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ऐसा क्या हुआ..

स्वास्थ्य विभाग में अगर दोस्ती की बात होती है तो दो डॉक्टर का नाम सबसे पहले आता है। इनकी दोस्ती जय-बीरू की तरह मशहूर है। हर कोई इनकी दोस्ती पर नाज करता है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 Jun 2021 10:00 AM (IST)Updated: Sat, 19 Jun 2021 10:00 AM (IST)
ऐसा क्या हुआ..
ऐसा क्या हुआ..

स्वास्थ्य विभाग में अगर दोस्ती की बात होती है तो दो डॉक्टर का नाम सबसे पहले आता है। इनकी दोस्ती जय-बीरू की तरह मशहूर है। हर कोई इनकी दोस्ती पर नाज करता है। किसी की मजाल नहीं कि इनकी दोस्ती पर कभी कोई सवाल भी उठाए। दो साल पूर्व एक पदाधिकारी ने इनकी दोस्ती में दरार डालने की कोशिश की तो उन्हें करारा जवाब भी मिला। फिर उनकी नजरें इस दोस्ती पर कभी नहीं उठी। लेकिन, अब ऐसा क्या हुआ जो दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगी हैं। इसकी चर्चा डॉक्टर से लेकर कर्मचारियों के बीच में हो रही है। कोई कुर्सी की लालच तो कोई आपसी तालमेल की कमी बता रहा है। क्योंकि कुछ ही माह से दोनों के संबंध में खटास बढ़ी है। फिलहाल दोनों महत्वपूर्ण पद पर है और दोनों की पहचान काम से ही होती है। कोरोना में इन दोनों अधिकारियों ने यह साबित भी किया।

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अस्पताल में खुदकुशी

किसी अस्पताल में रोगी ठीक होने आता है लेकिन बार-बार खुदकुशी कर ले तो यह बड़ा सवाल है। खुदकुशी के कारणों की जांच होनी चाहिए। लेकिन, इसपर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। अस्पताल प्रबंधन अपनी नाकामी छिपाने में लगा है तो स्वास्थ्य मंत्री के प्रतिनिधि भी अपने आप में व्यस्त हैं, जबकि वे दिनभर अस्पताल में ही रहते हैं। उनके लिए एक चैंबर भी बना हुआ है, जहां वे बैठते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसी तरह मरीज खुदकुशी करते रहेंगे। एक माह के अंदर महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में दो मरीजों ने खुदकुशी कर ली, लेकिन तब इसे न तो विभाग गंभीरता से ले रहा है, न ही स्थानीय प्रशासन। जबकि मृतक के परिजन बार-बार इलाज में लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं। आरोप यह भी है कि न तो डॉक्टर देखने आते और न ही समुचित दवा मिलती है।

कब मिलेगा ड्रेसर

बिना ड्रेसर के पूर्वी सिंहभूम जिले के अधिकांश सरकारी अस्पताल चल रहे हैं। 570 बेड के एमजीएम अस्पताल में भी ड्रेसर नहीं है, जबकि यहां रोज एक दर्जन से अधिक सड़क दुर्घटना में घायल होकर लोग पहुंचते हैं। ऐसे में उनकी ड्रेसिग स्वीपर या सफाई कर्मी कर रहे हैं। यहां इलाज की गारंटी नहीं होती है, जिसके कारण आए दिन हंगामा होता है। अस्पताल में सिर्फ एक ड्रेसर की तैनाती थी, जिसकी मौत कुछ माह पूर्व हो चुकी है। ऐसे में अब यहां एक भी ड्रेसर नहीं है। किसी तरह अस्पताल चल रहा है। यही हाल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) का भी है। वहां भी अधिकांश पद रिक्त पड़े हुए हैं। व्यवस्था कब सुधरेगी, पता नहीं, लेकिन स्थिति लगातार बदतर होती जा रही है। हाल ही में जिले में तैनात 300 स्वास्थ्य कर्मियों को हटा दिया गया है। इससे स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है।

अलर्ट जारी पर तैयारी नहीं

कोरोना के साथ अब शहर में डेंगू, चिकुनगुनिया व जापानी इंसेफ्लाइटिस का भी खतरा बढ़ गया है। इसे लेकर जिला सर्विलांस विभाग की ओर से सभी निजी व सरकारी अस्पतालों को अलर्ट किया गया है और तैयारी करने का निर्देश दिया गया है, लेकिन सभी कान में रूई डालकर सोए हुए हैं। नींद तब खुलेगी जब बीमारी फैल चुकी होगी। आग लगने पर कुआं खोदने वाली स्थिति दिख रही है। जमशेदपुर में डेंगू, चिकुनगुनिया व जापानी इंसेफ्लाइटिस का सबसे अधिक प्रकोप रहा है। ऐसे में थोड़ी सी भी लापरवाही महंगी पड़ सकती है। हर साल इस बीमारी के लिए अस्पतालों में अलग से वार्ड बनाया जाता है, ताकि मरीज को आइसोलेट किया जा सके। यहां तक कि इससे निपटने के लिए अलग टीम भी होती है। लेकिन इस बार अभी तक तैयारी के नाम पर कुछ भी नहीं दिख रही है, जबकि मानसून की बारिश रोज हो रही है।


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