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अस्पताल या मौतगाह, इस वजह से दस महीने में हजार से ज्यादा लोगों की हुई मौत

एक सरकारी अस्पताल ऐसा भी है, जिसे अब लोग मौत का अस्पताल कहने लगे हैं।

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 12 Dec 2017 12:50 PM (IST)Updated: Tue, 12 Dec 2017 02:08 PM (IST)
अस्पताल या मौतगाह, इस वजह से दस महीने में हजार से ज्यादा लोगों की हुई मौत
अस्पताल या मौतगाह, इस वजह से दस महीने में हजार से ज्यादा लोगों की हुई मौत

जमशेदपुर [अमित कुमार]। झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में एक सरकारी अस्पताल ऐसा भी है, जिसे अब लोग मौत का अस्पताल कहने लगे हैं। यह अस्पताल जमशेदपुर शहर में है। कोल्हान क्षेत्र के सबसे बड़े महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मौत का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

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शिशु, सर्जरी व मेडिसिन विभाग में इस साल दस माह में कुल 1540 लोगों की मौत हो चुकी है। मेडिसिन विभाग ने तो सभी को पीछे छोड़ दिया है। मेडिसिन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक यहां हर माह करीब 94 से अधिक लोगों की मौत हो रही है। इन घटनाओं के पीछे स्‍वास्‍थ्‍यकर्मियों व चिकित्‍सकों की लापरवाही व उपेक्षा भी जिम्‍मेदार है।

अगस्त और सितंबर में सर्वाधिक मौत
इस साल अगस्त और सितंबर में सर्वाधिक मौतें हुईं। उस समय जिले में एक साथ कई बीमारियों ने तांडव मचा रखा था। इसमें सात तरह की बुखार (डेंगू, जापानी इंसेफ्लाइटिस, खतरनाक मलेरिया, टाइफाइड, सामान्य मलेरिया, टाइफाइड, सामान्य वायरल बुखार, हेपाटाइटिस-ए) भी शामिल थे। मेडिसिन विभाग में जिन मरीजों की मौत हुई उनमें डायरिया, पीलिया, मलेरिया, इंफेक्शन, लीवर डैमेज, किडनी, हार्ट अटैक, स्ट्रोक सहित अन्य बीमारियां शामिल हैं।

एमजीएम अस्पताल के मेडिसिन, शिशु व सर्जरी विभाग के आंकड़ों को जोड़ दिया जाए तो हर माह करीब 150 लोगों की मौत हो रही है। जनवरी से अक्टूबर के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो शिशु रोग विभाग में जुलाई में सर्वाधिक 60 मौतें हुई, जबकि सर्जरी विभाग में जनवरी में 24 मौत हुई। वहीं, मेडिसिन विभाग में सिर्फ अगस्त में 107 लोगों ने जान गंवा दी। मौत का यह सिलसिला अब भी जारी है।

पूर्व अधीक्षक डॉ. विजय शंकर दास ने की थी पहल
एमजीएम में मरीजों को बेहतर सुविधा देने व मौत पर अंकुश लगाने के लिए पूर्व अधीक्षक डॉ. विजय शंकर दास ने पहल की थी। उन्होंने एक टीम गठित की थी। इसमें उपाधीक्षक सहित सभी विभागाध्यक्ष व चिकित्सक शामिल थे। टीम को हर सप्ताह अपने विभाग की रिपोर्ट देनी थी। खामियों पर चर्चा कर उसे दूर करना था। पर अब तक इसपर अमल ही नहीं हुआ। फिलहाल, अस्पताल में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो इस तरह की घटनाओं पर चर्चा भी करे।

इस साल अब तक 337 बच्चों की हो चुकी मौत
एमजीएम प्रबंधन द्वारा स्वास्थ्य विभाग को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष जनवरी से लेकर अबतक करीब 337 बच्चों की मौत हो चुकी है। जुलाई में सर्वाधिक 60 व अगस्त में 50 मौत हुई है। मुख्य कारण नवजात का वजन कम होना, गर्भवती का सही देखरेख नहीं होना, खून की कमी सहित अन्य कारण शामिल हैं।



चिकित्‍सकों की ऐसी लापरवाही पर कैसे रुके मौत का सिलसिला:
हाइड्रोसिल के मरीज का कर दिया हार्निया का ऑपरपेशन, हो गई मौतः नवंबर में शहर के मानगो निवासी सुखदेव राम हाइड्रोसिल संबंधी इलाज के लिए एमजीएम अस्पताल पहुंचे। डाक्टरों ने आपरेशन की बात कही। सुखदेव तैयार हो गए। लेकिन चिकित्सक ने हार्निया का आपरेशन कर दिया। अंतत: 57 वर्षीय सुखदेव राम की चंद दिनों में ही मौत हो गई। परिजन को शक हुआ तो वे अस्पताल पहुंचकर हंगामा करने लगे। दबाव के बाद अंतत: मेडिकल बोर्ड गठित कर कई दिनों तक मामले की पड़ताल हुई। एक डाक्टर को दोषी पाया गया। परिजन ने साकची थाने में प्राथमिकी भी दर्ज कराई। पर अबतक आरोपी चिकित्सक पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है।

नशे में डा. लक्ष्मण हांसदा पहुंच गए अस्पताल
दूसरी घटना भी नवंबर महीने की ही है। सर्जरी विभाग के डा. लक्ष्मण हांसदा एक दिन नशे में धुत्त होकर एमजीएम अस्पताल पहुंच गए। वे इस कदर लड़खड़ा रहे थे कि सीढ़ी चढऩा भी मुश्किल था। अंतत: सुरक्षा गार्ड ने डा. हांसदा को समझा बुझा कर घर वापस भेज दिया। करीब आधे घंटे तक अस्पताल में वे गिरते-पड़ते रहे। मरीजों के परिजनों ने उन्हें मोबाइल में कैद कर लिया। इसके बाद मामला सुर्खियों में आया तो प्रिसिपल डा. एसी अखौरी ने नोटिस देकर पूछताछ की। डा. हांसदा ने जवाब दिया कि हाइड्रोसिल में परेशानी के कारण उनके पैर लड़खड़ा रहे थे। इस तरह यह मामला भी रफा-दफा हो गया।

जानिए, किस विभाग में कितनी हुई मौतें

मेडिसिन विभाग में मौत

महीना मौत
जनवरी 101
फरवरी 90
मार्च 95
अप्रैल 92
मई 82
जून 90
जुलाई 98
अगस्त 107
सितंबर 103
अक्टूबर 92


मरीजों की तुलना में संसाधन बहुत कम 

एमजीएम अस्‍पताल कोल्‍हान का सबसे बड़ा सरकारी अस्‍पताल है। पूर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां जिले के मरीज यहां इलाज के लिए आते हैं। बेहद गंभीर स्थिति में यहां लाए जाते हैं। अस्‍पताल किसी मरीज को लौटा नहीं सकता। सो, इलाज के लिए मरीज हर सूरत में भर्ती कर लिए जाते हैं। दूसरी बात, यहां आने वाले मरीजों की तुलना में संसाधन बहुत कम हैं। इस संबंध में कई बार सरकार का ध्‍यान आकृष्‍ट कराया जा चुका है।

- डा. एसी अखौरी, प्राचार्य, एमजीएम अस्‍पताल 

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