Move to Jagran APP

IPL Auction 2021 : 3000 करोड़ में बिकेगी आईपीएल की एक टीम, ऐसे बीसीसीआई कमाने जा रही 10,000 करोड़ रुपए

IPL City Franchise इंडियन प्रीमियर लीग बीसीसीआई के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है। अगले सत्र में बोर्ड दो और टीमों को आईपीएल में समाहित करने जा रही है। एक टीम का बेस प्राइस 3000 करोड़ है। आइए जानते हैं आखिर क्या है आईपीएल का बिजनेस मॉडल...

By Jitendra SinghEdited By: Published: Sat, 23 Oct 2021 06:45 AM (IST)Updated: Sun, 24 Oct 2021 10:01 AM (IST)
IPL Auction 2021 : 3000 करोड़ में बिकेगी आईपीएल की एक टीम, ऐसे बीसीसीआई कमाने जा रही 10,000 करोड़ रुपए
IPL 2022 : एक टीम का बेस प्राइस 3000 करोड़, ऐसे बीसीसीआई कमाने जा रही 10,000 करोड़ रुपए

जमशेदपुर। साल 2008 की बात है। रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुखिया और दुनिया के शीर्ष अरबपतियों में शुमार मुकेश अंबानी ने इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के उन आठ टीमों में से एक को खरीदने के लिए 111.9 मिलियन डॉलर का भुगतान किया। उस समय आईपीएल का फॉर्मेट नया था, जिसने पूरी दुनिया में धमाल मचा दिया। एक ऐसा आइडिया था, जिससे शहर और फ्रेंचाइजी आधारित टीम खड़ा करना था। यह आइडिया काफी हिट हुआ।

loksabha election banner

तत्कालीन विनिमय दर की बात करें तो आज मुंबई इंडियंस की लागत लगभग 450 करोड़ थी और यह आईपीएल की आठ टीमों में सबसे महंगी थी। सबसे कम खर्चीला जयपुर स्थित राजस्थान रॉयल्स था, जिसकी कीमत 67 मिलियन डॉलर (लगभग ₹ 270 करोड़) थी।

पहले शहर के अनुसार टीमों का मूल्य तय होता था

टीमों के मूल्य के अंतर के कई कारक था। पहला बाजार का आकार था। ग्रेटर मुंबई क्षेत्र की जनसंख्या 2011 में जयपुर से लगभग छह गुना थी। दूसरी डिस्पोजेबल इनकम थी। मुंबई के बैंकों में जमा की कुल राशि जयपुर में लगभग 17 गुना अधिक है। तीसरी थी क्रिकेटिंग संस्कृति- क्रिकेट का दीवाना मुंबई भारत का आध्यात्मिक घर है। यही कारण है कि मुंबई की टीम महंगी बिकी और जयपुर (राजस्थान रॉयल्स) सस्ते में खरीदा गया।

अदानी समूह व संजीव गोयनका रेस में

आईपीएल को संचालित करने वाला भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) 25 अक्टूबर को दो नई आईपीएल टीमों की घोषणा करने जा रहा है। रिपोर्टों के अनुसार प्रत्येक टीम का बेस प्राइस 2000 करोड़ से लेकर 3000 करोड़ तक हो सकता है। बीसीसीआई टीम की बोली से ही 7000 करोड़ से लेकर 10,000 करोड़ कमाने की सोच रहा है।

आईपीएल की दो टीमों के लिए अहमदाबाद, पुणे और लखनऊ रेस में है। बोली लगाने वालों में अदानी समूह और संजीव गोयनका समूह शामिल हैं।

नई टीम को 11 गुना ज्यादा कीमत चुकानी होगी

कंज्यूमर व क्रिकेटिंग दृष्टि से देखा जाए तो मुंबई की तुलना में अहमदाबाद, पुणे व लखनऊ जयपुर के करीब है। 13 साल पहले जिस कीमत पर राजस्थान रॉयल्स को खरीदी गई थी, नई टीम को खरीदने में 11 गुना ज्यादा कीमत चुकानी होगी। इसके विपरीत, यदि नई कीमत पुरानी फ्रेंचाइजी के लिए एक मूल्यांकन बेंचमार्क है, तो राजस्थान रॉयल्स के मूल्य में 20 फीसद चक्रवृद्धि ब्याज की दर से 11 गुना की वृद्धि हुई है।

