कहने को खेल राजधानी, सरकार नहीं देती एक ढेला, जानिए
क्रिकेट, तीरंदाजी, मुक्केबाजी समेत अन्य खेलों में देश-दुनिया में नाम करनेवाले खिलाड़ी देने वाले जिले में खेल के लिए कोई बजट ही नहीं है। यह खुलासा आपको हैरान कर सकता है।
जमशेदपुर [जितेंद्र सिंह]। जो जिला क्रिकेट का कोहिनूर कहे जाने वाले महेंद्र सिंह धौनी का कर्मस्थली हो। जिसने सौरव तिवारी व वरुण एरोन जैसा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर, दीपिका कुमारी जैसी अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज व विश्व महिला मुक्केबाजी के फलक पर धाक जमाने वाली अरुणा कुमारी जैसे सितारे दिए हो, उस जिले में खेल के लिए कोई बजट ही नहीं है।
खेल बजट तो छोड़ दीजिए जनाब, पूर्वी भारत में खेल की राजधानी कहे जाने वाले लौहनगरी में तो जिला खेल पदाधिकारी का कार्यालय तक नहीं है। ऐसे में सुदूर ग्रामीण इलाकों में खेल का विकास के बारे में सोचना भी बेमानी है। यह खुलासा सूचना के अधिकार के तहत दैनिक जागरण द्वारा उपायुक्त कार्यालय से पूछे गए सवाल के बाद हुआ है।
ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ पूर्वी सिंहभूम जिले में ही खेल के लिए कोई बजट का आवंटन नहीं होता है। राज्य के सभी जिलों का यही हाल है। किसी भी जिले में खेल के लिए विशेष तौर पर बजट का आवंटन नहीं होता। जब यही सवाल प्रभारी जिला खेल पदाधिकारी अनीता केरकेट्टा से पूछा गया तो उन्होंने भी स्वीकारा कि खेल के लिए सरकार की ओर से कोई बजट नहीं मिलता।
उधार लेकर आयोजन
हाल ही में प्रत्येक पंचायत में मुख्यमंत्री आमंत्रण फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन किया गया, वह भी बिना बजट के। सरकार का आदेश है तो किसी तरह आयोजन करना ही होगा। उधार लेकर खेल का आयोजन किया गया। अब आयोजन में खर्च हुई राशि सरकार के पास फंसी हुई है और आयोजक माथा पीट रहे हैं।
हर प्रखंड में स्टेडियम निर्माण की योजना
राज्य सरकार का सपना प्रत्येक प्रखंड में स्टेडियम निर्माण व प्रत्येक पंचायत में मैदान विकसित करने की योजना है। पंचायतों में कमल क्लब तो है, लेकिन स्थानीय स्तर पर बच्चों के अभ्यास के लिए सरकार की ओर से कोई राशि आवंटित नहीं की जाती। ऐसे में जब पूर्वी सिंहभूम में खेल के लिए कोई बजट ही नहीं है तो आप कह सकते हैं, 'भूखे पेट भजन नहीं होय गोपाला, ले तेरी कंठी ले तेरी माला।'