जगन्नाथ रथयात्रा के रंग में आज सराबोर रहेगा जमशेदपुर शहर
आज से शुरू हो रही भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के रंग में अपना जमशेदपुर शहर डूब गया है। शहर में लोग आज रथ यात्रा में शामिल होंगे।
जेएनएन, जमशेदपुर : आज से शुरू हो रही भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के रंग में अपना जमशेदपुर शहर भी ओडिशा के पुरी की तरह रंग चुका है। चहुंओर चहल-पहल दिख रही है। कोल्हान प्रमंडल के गांवों व कस्बों में बसे हजारों ओडिया भाषी लोगों का उत्साह तो देखते ही बन रहा है। आइए याद करें भगवान और भक्त के इस अनूठी यात्रा को। हर वर्ष आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलने वाली जगन्नाथ रथयात्रा इस साल 14 जुलाई यानी शनिवार से प्रारंभ होगी। पड़ोसी राज्य ओडिशा के पुरी के साथ-साथ झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में भी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाएगी। ओडिशा में रथयात्रा की परंपरा करीब 500 वर्र्षो से चली आ रही है। ओडिशा से सटा होने के कारण कोल्हान में भी रथयात्रा की परंपरा काफी समय से चली आ रही है।
कोल्हान में ओडिया भाषी लोगों की आबादी अच्छी खासी है। खैर, इस रथयात्रा से कई तरह की रोचक मान्यताएं जुड़ी हैं। यह यात्रा विश्व भर में प्रसिद्ध है। इस तरह आयोजित होती
है ऐतिहासिक रथयात्रा
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भगवान जगन्नाथ रथयात्रा का अर्थ है कि भगवान जगन्नाथ को रथ पर बिठाकर नगर की यात्रा करवाई जाएगी। सबसे पहले भगवान जगन्नाथ के रथ के सामने सोने के हत्थे में लगी झाड़ू से सफाई की जाती है। सफाई के बाद मंत्रोच्चार और जयघोष होता है। इसी के साथ शुरू होती है यह मशहूर रथयात्रा। जमशेदपुर शहर में भले ही छोटे-छोटे रथ होते हैं, लेकिन पुरी में तो इस यात्रा में विशाल रथ होते हैं, जिन पर भगवान जगन्नाथ सवार होते हैं। पुरी में पारंपरिक वाद्ययंत्रों की आवाज के बीच इन रथों को कई हजार भक्त मोटे-मोटे रस्सों की मदद से खींचते हैं। जमशेदपुर व चांडिल में भी रथ को रस्सों से खींचने की परंपरा निभाई जाती है। रथयात्रा में सबसे आगे होता है भगवान बलभद्र का रथ जो सबसे पहले तालध्वज में प्रस्थान करता है। इसके ठीक पीछे खींचा जाता है बहन सुभद्रा का रथ। इन दोनों रथों के पीछे होता है जगन्नाथ जी का रथ। तीनों रथों को श्रद्धालु रस्सा पकड़ कर खींचते हैं। नगर में भ्रमण कराते हैं। इस दौरान देखनेवालों की भीड़ सड़क पर उमड़ पड़ती है। मोक्ष की प्राप्ति के
लिए खींचते हैं रथ
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रथ खींचने के लिए पुरी, जमशेदपुर और चांडिल में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होती है। इतनी तादाद में लोग इसलिए जमा होते हैं क्योंकि लोगों का मानना है जो लोग रथ खींचने में सहयोग करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुरी में इस तरह होता
है रथयात्रा का समापन
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पुरी में इस यात्रा का अंतिम पड़ाव होता है गुड़िचा मंदिर। यहा पहुंचकर यह यात्रा संपन्न हो जाती है। इस मंदिर को गुड़िचा बाड़ी भी कहते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में विश्वकर्मा ने तीनों देव प्रतिमाओं का निर्माण किया था। साथ ही इस जगह को भगवान की मौसी का घर भी माना जाता है। यदि सूर्यास्त तक रथ गुड़िचा मंदिर नहीं पहुंच पाता तो अगले दिन यह यात्रा पूरी की जाती है। और इस तरह बीमार पड़
जाते हैं भगवान जगन्नाथ
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गुड़िचा मंदिर में भगवान एक हफ्ते तक रहते हैं। यहा हर रोज उनकी पूजा अर्चना होती है। उनकी मौसी का घर बताए जाने वाले इस मंदिर में भगवान को कई तरह के स्वादिष्ट पकवान के भोग लगाए जाते हैं। मान्यता है कि इस भोग के बाद भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं। इस दौरान भगवान को पथ्य का भोग लगाया जाता है। इस पथ्य के भोग से वो जल्दी ठीक हो जाते हैं। लक्ष्मी जी तोड़ देती
हैं रथ का पहिया
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भगवान जगन्नाथ को ढूंढ़ते हुए रथयात्रा के तीसरे दिन पंचमी को लक्ष्मी जी मंदिर आती हैं। लेकिन द्वैतापति दरवाजा बंद कर देते हैं। इस बात से लक्ष्मी जी नाराज हो जाती हैं। नाराजगी में रथ का पहिया तोड़ देती हैं। नाराज होकर लक्ष्मी जी पुरी के मोहल्ले हेरा गोहिरी साही स्थित अपने एक मंदिर में लौट आती हैं। माता लक्ष्मी को मनाने के लिए भगवान जगन्नाथ वहा जाते हैं। वहा वो माता लक्ष्मी से क्षमा मागते हैं। माता की क्षमा के लिए वो पूरी कोशिश करते हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपहार देते हैं। कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ माता लक्ष्मी जी को मना लेते हैं। उनके माता लक्ष्मी को मनाने को विजय का प्रतीक माना जाता है। इस दिन विजया दशमी और वापसी को बोहतड़ी गोंचा के रूप में मनाया जाता है। यात्रा के आरंभ से 9 दिन पूरे होने के बाद भगवान, जगन्नाथ मंदिर वापस चले जाते हैं। हर साल इसी तरह से ये यात्रा पूरी की जाती है।