Indian Railway Latest News : अब हाइड्रोजन ईंधन से चलेगी भारतीय रेल, शून्य कार्बन उत्सर्जन है लक्ष्य
Indian Railway Latest News अभी तक हम हाइड्रोजन ईंधन से कार चलाने की बात सोच रहे थे लेकिन भविष्य में रेल इंजन भी इस ईंधन से चलेगा ऐसा कभी नहीं सोचा होगा। लेकिन भारतीय रेल इस दिशा में गंभीर पहल कर रही है।
जमशेदपुर : अक्सर हम ट्रेनों में सफर करते समय देखा होगा कि कई बार ट्रेन के इंजन को बदला जा रहा है। पहले ट्रेन को इलेक्ट्रिक इंजन खीच रही थी। एक स्टेशन के बाद उसे डीजल इंजन संचालित करेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि उक्त रूट पर अब तक विद्युतीकरण नहीं हुआ है लेकिन ट्रेनों का परिचालन होता है। ऐसे में भारतीय रेल नई पहल कर रही है जिसका लक्ष्य है शून्य कार्बन उत्सर्जन। रेलवे ने इसके लिए वर्ष 2030 तक का लक्ष्य अपने लिए निर्धारित की है।
हो रही है ये पहल
इंडियन रेलवे ऑर्गनाइजेशन ऑफ अल्टरनेटिव फ्यूल्स (आईआरओएएफ) ने रेलवे को वैकल्पिक ऊर्जा देने वाली शाखा को बंद कर दिया है।
इसका उद्देश्य रेलवे अपने पूरे नेटवर्क में पूर्ण विद्युतीकरण कर रही है। इसके लिए रेलवे ने अपने सभी डीजल इंजन के संचालन को बंद कर दिया है। हालांकि रेलवे ने अपने नेटवर्क को वैकल्पिक पावर देने के लिए इको-फ्रेंडली हाइड्रोजन फ्यूल की ओर पहल कर रही है। इसके लिए हाइड्रोजन ईधन सेल प्रौद्योगिकी पर रेलवे फोकस कर रही है। बायो डीजल से इंजन के संचालन के लिए रेलवे ने पिछले दिनों टेंडर भी जारी किया था।
टाटा-बदामपहाड़ सेक्शन भी हो चुका है पूर्ण विद्युतीकरण
दक्षिण पूर्व रेलवे के चक्रधरपुर मंडल में बदामपहाड़ सेक्शन में पहले डीजल इंजन का ही संचालन होता था लेकिन विद्युतीकरण प्रोजेक्ट के तहत 90 किलोमीटर लंबे इस रूट में विद्युतीकरण का काम पूरा हो चुका है। इस रूट में डीजल के बजाए अब इलेक्ट्रिक इंजन वाली यात्री ट्रेन का संचालन शुरू हो गया है। रेलवे ने नेटवर्क के विद्युतीकरण और विद्युत इंजनों के उत्पादन की अपनी गति तेज कर दी है। मार्च 2021 के अंत तक 64,689 किलोमीटर में फैले कुल नेटवर्क का 71 प्रतिशत विद्युतीकरण किया जा चुका था।
डीजल लोकोमोटिव वर्क्स का बदला नाम
रेल प्रबंधन ने पूर्ववर्ती डीजल लोकोमोटिव वर्क्स, वाराणसी, का नाम बदलकर बनारस लोकोमोटिव वर्क्स कर दिया गया, अब कोई डीजल इंजन नहीं बनाता है और ज्यादातर इलेक्ट्रिक इंजन बनाती है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में यहां बनाए गए 285 इंजनों में से 275 इलेक्ट्रिक थे। हालांकि यूएस-आधारित वैबटेक कॉरपोरेशन के साथ एक परियोजना को छोड़कर, जिसके साथ भारतीय रेलवे डीजल इंजनों की खरीद के लिए पूर्व-प्रतिबद्धता से बाध्य है। वर्ष 2015 के अनुबंध के आधार पर इसने 10 वर्षों में 2.5 बिलियन डॉलर के लिए 1000 लोकोमोटिव खरीदने के लिए हस्ताक्षर किए थे। सरकार अब सार्वजनिक ट्रांसपोर्टर से डीजल इंजन नहीं खरीद रही है।
आईआरओएएफ की वर्ष 2008 में हुई थी स्थापना
जब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे तब वर्ष 2008 में आईआरओएएफ की स्थापना हुई थी। इस पहल के तहत रेल मंत्री ने अन्य स्त्रोतों के साथ रेल पटरियों के साथ-साथ भूमि के संकीर्ण पैच पर लगाए। जहां जटरोफा पेड़ों से बायो डीजल सोर्सिंग पर प्राथमिकता के साथ ध्यान देने का काम शुरू हुआ।