आखिर क्या है आईपीएल का बिजनेस मॉडल

एक आईपीएल टीम का मालिक होना गर्व की बात है। यहां दर्शक, ग्लैमर व गतिशीलता है। लेकिन इस सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि फ्रेंचाइजी होना हमेशा से लाभप्रद नहीं रहा है। इसका बिजनेस मॉडल इस बात पर निर्भर होता है कि आपका फायनेंशियल ग्रोथ कितना हो रहा है। लेकिन यह ग्रोथ आइपीएल ब्रॉडकास्टिंग डील पर बहुत कुछ निर्भर करता है। टीमों को नई डील का इंतजार करना होता है।

आईपीएल का वैल्युएशन बढ़ना तय

इस बार टीम की नीलामी में अगर 3000 करोड़ का आंकड़ा छू जाता है तो यह ग्लोबल स्पोर्ट्स वैल्यूएशन में आईपीएल फ्रेंचाइजी को और अधिक बढ़ा देगा। इस साल की शुरुआत में फोर्ब्स पत्रिका ने डच क्लब एजेक्स एम्सटर्डम बताया था। इस क्लब का यूरोपीय वैल्यूएशन 413 मिलियन डॉलर या लगभग 3,000 करोड़ डॉलर के मूल्यांकन के साथ 20 वें स्थान पर किया गया था।

3000 करोड़ की फुटबॉल टीम का रेवेन्यू आईपीएल से ज्यादा

राजस्व की बात करें तो यह एक पूरी तरह से अलग कहानी बताता हैं। अजाक्स फुटबॉल क्लब का फ्रेंचाइजी वैल्यू एक औसत आईपीएल टीम के रेवेन्यू से भी तीन गुना ज्यादा है। दूसरे शब्दों में, जैसा कि भारत में कई अन्य परिसंपत्ति वर्गों के मामले में होता है, आईपीएल फ्रेंचाइजी का मूल्यांकन उसकी होने वाली कमाई से भी ज्यादा है।

राजस्थान व चेन्नई के शेयर होल्डिंग में हुए बदलाव

मौजूदा आईपीएल फ्रैंचाइजी में शेयर होल्डिंग ने सही वैल्यूएशन बेंचमार्क स्थापित करने के लिए बहुत कुछ नहीं बदला है। मुकेश अंबानी अभी भी मुंबई टीम के मालिक हैं, शाहरुख खान और जय मेहता कोलकाता टीम, डियाजियो बेंगलुरु टीम और मोहित बर्मन, प्रीति जिंटा और नेस वाडिया पंजाब टीम के मालिक हैं।

राजस्थान और चेन्नई फ्रेंचाइजी में शेयरहोल्डिंग में बदलाव हुए हैं। हालांकि दो अन्य लेन-देन हैं, जो यह बताता है कि आईपीएल फ्रेंचाइजी के मूल्यांकन (वैल्युएशन) में किस तरह वृद्धि हुई है।

2018 में JSW ग्रुप ने दिल्ली फ्रैंचाइजी की हिस्सेदारी खऱीदी

मार्च 2018 में, JSW ग्रुप ने दिल्ली फ्रैंचाइजी में GMR ग्रुप से 50% शेयर खरीदा। उस समय कथित तौर पर दिल्ली फ्रैंचाइज़ी का मूल्य ₹ 1,100 करोड़ था। लेकिन यह आईपीएल प्रसारण सौदे में पहले बड़े संशोधन से ठीक पहले था, जो प्रभावी रूप से पिछले एक से लगभग 3.6 गुना अधिक था। बीसीसीआई प्रसारण अधिकारों की बिक्री से होने वाली आय को फ्रेंचाइजी के साथ साझा करता है और यह उनके राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा है।

2019-20 में, जैसे ही आईपीएल फ्रेंचाइजी का राजस्व एक उच्च ट्रेजेक्टरी में चला गया, पंजाब के स्वामित्व वाली कंपनी ने अपने चार प्रमोटरों से 20 करोड़ रुपए के शेयर वापस खरीदे। इस पुनर्खरीद प्रक्रिया ने पंजाब फ्रेंचाइजी का मूल्य 1,200 करोड़ आंका, जो कि उस वर्ष के राजस्व का लगभग छह गुना था।

