दैनिक जागरण में अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज के दिहाड़ी मजदूर बनने की खबर से पिघला खेल मंत्री का दिल
गरीबी के कारण मनरेगा में मजदूरी करने को मजबूर अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज अशोक सोरेन को भारत सरकार के खेल मंत्री ने मदद की है।
जितेंद्र सिंह, जमशेदपुर : गरीबी के कारण मनरेगा में मजदूरी करने को मजबूर अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज अशोक सोरेन को खेल मंत्रालय ने पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद देने की घोषणा की है। गौरतलब है कि दैनिक जागरण ने ही सबसे पहले जमशेदपुर से सटे भिलाईपहाड़ी के देवघर गांव के रहने वाले अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज अशोक की स्थिति में जानकारी दी थी। इसके बाद पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त अमित कुमार ने न सिर्फ अशोक सोरेन को 25 हजार की आर्थिक सहायता दी, साथ ही स्थानीय कंपनी जमना ऑटो में दस हजार की नौकरी भी लगवाई।
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अशोक को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ
अशोक सोरेन को जब यह जानकारी दी गई, उस समय वे अपने गांव देवघर में ग्रामीण बच्चों को तीरंदाजी के गुर सिखा रहे थे। एकबारगी अशोक को विश्वास ही नहीं हुआ। उन्होंने बच्चों की ओर देखते हुए कहा, अब इन्हें बड़ा तीरंदाज बनाकर ही रहूंगा। उन्होंने कहा कि अगर मौका मिला तो एक बार फिर अभ्यास में जुट जाऊंगा।
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आर्थिक तंगी के चलते मनरेगा के तहत करने लगे मजदूरी
अशोक सोरेन केंद्र सरकार की ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना मनरेगा के तहत मजदूर के रूप में काम कर रहे थे। मंत्रालय ने इससे पहले अर्जुन पुरस्कार प्राप्त तीरंदाज लिम्बा राम को भी बीमारी के इलाज के लिये वित्तीय सहायता दी थी। इस महीने बीमार तीरंदाज गोहेला बोरो को भी पाच लाख रूपये की सहायता दी गई।
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कई अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुके हैं सोरेन
अशोक सोरेन ने साल 2008 में जमशेदपुर में हुए सैफ गेम्स में उन्होंने भारत के लिए दो स्वर्ण पदक हासिल किए। इसके बाद आर्थिक तंगी और घर चलाने की मजबूरी के चलते अशोक सोरेन को तीरंदाज़ी छोड़नी पड़ी। अशोक सोरेन ने साल 2006 में राज्य स्तरीय जूनियर तीरंदाजी चैंपियनशिप में पहली बार रजत रदक जीता था। साल 2007 में राज्य स्तरीय सीनियर तीरंदाजी चैंपियनशिप में उन्हें एक स्वर्ण और दो रजत पदक मिले। अशोक सोरेन ने बचपन से ही तीरंदाज़ी शुरू कर दी थी। बाद में उन्होंने जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स कॉप्लेक्स से तीरंदाज़ी का औपचारिक प्रशिक्षण लिया। इसके बाद उन्होंने कई प्रतियोगिताओं मे हिस्सा लिया और कई पदक जीते।
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खेल मंत्री ने खुद दी जानकारी
खेलमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने खुद इस बात की जानकारी दी है कि मंत्रालय की ओर से अशोक सोरेन को 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी। खेल मंत्रालय ने ने कहा कि सहायता खिलाड़ियों के लिये पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय कल्याण कोष से दी गई है। सोरेन फिलहाल काफी कठिन हालात में गुजर बसर कर रहे हैं। साल 2014 से वे मनरेगा मे मजदूरी करने लगे। इससे उन्हें साल में 100 दिन के काम की गारंटी मिल गयी।
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जिंदगी से हार गया था तीरंदाजी का सिकंदर
गरीबी की गर्द से माथे पर सिलवटें व पर चेहरे पर सुकून का भाव। जमशेदपुर से सटे भिलाईपहाड़ी के देवघर में ग्रामीण बच्चों को तीरंदाजी का ककहरा सिखाते अशोक सोरेन को जैसे ही पता चला कि खेल मंत्रालय ने उन्हें पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद देने की घोषणा की है, खुशी से आंसू बहने लगे।