भारतीय रेलवे ने भी बायो डीजल के सीमांत सम्मिश्रण के विभिन्न स्तरों के साथ ट्रेनें चलाने की कोशिश की। लेकिन इन वैकल्पिक ईंधन की उपलब्धता और कीमतों के मामले में चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बायोडीजल के अलावा, आईआरओएएफ ने ट्रेनों को चलाने के लिए अन्य ईंधन जैसे संपीड़ित प्राकृतिक गैस, तरलीकृत प्राकृतिक गैस और सौर ऊर्जा को पेश करने के कुछ प्रयास किए। इसके लिए एक दशक से अधिक के अस्तित्व को दिखाने के लिए परिणामों के रूप में बहुत कम था।
आईआरओएएफ को रेल मंत्रालय ने की बंद करने की घोषणा
सात सितंबर को रेल मंत्रालय ने आईआरओएएफ को बंद करने की घोषणा की और उसने यूनिट के कार्यो को रेलवे बोर्ड और उत्तर रेलवे में विद्युत विकास विभाग को सौप दिया। एक माह पहले जारी बयान के मुताबिक आईआरओएएफ ने जींद और सोनीपत के बीच प्रस्तावित परीक्षण के लिए दो डीजल इलेक्ट्रिकल मल्टीपल यूनिट रेक और दो हाइब्रिड इंजनों को हाइड्रोजन पावर फ्यूल सेल में बदलने के लिए बोलियां आमंत्रित की थीं।
शून्य कार्बन उत्सर्जन के लिए हो रही है यह पहल
रेलवे शून्य कार्बन के लिए मुख्य रूप से तीन तरह से पहल कर रहा है। इसमें सबसे पहले, डीजल इलेक्ट्रिकल मल्टीपल यूनिट्स को हाइड्रोजन फ्यूल सेल से बदलने की कोशिश हो रही है। दूसरा, पहाड़ी रेलवे क्षेत्र में संकीर्ण रेल ट्रैक और शंटिंग यार्ड पर चलने वाले डीजल इंजनों को हाइड्रोजन ईंधन सेल में आजमाना और तीसरा रेलवे के सभी क्षेत्रों में डीजल जेनसेट इकाइयों को हाइड्रोजन ईंधन सेल से बदल दिया जाएगा।
इसके अलावा रेलवे हाइड्रोजन ईंधन सेल परीक्षणों के लिए, भारतीय रेलवे उन संस्थाओं का पता लगा सकता है जिन्होंने बसों में हाइड्रोजन ईंधन सेल प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रही है। इसके लिए टाटा मोटर्स ने 30 जून को कहा कि वह इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन से ईंधन सेल प्रौद्योगिकी की क्षमता का अध्ययन करने के लिए 15 हाइड्रोजन ईंधन सेल संचालित बसों की आपूर्ति करेगी।
वहीं, एनटीपीसी लिमिटेड की सहायक कंपनियों ने भी लेह और दिल्ली के बीच चलने वाली ऐसी स्वच्छ ऊर्जा बसों के लिए बोलियां आमंत्रित की हैं। केरल राज्य सरकार भी 2021 में शुरू होने वाली हाइड्रोजन से चलने वाली बसों के बेड़े को संचालित करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है। वैश्विक स्तर पर, जापानी ऑटोमोबाइल दिग्गज टोयोटा मोटर कॉर्पोरेशन ने बसों और ट्रेनों के लिए मॉड्यूलर हाइड्रोजन ईंधन सेल सिस्टम विकसित किया है।
इन देशों में भी हो रही है पहल
रेलवे के क्षेत्र में फ्रांस की ट्रेन बनाने वाली कंपनी एल्सटॉम की हाइड्रोजन फ्यूल सेल आधारित ट्रेनों को जर्मनी, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड, स्वीडन और इटली में आजमाया जा रहा है। डीजल इंजनों का महत्वपूर्ण उपयोग जारी रहेगा क्योंकि हाइड्रोजन ईंधन सेल प्रौद्योगिकी भारत में भारी भार ढोने के लिए पर्याप्त उन्नत नहीं है।