कोल्हान में जीएसटी से बुझ रही बीड़ी, लाखों की रोजी पर चोट
बीड़ी और केंदू पत्ता पर डबल जीएसटी लगा दिए जाने से किस तरह उद्योग चौपट हो गया है और मजदूर बेकार हो गए हैं, इसकी कहानी बयां करती रपट।
जमशेदपुर, मनोज सिंह। कोल्हान, खासकर सारंडा क्षेत्र के लोगों की आर्थिक क्रियाएं वानिकी से जुड़ी है। यहां के हजारों परिवार की रोजी रोटी केंदू (तेंदू) पत्ता संग्रह करने से लेकर उसमें तंबाकू लपेटकर बीड़ी बनाने से जुड़ी है। एक जुलाई 2017 को नई कर प्रणाली, वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद बीड़ी की मांग में भारी गिरावट आई है, यानि बीड़ी बुझने से चक्रधरपुर-मनोहरपुर इलाके के दो से ढाई लाख लोगों के सामने रोजी-रोटी पर संकट खड़ा हो गया है। दरअसल, झारखंड राज्य वन विकास निगम अगले साल के लिए केंदू पत्ता की खरीद की दर अक्टूबर में तय करता है, जबकि बिक्री (नीलामी) की दर नवंबर में तय होती है। 2019 के लिए खरीद की दर तय अगले एक-दो हफ्ते में होगी, लेकिन आलम यह है कि 2018 में निगम द्वारा खरीदी गई केंदू पत्ते की नीलामी भी अभी पूरी नहीं हुई है।
दो-दो बार नोटिस के बावजूद कोल्हान में अभी भी केंदू पत्ते के 16 लॉटों (चालीस हजार बोरे) की नीलामी नहीं हो सकी है। इसका असर 2019 के लिए दिसंबर 2018 के पहले हफ्ते में होने वाली नीलामी प्रक्रिया पर पड़ेगा। वहीं 2019 के मार्च और अप्रैल में होने वाला केंदू पत्ता संग्रहण का कार्य भी प्रभावित होगा। अगर टैक्स की बात करें तो जीएसटी लागू होने के बाद बीड़ी पर दोहरे कर के दायरे में हैं। पहले केंदू पत्ते पर टैक्स लगता है और फिर बीड़ी पर। इसके कारण बीड़ी पर टैक्स 20 फीसद से बढ़कर 46 फीसद हो गया है। टैक्स बढ़ने के साथ ही लोग बीड़ी छोड़ कम कीमत वाले ब्रांड के सिगरेट को अपनाने लगे हैं।
एक-एक कर बंद हो रही बीड़ी बनाने वाली इकाइयां : पिछले एक साल से हर महीने एक-एक कर बीड़ी बनाने वाली इकाइयां बंद होती जा रही हैं। वहीं बीते मौसम में जंगल से केंदू पत्ता का संग्रह हर साल की तरह ही हुआ, लेकिन केंदू पत्ते का उठाव टैक्स में भारी वृद्धि के कारण नहीं हुआ। इससे पहले केंदू पत्ते की नीलामी में स्थानीय लोगों के अलावा बंगाल, बिहार और ओडिशा के व्यवसायी हिस्सा लेते थे। स्थानीय कारोबारियों के बीड़ी से मोह भंग होने के कारण बीड़ी बनाने वाली इकाइयां ठप हैं। लगभग ढाई लाख लोगों के सामने रोजगार का संकट है। कोल्हान के तीन जिलों में केंदू पत्ते की नीलामी करने वाली जमशेदपुर स्थित लघु वन पदार्थ परियोजना, धालभूम प्रमंडल के प्रमंडलीय प्रबंधक आरएन ठाकुर ने बताया कि ठेकेदारों को दो-दो बार केंदू पत्ता उठाने के लिए नोटिस दिया गया है, लेकिन कोई माल उठाने को तैयार नहीं है।
सरकार को भी राजस्व की क्षति : जीएसटी लागू होने से पूर्व के वित्तीय वर्ष 2016-2017 में कोल्हान में केंदू पत्ता के 46 लॉट की नीलामी हुई थी, जिससे वन विभाग को 11 करोड़ 99 लाख 13 हजार 723 रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। वहीं 2015-2016 में भी 44 लॉट की बिक्री पर सात करोड़ 26 लाख रुपये का राजस्व मिला था। उस समय सारा लॉट नीलाम हो गया। जबकि 2017-2018 में केंदू पत्ता का मात्र 29 लॉट जमा हुआ। नीलामी में सिर्फ 13 लॉट ही बिके। इससे मात्र 4 करोड़ 26 लाख रुपये ही राजस्व के रूप में प्राप्त हुआ। अब वन अधिकारी बाकी बचे 16 लॉटों की नीलामी के लिए ठेकेदारों को दो-दो बार नोटिस दिया गया है, लेकिन कोई ले जाने को तैयार ही नहीं है। उल्लेखनीय है कि एक लॉट में 2500 बोरे आते हैं। एक बोरे में पचास हजार पत्ते आते हैं। एक पत्ते से चार बीड़ी बनती है।
यह है टैक्स का गणित : एक जुलाई 2017 को जीएसटी लागू होने से पहले बीड़ी पर 20 प्रतिशत वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) लगता था। अब केंदू पत्ते संग्रहण पर 18 फीसद टैक्स और केंदू पत्ते से बीड़ी बनने पर 28 फीसद टैक्स लगता है। केंदू पत्ता संग्रह से लेकर बीड़ी बनने तक अब 46 फीसद टैक्स लग रहा है। नतीजतन बीड़ी की कीमत में बेतहाशा वृद्धि हुई है। वहीं बीड़ी के विकल्प सिगरेट पर 28 फीसद जीएसटी लगता है। दोनों की कीमतों का अंतर कम होने के कारण बीड़ी की जगह सिगरेट लेते जा रहा है।
जानिए, किसने क्या कहा
जितेंद्र सिंह, केंदू पत्ता संग्रहक यूनियन, धालभूम डिवीजन ने कहा कि टैक्स बढ़ने से उत्पादन लागत बढ़ रही, लेकिन बिक्री घटती चली जा रही है। यही कारण है कि अब बीड़ी उद्योग से जुड़े छोटे-छोटे व्यापारी और हजारों मजदूर बेकार हो गए हैं।
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संजय कुमार प्रसाद, संयुक्त आयुक्त, झारखंड राज्य कर विभाग (जमशेदपुर प्रमंडल) ने कहा कि बीड़ी-सिगरेट हानिकारक उत्पाद की श्रेणी में है। इसके कच्चे माल पर 18 व तैयार उत्पाद पर 28 फीसद जीएसटी लगता है। सरकार का उद्देश्य स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह की बिक्री-खपत करना है।