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मंच को गीत की खुली किताब बना देने वाले गीतकार थे नीरज

गीतकार गोपाल दास नीरज के बारे में विस्तार से एक संस्मरण सुना रही हैं जमशेदपुर की वरिष्ठ साहित्यकार डा. शांति सुमन।

By JagranEdited By: Published: Fri, 20 Jul 2018 07:00 AM (IST)Updated: Fri, 20 Jul 2018 07:00 AM (IST)
मंच को गीत की खुली किताब बना देने वाले गीतकार थे नीरज

डॉ. शांति सुमन (साहित्यकार), जमशेदपुर : नीरज का जीवन एक गीत यात्री का जीवन है। उनका जाना एक गीत यात्री का जाना है। नीरज के गीत शब्दवेधी वाण तो नहीं थे, पर उनके पूरे परिवेश पर उनका वार उसी तरह होता था। नीरज ने अपने जीवन का एक क्षण भी जाया नहीं किया, शब्दों को जाया नहीं किया। नीरज ने गीत को राष्ट्रीय क्षितिज से दूर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा दिया। उन्होंने गीत संग्रहों के ढेर नहीं लगाए, पर एक-एक गीत को महा काव्यात्मक गरिमा देकर प्रस्तुत किया। छंद और भाषा दोनों को ही लालित्य देकर नीरज ने गीतों पर सांस्कृतिक मुहर लगाई।

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प्रेम और जीवन-मरण नीरज के गीतों के मुख्य तथ्य हैं। वे बाजारवादी व्यवस्था से आहत हुए बिना अपनी आत्मा पर वाण -विद्धक्षिनी की पीड़ा भोगते रहे, पर उस पीड़ा में प्रेम की तन्मयता थी, आध्यात्मिक सानिध्य था। घर-परिवार की पीड़ा ने उनको कभी नहीं रोका, पर लोक जीवन की त्रासदी से वे विचलित हो जाते थे। नीरज के सारे गीत जो उनके गीत संग्रहों में हैं या सिनेमा में शामिल हुए-सभी स्वतंत्र मनीषा के गीत हैं।

बच्चन, रामानाथ अवस्थी, रामावतार त्यागी आदि के प्रभा मंडल के सबसे द्युतिमान नक्षत्र नीरज ही थे। प्रगतिवाद के बाद राजनीति से झाड़-पोंछकर उन्होंने गीत की आत्मा को मुक्त किया। नीरज के गीत दूसरों से अलग और ऊपर हैं। आत्मा-परमात्मा को लिखते हुए, जीवन-मरण के तार को जोड़ते हुए वे आम जन के गीतकार बन गए थे। वे गीत संग्रहों के पृष्ठों से जितना जाने गए, उससे सहप्राधिक स्तर पर कवि मंचों से जाने गए। नीरज अपने आप में एक पूरा कवि सम्मेलन थे। मंच पर उनका आ जाना ही कवि सम्मेलन की सार्थक संकेत सफल हो जाता था। कई मंचों पर वे शोभा विधायक व्यक्तित्व ही बन गए थे। 25 से अधिक कवि सम्मेलनों में मैंने उनके साथ सस्वर गीत पाठ किया था। नीरज को देखकर मुझको सहज और निर्भीक होने की प्रेरणा मिलती थी। वे गीतकार जितना महान थे, उतना ही आदर्श, सहज और सरल मनुष्य थे। उनके मन में नए गीतकारों के प्रति भी अपनत्व झलकता था। सिनेमा के उनके गीत सिनेमा के लिए नहीं लिखे गए थे। वे उनके नीरजधर्मी गीत ही थे। चकित करने वाली बात थी कि वे उसी सधे मुग्धकारी स्वर में उन गीतों को मंच से सुनाते थे। उनका स्वर इत्र के फाहे की तरह अपनी सुगंध को दिशाओं में उड़ेल देता था। दसों हजार श्रोताओं को आकृष्ट करने वाले इनकी तरह के एक यही गीतकार थे। मंच को गीत की खुली किताब बना देने वाले गीतकार नीरज ही थे। जनता से उनका सरोकार शब्दों का ही सरोकार था। वे शब्दों का शहंशाह थे। उन्होंने जीवन भर अपने गीतों में प्यार को परिभाषित किया। खलील जिब्रान के बाद प्यार को जितना नीरज ने ऊंचा उठाया किसी ने नहीं। अपनी पुस्तकों की पृष्ठों को आखर - आखर में उनकी सांस चलती रहेगी। नीरज जैसे गीतकार का कभी अंत नहीं होता, उनकी यात्रा स्थगित होती है।

हिन्दी गीत कविता को नीरज ने जो अवदान दिया है-शब्दों से, स्वरलय से, अपनी सुरीलेपन से वह अनंत अनंत काल तक उपस्थित रहेगा। मैं कहना चाहती हूं कि अपनी अनुपस्थिति में नीरज की उपस्थिति बनी रहेगी। शब्द नहीं मरता, लय नहीं मरती। इसलिए उनको संजोने वाले नीरज से गीतकार नहीं मरते। समय जैसे जैसे बीतेगा-उनका अतीत वर्तमान बनता रहेगा। लाखों गीतधर्मियों के साथ उनको मेरे पवित्र प्रणाम।


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