितारा देवी के कदम भी इस शहर में कई बार थिरक चुके हैं। रवींद्रनाथ टैगोर ने इन्हें नृत्य साम्राज्ञी की उपाधि दी थी। शंभू महाराज और पंडित बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज की शिष्या रह चुकीं सितारा देवी सत्तर-अस्सी के दशक में शहर के बिष्टुपुर स्थित मिलानी में कार्यक्रम देने आई थीं। उस वक्त उनके साथ उनकी दोनों पुत्रियों जयमाला व प्रियमाला ने भी नृत्य किया था। शास्त्रीय संगीत के जानकार रंजीत सिंह गाबरी बताते हैं कि इन्हें बिष्टुपुर स्थित नृत्य कला केंद्र की संचालक स्व. शिवानी चक्रवर्ती ने बुलाया था। इसके बाद सितारा देवी आदित्यपुर भी आई थीं, जहां एम. टाइप मैदान में नृत्य किया था। यह आयोजन बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा के नाना स्व. मनमोहन कृष्ण अखौरी ने चित्रगुप्त पूजा पर किया था। इसी कार्यक्रम में तबला वादक गुदई महाराज (पं. सामता प्रसाद) ने संगत किया था। गुदई महाराज भी पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

    एक्सएलआरआइ में आए थे कथक सम्राट बिरजू महाराज

    सितारा देवी के बाद देश में कथक सम्राट की उपाधि हासिल करने वाले बिरजू महाराज रहे। अपने पिता पंडित अच्छन महाराज, चाचा शंभू महाराज और लच्छू महाराज से कथक की तालीम लेने वाले पंडित बृजमोहन मिश्र उर्फ बिरजू महाराज भी इस शहर में कई बार आए। शहर की शिवानी चक्रवर्ती के आमंत्रण पर बिरजू महाराज ने एक्सएलआरआइ स्थित टाटा आडिटोरियम में नृत्य प्रस्तुत किया था। उसके बाद बिरजू महाराज ने कथक कार्यशाला भी की थी। इसमें शहर की कई प्रतिभाओं ने कथक की बारीकियां सीखीं।

    एकबार आए और मोह कर चले गए हरिप्रसाद चौरसिया

    बांसुरीवादक हरिप्रसाद चौरसिया का जमशेदपुर में आगमन 1996-97 में हुआ था। इन्होंने भी स्पिकमैके के आमंत्रण पर एक्सएलआरआइ स्थित टाटा आडिटोरियम में कार्यक्रम किया था। इसके बाद चौरसिया यहां नहीं आए। ज्ञात हो कि गीत-संगीत को समर्पित संस्था स्पिक मैके देश-विदेश में शास्त्रीय संगीत व लोक कलाओं को संरक्षित करने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रही है।

    पंडित भीमसेन जोशी भी आ चुके हैं दो बार

    शास्त्रीय संगीत की दुनिया में पंडित भीमसेन जोशी को कौन नहीं जानता है। वे यहां सत्तर-अस्सी के दशक में आ चुके हैं। उनका कार्यक्रम साकची स्थित बंगाल क्लब के अलावा टेल्को स्थित सबुज कल्याण संघ में भी हुआ था। इसके बाद पंडित जोशी यहां नहीं आए।

    पहली बार गोपाल मैदान में आए थे शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान

    शहनाई वादक बिल्स्मिल्लाह खान भी इस शहर में कई बार आ चुके हैं। वर्ष 1985 में इनका कार्यक्रम कांग्रेसी नेता एसआरए रिजवी छब्बन ने कौमी एकता मंच के बैनर तले कराया था। यह कार्यक्रम बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान (तब रीगल मैदान) में कराया था। इसके बाद बिस्मिल्लाह खान स्पिकमैके के आमंत्रण पर 1997 में भी आए, जिसमें उन्होंने ट्राइबल कल्चर सेंटर सोनारी में शहरवासियों को शहनाई की खुशबू से रोमांचित किया था।

    में हुआ था बांसुरीवादक हरिप्रसाद चौरसिया का जमशेदपुर में आगमन

    जाकिर हुसैन के तबला वादन पर मुग्ध हो गए थे कलाप्रेमी

    वाह ताज वाह के स्लोगन से नई पीढ़ी में लोकप्रिय तबला वादक जाकिर हुसैन भी यहां अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। उन्हें 1990 में टाटा स्टील के पूर्व अधिकारी केसी मेहरा और उनकी प}ी तरवीन मेहरा ने बुलाया था। यह कार्यक्रम साकची स्थित रवींद्र भवन में हुआ था। शास्त्रीय संगीत के जानकार रंजीत सिंह गाबरी बताते हैं कि तरवीन मेहरा खुद कुचीपुड़ी की नृत्यांगना थीं।

    आडिटोरियम खाली देखकर भड़क उठे पंडित जसराज

    शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने 2003 में बिष्टुपुर स्थित माइकल जॉन आडिटोरियम में कार्यक्रम दिया था। यह कार्यक्रम तीन दिन तक चला था। इसमें आयोजक ने टिकट लगा दिया था। इसकी वजह से पहले दिन हॉल खाली रहा, जिससे पंडित जसराज नाराज हो गए। अगले दिन आयोजक ने कार्यक्रम निश्शुल्क कर दिया तो ठीक-ठाक दर्शक आए। इससे पहले पंडित जसराज साकची स्थित बंगाल क्लब और बाद में स्पिक मैके के आयोजन में एक्सएलआरआइ स्थित टाटा आडिटोरियम में भी आए थे।

    पंडित विश्वमोहन भट्ट को भी सुन चुका है यह शहर

    शास्त्रीय संगीत में अपनी खास मोहन वीणा के लिए प्रसिद्ध पंडित विश्वमोहन भट्ट भी यहां कई बार आ चुके हैं। इन्होंने 2012 में स्पिकमैके के आमंत्रण पर गुलमोहर, जेपीएस, डीएवी बिष्टुपुर व बिष्टुपुर स्थित चिन्मय विद्यालय के अलावा एक्सएलआरआइ स्थित टाटा आडिटोरियम में कार्यक्रम प्रस्तुत किया था।

    ये भी जानें

    • 1985 और 1997 में जमशेदपुर आए थे शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान
    • 2003 में पंडित जसराज यहां आए थे अपनी प्रस्तुति देने के लिए
    • 1990 में तबला वादक जाकिर हुसैन ने दी थी इस शहर में अपनी प्रस्तुति
    • 2012 में पंडित विश्वमोहन भट्ट को यहां पर स्पीक मैके ने बुलाया था

     

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