अशोक सोरेन ने कभी सैफ तीरंदाजी में तिरंगा लहराया था। लेकिन वक्त के थपेड़ों ने उन्हें मनरेगा मजदूर बना दिया। अब वह पुराने दिनों को याद करना नहीं चाहते। एक टीस सी होती है। मैदान पर पदकों की झड़ी लगाने वाला यह तीरंदाज जिंदगी की जंग हार चुका था, वह तो धन्य वो उपायुक्त अमित खरे व खेल मंत्रालय का, जिसके कारण अशोक के चेहरे पर खुशियां लौट आई।
2008 में जमशेदपुर में हुए साउथ एशियन तीरंदाजी (सैफ तीरंदाजी) में डबल गोल्ड पर निशाना साधने वाला 28 वर्षीय अशोक जिंदगी के झंझावातों से पार नहीं पाया। भिलाई पहाड़ी के मिंट्टी से बने घर में रहने वाले 28 वर्षीय युवा खिलाड़ी ने मानो अब अपनी जिंदगी से समझौता कर लिया हो। बचपन में ही सिर से पिता टुकलू सोरेन का साया उठ गया। मां कंसावती ने अशोक व उनके बड़े भाई का पालन पोषण किया। बड़े भाई जंगलों में निशाना साधते थे। अशोक बड़े भाई के इस शौक को अपना जुनून बना लिया। गांव के नजदीक देवघर में ही अभ्यास करना शुरू किया। 2005 में पहली बार झरिया में आयोजित ट्राइबल स्पोर्ट्स मीट में जब अशोक ने रजत जीता, तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। बस उन्हें तीर और धनुष को अपनी जिंदगी बना लिया। सुबह उठते और गांव के नजदीक जंगल में दिन भर निशाना साधते रहते। बाद में भाई सनातन ने उन्हें जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स भेजना शुरू किया। घर से 25 किलोमीटर दूर रोज आना और जेआरडी में अभ्यास करना। तब झारखंड तीरंदाजी संघ के सचिव द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त संजीव सिंह हुआ करते थे। संजीव सिंह, धर्मेंद्र तिवारी व रोयना श्रीवास्तव ने अशोक की मदद की। उसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2006 में राज्यस्तरीय तीरंदाजी में रजत जीतने वाले अशोक का चयन सीनियर नेशनल तीरंदाजी के लिए हुआ। सिक्किम में हुए जूनियर नेशनल तीरंदाजी में कांस्य पदक जीतने के बाद उसी साल महाराष्ट्र में आयोजित स्कूल गेम्स में भी टीम चैंपियनशिप में कांस्य अपने नाम किया। 2007 में जमशेदपुर में आयोजित राज्यस्तरीय तीरंदाजी में एक स्वर्ण व दो रजत पदक पर निशाना साधा। 2008 में जमशेदपुर में हुए सैफ तीरंदाजी में अशोक ने धमाल मचाते हुए दो स्वर्ण अपने नाम किए।
लेकिन 2008 में मां कंसावती देवी का असामयिक निधन ने अशोक को इतना सदमा पहुंचा कि उससे उबर पाने में काफी वक्त लगा। तब तक काफी कुछ बदल गया था। जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स तो उन्हें बुलाता, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारी की बेड़ियों ने उन्हें बांध दिया। खेत भी इतना नहीं कि दो जून की रोटी मिल सके। जिंदगी बदल चुकी थी। भूख की आग किस कदर जीवन पर हावी होता है, अशोक से बेहतर कौन जान सकता है। घर में दो जून की रोटी नहीं। मरता क्या न करता। मनरेगा में मजदूरी करने लगा। लेकिन वहां भी सालों भर मजदूरी नहीं मिलती। कभी डोभा खुदाई करते तो कभी तालाब। साल में तीन महीने ही रोजगार मिलता है। अशोक कहते हैं, जब तक झारखंड तीरंदाजी संघ में संजीव सिंह थे, मदद करते थे। लेकिन अब तो न संघ पूछता है और ना ही सरकार।
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प्रोफाइल
2008-सैफ तीरंदाजी-जमशेदपुर-व्यक्तिगत स्पद्र्धा व टीम चैंपियनशिप में स्वर्ण
2007-राज्य स्तरीय तीरंदाजी -जमशेदपुर-एक स्वर्ण व दो रजत
-2007-सीनियर नेशनल तीरंदाजी-विजयवाड़ा-आठवां स्थान
2006-सीनियर स्टेट तीरंदाजी-जमशेदपुर-रजत
2006-07-जूनियर नेशनल तीरंदाजी-सिक्किम-कांस्य
2006-स्कूल गेम्स -महाराष्ट्र-कांस्य
2005-रुरल व ट्राइबल स्पोर्ट्स मीट-झरिया-रजत पदक
2005-स्कूल गेम्स-महाराष्ट्र-कांस्य पदक