आईपीएल फ्रेंचाइजी की बात करें तो दिल्ली व पंजाब ऑन फील्ड वह प्रदर्शन नहीं कर पा रही है, जो कि चेन्नई, मुंबई, बेंगलुरु या कोलकाता सफल हो रही है। अगर किसी आइपीएल टीम की पूर्णतः बिक्री की बात होती है, तो टीम पर एक ही फ्रेंचाइजी का अधिक नियंत्रण होना स्वाभाविक है।

ब्रॉडकास्टिंग डील पर निर्भर करता है राजस्व

पिछले प्रसारण सौदे ने हर फ्रेंचाइजी को 100-200 करोड़ रुपए के राजस्व से 300-400 करोड़ तक दिया। 400 करोड़ के वार्षिक राजस्व पर, 3,000 करोड़ की प्रवेश लागत का मतलब सात गुना का राजस्व गुणक है। 4,000 करोड़ की प्रवेश लागत का अर्थ है 10 गुना का राजस्व गुणक।

पुरानी आईपीएल फ्रेंचाइजी के लिए यह मुश्किल होता जा रहा है, क्योंकि वास्तविक व्यावसायिक शक्ति बीसीसीआई के पास है। टीमों को ज्यादातर लाभ गिरती जा रही है।

टीमों के लिए राजस्व विस्तार की संभावनाएं सीमित

फ्रैंचाइजी के राजस्व पैटर्न में दो चीजें सामने आती हैं। एक, राजस्व विस्तार की संभावनाएं सीमित हैं। उदाहरण के लिए, कोलकाता फ्रैंचाइज़ी 2011-12 में 123 करोड़ रुपए के राजस्व से 2017-18 में 174 करोड़ हो गई। इसमें सिर्फ छह प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।

केवल 2018-19 में, जब नया टीवी ब्रॉडकास्टिंग सौदा शुरू हुआ, तो यह 448 करोड़ तक पहुंच गया। यह सभी फ्रेंचाइजी के लिए सच है। दूसरा, अधिकांश फ्रैंचाइज़ी एक समान राजस्व बैंड में काम करते हैं, जो वर्तमान में 300-400 करोड़ वार्षिक राजस्व का है।

आईपीएल फ्रेंचाइजी के लिए, बिजनेस मॉडल मोटे तौर पर समान है। उनके पास चार प्रमुख राजस्व स्रोत हैं : बीसीसीआई के 'केंद्रीय पूल' का हिस्सा, प्रायोजन, टिकट बिक्री और पुरस्कार राशि। इन चार राजस्व मदों में से, एक टावर दूसरे से ऊपर है।

बीसीसीआई के केंद्रीय पूल का हिस्सा, जो एक फ्रेंचाइजी के राजस्व का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा है। केंद्रीय पूल के अलावा, कोई अन्य राजस्व का स्त्रोत नहीं है। इसके अलावा टीम का अपना प्रायोजन राजस्व या टिकट बिक्री से होने वाली आय है।

13 साल में किसी भी फ्रेचाइजी ने लगातार मुनाफा नहीं कमाया

पिछले 13 साल में किसी भी फ्रैंचाइजी ने ऐसा मुनाफा नहीं कमाया है जो महत्वपूर्ण या टिकाऊ हो। लाभांश भुगतान भी दुर्लभ रहा है। केवल 2018-19 ही ऐसा वर्ष था, जब नया प्रसारण सौदा शुरू हुआ। 2019 के आम चुनावों के कारण आइपीएल को छोटा करना पड़ा। इस दौरान सभी फ्रेंचाइजी के राजस्व में वृद्धि हुई और बेहतर मुनाफा कमाया। कोलकाता और पंजाब की टीमों ने क्रमशः 72 करोड़ रुपए और 60 करोड़ रुपए का लाभांश मिला।

