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Jharkhand Assembly Election 2019 : बहरागोड़ा में दिलचस्‍प मुकाबला, दल बदले ; चेहरे पुराने Chunavi halchal

Jharkhand Assembly Election 2019. बहरागोड़ा में मुकाबला भले ही सीधा दिखता हो पर यहां का राजनीतिक समीकरण बेहद दिलचस्प और रोचक है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sun, 24 Nov 2019 03:53 PM (IST)Updated: Sun, 24 Nov 2019 04:52 PM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019 : बहरागोड़ा में दिलचस्‍प मुकाबला, दल बदले ; चेहरे पुराने Chunavi halchal

चाकुलिया,  पंकज मिश्रा। झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के त्रिवेणी संगम पर बसे बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र में इस बार भाजपा प्रत्याशी कुणाल षाड़ंगी तथा झामुमो के समीर महंती के बीच सीधा मुकाबला होता नजर आ रहा है। मुकाबला भले ही सीधा दिखता हो पर यहां का राजनीतिक समीकरण बेहद दिलचस्प और रोचक है। 5 वर्ष तक झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक रहे कुणाल षाडंगी ने चुनाव से ठीक पहले बीते 23 अक्टूबर को झामुमो का तीर-धनुष फेंक भाजपा का कमल थाम लिया था। इसके एक पखवारे के भीतर ही 6 नवंबर को भाजपा से टिकट के दावेदार रहे समीर महंती ने भी भाजपा छोड़ झामुमो का झंडा थाम लिया। अब दोनों अपनी-अपनी पार्टियां बदलकर आमने-सामने हैं।

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कुणाल षाडंगी को यहां विरोधी दल के अलावा अपने दल के भीतर भी जूझना पड़ सकता है। पांच वर्ष तक भाजपा के लिए पसीना बहाने वाले टिकट के प्रबल दावेदार रहे पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिनेशानंद गोस्वामी टिकट नहीं मिलने से खिन्न बताए जाते हैं। वे फिलहाल चुनावी कार्यक्रमों से दूरी बनाए हुए हैं। मतदान में अब दो सप्ताह से भी कम समय बचा है। इस अवधि में पार्टी के भीतर की गुटबाजी को समाप्त कर सभी धड़ों का समर्थन हासिल करना कुणाल के लिए बड़ी चुनौती है।

झामुमो को नहीं भितरघात का खतरा

दूसरी तरफ, झामुमो उम्मीदवार समीर महंती के लिए पार्टी के अंदर भितरघात जैसा खतरा नहीं है। उनके लिए असल चुनौती भाजपा व मोदी लहर पर सवार विधायक तथा क्षेत्र में खास जनाधार रखने वाले षाडंगी परिवार के दबदबे को परास्त कर विजय पताका लहराना है।

बहरागोड़ा सीट का राजनीतिक इतिहास 

वर्ष 1962 में अस्तित्व में आई बहरागोड़ा विधानसभा सीट प्रारंभिक दौर में अधिकांश समय कांग्रेस पार्टी के कब्जे में रही। 1980 में पहली बार सीपीआई के देवीपद उपाध्याय ने विजय पताका लहराया और अगले दो दशक तक यह क्षेत्र लाल दुर्ग में तब्दील रहा। वर्ष 2000 में वर्तमान विधायक कुणाल षडंगी के पिता डॉ. दिनेश षड़ंगी ने लगातार 20 साल तक विधायक रहे देवीपद उपाध्याय को हराकर पहली बार यह सीट भाजपा की झोली में डाल दी। डॉ. षाडंगी 2005 में दोबारा विधायक निर्वाचित हुए, लेकिन 2009 में वे झामुमो के विद्युत वरण महतो से चुनाव हार गए। 2014 में विद्युत महतो भाजपा में शामिल होकर सांसद निर्वाचित हो गए। तब झामुमो ने कुणाल षाडंगी को टिकट थमाया और पहली बार में ही कुणाल चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए।

क्षेत्र के तीन प्रमुख मुद्दे

बेहतर शिक्षा के संसाधन: बहरागोड़ा प्रखंड की गिनती राज्य में शिक्षित इलाके के रूप में की जाती है। फिर भी यहां बेहतर शिक्षण संस्थानों का अभाव है। शिक्षकों की भी कमी है।

स्वास्थ्य सेवा : स्वास्थ्य सेवा की हालत यह है कि आज भी इस क्षेत्र के लोग इलाज के लिए बंगाल और उड़ीसा पर निर्भर है।

रोजगार : सरकारी क्षेत्र का कोई उद्योग यहां अभी तक नहीं लग पाया है। क्षेत्र की औद्योगिक पहचान चाकुलिया के चावल मिलों से है, लेकिन यहां की 32 में 18 चावल मिलें बंद हो चुकी है।

 ये कहते प्रत्‍याशी

शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरी के लिए बीते 5 वषों के दौरान काफी प्रयास किया गया। बहरागोड़ा कॉलेज को मॉडल कॉलेज का दर्जा, बहरागोड़ा आईटीआई को झारखंड के टॉप 3 आईटीआइ में शुमार करना, चाकुलिया के शिबू रंजन खां डिग्री कॉलेज को मान्यता दिलाने का प्रयास इसमें शामिल है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहरागोड़ा में ट्रॉमा हॉस्पिटल चाकुलिया में सीएससी चालू किया। गया निजी प्रयास से शंकर नेत्रलय समेत देश के कई विशिष्ट अस्पतालों एवं चिकित्सकों की सुविधा मुहैया करने हेतु शिविर लगाया गया। क्षेत्र के युवाओं को रोजगार मुहैया करने के लिए बहरागोड़ा में 150 एकड़ जमीन आदित्यपुर स्थित आयडा के एक्सटेंशन सेंटर के तौर पर चिन्हित किया गया है। इसमें विभिन्न प्रकार के थरमोकोल, ई वेस्ट मैनेजमेंट, पेपर मिल आदि के प्लांट लगेंगे जहां रोजगार का सृजन होगा।

 -कुणाल षाडंगी, विधायक व भाजपा प्रत्याशी

स्कूल विलय के कारण ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को काफी परेशानी हो रही है। चाकुलिया में एक भी कॉलेज नहीं होने से यहां के युवक-युवतियों को पढ़ाई के लिए 40- 50 किमी का सफर तय कर घाटशिला जाना पड़ता है। बहरागोड़ा में महिला कॉलेज की नहीं होने से युवतियों को काफी दिक्कत होती है। चिकित्सा की बात करें तो ग्रामीण इलाके के अधिकांश स्वास्थ्य केंद्र सिर्फ हाथी के दिखाने के दांत बनकर रह गए हैं। चिकित्सक कहीं नहीं रहते हैं। चाकुलिया बहरागोड़ा के लोग झारखंड बनने के 19 वर्ष बाद भी दूसरे राज्य में इलाज कराने पर मजबूर है। बीते 5 साल में यहां रोजगार का सृजन बिल्कुल नहीं हुआ है, बल्कि चाकुलिया के चावल मिलों के बंद होने के कारण हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं। मिल क्यों बंद हो रहे हैं, इस पर सरकार को गौर कर समस्या का समाधान करना चाहिए था जो कि नहीं किया गया।

 -समीर महंती, झामुमो प्रत्याशी


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