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Ground Report:जूठा भोजन खाने को सबरों का यह गांव हो जाता खाली Jamshedpur New

दो वर्ष के बच्‍चे की कुपोषण से मौत की बाद लोगों की नजरों में आए सबरों के गांव रामचंद्रपुर की हकीकत रोंगटे खड़े करनेवाली है। सबर संरक्षित जनजाति हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 25 Jan 2020 09:56 AM (IST)Updated: Sat, 25 Jan 2020 03:53 PM (IST)
Ground Report:जूठा भोजन खाने को सबरों का यह गांव हो जाता खाली Jamshedpur New

जमशेदपुर, अमित तिवारी। भूखे पेट सबर, जूठा भोजन खाने को गांव हो जाता खाली। जी हां, यह हकीकत जमशेदपुर मुख्यालय से करीब 54 किलोमीटर दूर घाटशिला के बुरुडीह स्थित रामचंद्रपुर गांव की है। 18 जनवरी को इसी गांव में दो वर्षीय कृष्णा सबर की मौत कुपोषण से हो गई थी।

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दोपहर करीब 12.30 बजे दैनिक जागरण की टीम इस गांव में पहुंची। मृतक के घर पर ताला लटका हुआ था। वहीं पूरे गांव में इक्का-दुक्का लोग ही नजर आ रहे थे। लिलोका सबर अपनी भाषा में कहतीं है-अभी पिकनिक का मौसम है। अधिकांश लोग दोपहर के वक्त बुरुडीह डैम चले जाते है। वहां झूठा भोजन खाने को भी मिलता और संग्रह भी कर लाते। तब तक लिलोका भूखे पेट ही थी। वह इंतजार कर रही थी कि उसका बेटा पिकनिक स्थल से खाना लेकर आएगा तो वह खाएगी। दारा सबर कहते हैं-दिसंबर व जनवरी माह में ही उन्हें मनपसंद खाना खाने को मिलता है। बाकी दिन तो माड़-भात ही खाकर रहना पड़ता है। मृतक कृष्णा सबर की बहन की भी तबीयत खराब है। उसके मुंह में घाव है व बुखार से पीड़ित है।

कुपोषण से दम तोड़ रही आदिम जनजाति, चावल-नमक ही सहारा 

 रामचंद्रपुर सबर गांव की आबादी करीब सौ के आस-पास है। यहां सभी घरों में 35 किलो चावल व पांच पैकेट नमक प्रतिमाह मिलता है, लेकिन इसके बावजूद अधिकांश घरों में नियमित रूप से चूल्हा नहीं जलता। कोई एक टाइम भोजन करता तो कोई दो टाइम। इससे कुपोषण भला कैसे खत्म हो सकता है। इस गांव में करीब 30 बच्चे हैं, जिसमें 80 फीसद कुपोषण के शिकार हैं। उम्र पांच वर्ष के दो, जबकि बाकी की उम्र छह से 12 साल तक है। ग्रामीणों का कहना है कि कुपोषण से अब तक इस गांव में कई बच्चों की मौत हो चुकी है। सबरों में अधिक कुपोषण होने का मुख्य वजह जागरूकता का भी अभाव है। उनको अपने हक की जानकारी भी नहीं है।

शौचालय की व्यवस्था नहीं, गंदगी का भी अंबार

सबरों के इस गांव में कुल 34 घर हैं, लेकिन एक घर में भी शौचालय नहीं है। घरों के पिछले हिस्से में शौचालय बना जरूर है, लेकिन वह खुला और डंप हो चुका है। स्थिति यह है कि वहां पर कोई बैठ भी नहीं सकता। जिसके कारण सभी लोग जंगल में शौच करने को मजबूर है। वहीं पूरे गांव में गंदगी का अंबार है।

सबरों का मर्ज नहीं हो रहा ठीक

संभारी सबर तीन माह की गर्भवती है। उसकी तबीयत खराब होने पर वह अनुमंडल अस्पताल, घाटशिला गई लेकिन वहां पर उसे पूरी दवा नहीं मिली। चिकित्सकों ने कुल चार दवा लिखा। इसमें तीन दवा ही मिली। एक बाहर से खरीदने को कहा, लेकिन संभारी के पास पैसा नहीं है कि वह बाहर से दवा खरीद सके। यहीं हाल मलिका सबर की भी है। वह कुपोषित होने के साथ-साथ उसके मुंह में घाव व बुखार की चपेट में है। उसके पास भी दवा खरीदने को पैसा नहीं है। इसे देखते हुए झारखंड ह्यूमन राइट्स कांफ्रेंस (जेएचआरसी) के प्रमुख मनोज मिश्र ने आर्थिक मदद की। वहीं सानसान सबर टीबी रोग से ग्रस्त है। जबकि बुना सबर के पैर में कीड़ा लगा हुआ है। उसे सात साल पूर्व जंगल में सूअर ने काट लिया था, जो अबतक ठीक नहीं हो सका है।


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