नया प्रसारण सौदा राजस्व के लिहाज से फायदेमंद है। खर्चे के नियम में परिवर्तन भी फ्रेंचाइजी के लिए संभावनाओं में सुधार कर रहा है। 2008 में फ्रैंचाइज़ी खरीदारों ने बीसीसीआई को पूरी राशि का भुगतान नहीं किया। उन्होंने इसका भुगतान 10 वर्षों में समान किश्तों में किया।

इस प्रकार, मुंबई इंडियंस को 2008 और 2017 के बीच प्रत्येक वर्ष 11.1 मिलियन डॉलर (111.9 मिलियन डॉलर 10 से विभाजित) की एक निश्चित राशि का भुगतान करना पड़ा। यह वार्षिक फ्रैंचाइजी शुल्क राजस्व से अलग था। जब टीमें 100-200 करोड़ रुपए के राजस्व बैंड में काम कर रही थीं, तो उनके व्यय पूल में यह लागत कठिन थी। नतीजा टीमें घाटे में जाने लगी।

वार्षिक फ्रेंचाइजी शुल्क के नियम में बदलाव से राहत

जैसे ही आईपीएल ने 10 साल पूरे किए, बीसीसीआई ने इस आधार को बदल दिया कि फ्रेंचाइजी वार्षिक फ्रैंचाइज़ी शुल्क का भुगतान कैसे करेगी। अब, इसे फ्रैंचाइज़ी के राजस्व से 20 फीसद हिस्सेदारी से जोड़ दिया गया। फ्रेंचाइजी के लिए यह संतोष की बात थी। उदाहरण के लिए, कोलकाता टीम के लिए, कुल राजस्व के हिस्से के रूप में फ्रैंचाइज़ी शुल्क 2015-16 में 24% से गिरकर 2018-19 में 18% हो गया।

टीवी दर्शक पर ही सबकुछ निर्भर

पुरानी टीमों के लिए आईपीएल के अर्थशास्त्र में सुधार हो रहा है। उनकी संपत्ति मूल्य में बढ़ रही है। नई टीमों को जोखिम के अधिक सवालों का सामना करना पड़ता है। आधार का उनका चुनाव एक सवाल है। एक उपभोक्ता के रूप में, मुंबई से जयपुर के लिए ड्रॉप-ऑफ तेज है। उदाहरण के लिए, अहमदाबाद, पुणे और लखनऊ- सभी की आबादी मुंबई, दिल्ली और कोलकाता जैसी प्रमुख फ्रेंचाइजी के आधे से भी कम है। उनके लिए उम्मीद की किरण यह है कि आईपीएल अभी भी मुख्य रूप से टीवी के लिए ही बनी है।

आईपीएल के मैच के लिए ज्यादा से ज्यादा दिन निकालने होंगे

आईपीएल के समुचित विकास की राह में एक सवाल यह भी है कि अन्य अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट बोर्ड से बिना टकराव के लिए वह इंडियन प्रीमियर लीग के लिए कितना समय निकाल पाती है।

वर्तमान में क्रिकेट देश का पहला खेल है। अंतर्राष्ट्रीय द्विपक्षीय श्रृंखला और बहुपक्षीय टूर्नामेंट का आज भी आईपीएल से ज्यादा महत्व है। आईपीएल के लिए साल में 50-60 दिन का समय अभी दिया गया है। इसकी तुलना इंग्लिश प्रीमियर लीग या ईपीएल जैसी प्रमुख लीग से करें, जो साल में नौ महीने चलती है। इंग्लिश प्रीमियर लीग में 20 टीमें भाग लेती हैं, जो इंडियन प्रीमियर लीग के मुकाबले छह गुना अधिक मैचों की मेजबानी करता है।

नवीनता बनाए रखने के लिए अर्थशास्त्र में सुधार जरूरी

आईपीएल की नवीनता को बनाए रखते हुए और इसके अर्थशास्त्र में सुधार करते हुए और दिन जोड़ने की कोशिश करना आसान नहीं होगा। जितना अधिक आईपीएल बढ़ेगा, उतना ही यह क्रिकेट में क्लब-कंट्री फॉल्ट लाइन का टेस्ट होगा। और इसका असर इस बात पर पड़ेगा कि आईपीएल फ्रेंचाइजी राजस्व और मूल्यांकन में कैसे बढ़ाते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.