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स्टील के दाम बढने से कराहने लगा औद्योगिक क्षेत्र, जानें किस उद्योग पर ज्यादा असर

कोरोना और लॉकडाउन से आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र की कंपनियां उबरी भी नहीं थीं कि स्टील के दाम से कराहने लगी हैं। अप्रैल से स्टील के दाम में 25 फीसद तक वृद्धि हो गई है। इससे कर्ज में डूबी कंपनियों की हालत खराब हो गई है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Thu, 20 May 2021 05:56 PM (IST)Updated: Thu, 20 May 2021 08:32 PM (IST)
स्टील के दाम बढने से कराहने लगा औद्योगिक क्षेत्र, जानें किस उद्योग पर ज्यादा असर
16-18 रुपये मिलने वाला स्क्रैप 38 से 40 रुपये तक हो गया है।

जमशेदपुर, जासं। कोरोना और लॉकडाउन से आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र की कंपनियां उबरी भी नहीं थीं कि स्टील के दाम से कराहने लगी हैं। अप्रैल से स्टील के दाम में 25 फीसद तक वृद्धि हो गई है। इससे कर्ज में डूबी कंपनियों की हालत खराब हो गई है। इससे पहले कभी दाम में इतनी वृद्धि नहीं हुई थी।

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आदित्यपुर के उद्यमियों ने बताया कि इसकी वजह से उन्होंने उत्पादन बंद कर दिया है। हमने जिन कंपनियों के साथ दो-तीन साल का एनुअल रेट कांट्रैक्ट कर रखा है, उन्हें पुराने दाम पर माल कैसे दे सकते हैं। 16-18 रुपये मिलने वाला स्क्रैप 38 से 40 रुपये तक हो गया है। आयरन ओर में 250 से 750 रुपये प्रति टन दाम बढ़ गया है। इसकी वजह से फिनिस्ड प्रोडक्ट का रेट भी बढ़ गया है। ब्रांडेड टीएमटी रॉड 45 रुपये से बढ़कर अब 80 रुपये तक पहुंच गया है। ऐसे में छोटी कंपनियाें को लागत निकालने की बात कौन कहे, उत्पादन में घाटा उठाना पड़ेगा। इसकी वजह से आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र की सात रोलिंग मिल, करीब 35 इंडक्शन फर्नेस, 15 फाउंड्री और लगभग 10 स्पंज आयरन कंपनियों में से अधिकांश की चिमनी बंद हो चुकी है।

छह महीने में तमाम छोटी स्टील कंपनियाें में ताला लग जाएगा

कुछ उद्यमियों ने बताया कि एनएमडीसी ने अप्रैल से आयरन ओर में 250 से 500 रुपये टन तक दाम बढ़ा दिया है। ओडिशा की एसेल माइनिंग ने 725 से 1200 रुपये प्रति टन फाइंस व लम्प्स के दाम में वृद्धि कर दी है। ऐसे में कोई भी छोटी कंपनी उत्पादन करके बढ़े हुए दाम पर खुदरा बिक्री कर सकती है, लेकिन जिसके साथ पुराने दाम पर दो-तीन साल का कांट्रैक्ट है, उनके पास तो कोई विकल्प नहीं है। आयरन ओर के दाम बढ़ने से बड़ी कंपनियां भी स्क्रैप तक खरीद रही हैं, जो आश्चर्य की बात है। पहले इसी स्क्रैप के बल पर इंडक्शन व स्पंज आयरन कंपनियां चलती थीं। स्क्रैप कारोबारियों को बड़ी कंपनियां ज्यादा दाम दे रही हैं। कुल मिलाकर उद्यमियों की मानें तो यदि केंद्र सरकार ने इस पर अंकुश नहीं लगाया, तो छह महीने में तमाम छोटी स्टील कंपनियाें में ताला लग जाएगा।

भारत से यूरोप निर्यात होना मूल वजह

सिंहभूम चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष अशोक भालोटिया बताते हैं कि देश में स्टील का दाम बढ़ने की मूल वजह है कि अभी यहां से यूरोप में बेहिसाब निर्यात हो रहा है। यहां की बड़ी कंपनियों का कहना है कि उन्हें वहां अच्छी कीमत मिल रही है, तो कम दाम में यहां क्यों बेचें। सेल समेत देश की सभी बड़़ी कंपनियां निर्यात कर रही हैं। लोहे व स्टील के दाम में ऐसी बढ़ोत्तरी की हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी। इसके लिए फिक्की व सीआइआइ ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखा है, ताकि भारत में इनके दाम पर नियंत्रण लग सके।

भारत में मांग 150 टन, उत्पादन 104 टन

भारत में 2020-21 में दिसंबर तक 150 टन स्टील की मांग थी, जबकि इस वर्ष मार्च तक उत्पादन 104 टन रहा। देश में दिसंबर 2020 तक 99.6 मिलियन टन इस्पात का उत्पादन हुआ था। स्वाभाविक है कि जब इसमें से बड़ा हिस्सा निर्यात हो रहा है, तो भारत की मांग कैसे पूरी होगी। कोरोना के बाद चीन से यूरोप के कई देशों ने माल मंगाना बंद कर दिया है, जिससे अन्य देशों में भारत, जापान व कोरिया से स्टील की आपूर्ति हो रही है।


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