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shahabuddin: जमशेदपुर के सबसे बड़े गैंगवार से शहाबुद्दीन को मिली थी सुर्खियां, हत्या में पहली बार कारबाइन का हुआ था इस्तेमाल

shahabuddin Death 1989 में हुइ तीन हत्या का मामला लौहनगरी का सबसे बड़ा गैंगवार था। हत्या में कारबाइन का प्रयोग किया था जो शायद जमशेदपुर में पहली बार हुआ था। शहाबुद्दीन जमशेदपुर के गरमनाला गिरोह के साहेब सिंह के लिए काम करता था।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 01 May 2021 08:50 PM (IST)Updated: Sun, 02 May 2021 09:56 AM (IST)
शहाबुद्दीन की तिहरे हत्याकांड में जमशेदपुर की अदालत में 27 जुलाई 2005 में पेशी हुई थी।

जमशेदपुर, जासं। जमशेदपुर के जुगसलाई में दो फरवरी 1989 में युवा कांग्रेस के जिला अध्यक्ष प्रदीप मिश्रा, रेलवे ठेकेदार आनंद राव और जर्नादन चौबे की हत्या में मुख्य गवाह पुलिसकर्मी बरमेश्वर पाठक था जिसे पुलिस गवाही के लिए खोज नहीं पाई। गवाही नहीं होने का फायदा 28 साल बाद अदालत में हत्याकांड के आरोपित मो. शहाबुद्दीन को मिला था जिस कारण 17 अप्रैल 2017 को जमशेदपुर की अदालत ने साक्ष्य अभाव में बरी कर दिया था।

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घटना को जानने वाले धमेंद्र सिंह बताते हैं कि 1989 में हुइ तीन हत्या क मामला लौहनगरी का सबसे बड़ा गैंगवार था। हत्या में कारबाइन का प्रयोग किया था जो शायद जमशेदपुर में पहली बार हुआ था। हत्या जमशेदपुर के आपराधिक गिरोह के बीच वर्चस्व को लेकर किया गया था। मुख्य सड़क पर अपराधियों ने फिल्मी अंदाज में घटना को अंजाम दिया था। प्रदीप मिश्रा जिले में उभरते हुए नेता थे। प्रदीप मिश्रा के बड़े भाई परमात्मा मिश्रा ने बरमेश्वर पाठक की गवाही के लिए विभाग को कई बार लिखा-पढ़ी की, लेकिन गवाही नहीं हुई। वह मामले का शिकायतकर्ता भी था। मुख्य गवाह प्रदीप मिश्रा का अंगरक्षक था। तीन हत्या के बाद ही सिवान के मो.शहाबुुद्दीन का नाम चमका था। वह जमशेदपुर के गरमनाला गिरोह के साहेब सिंह के लिए काम करता था।

2005 में हुई थी जमशेदपुर की अदालत में मो. शहाबुद्दीन की पेशी

  सिवान के पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन की प्रदीप मिश्रा समेत तीन की हत्या मामले में जमशेदपुर की अदालत में 27 जुलाई 2005 में हुई थी। इसके बाद पेशी के लिए जमशेदपुर अदालत की ओर से बिहार सरकार के गृह विभाग, जेल आइजी और सिवान जेल के अधिकारियों को भी पत्र लिखा गया था, लेकिन शहाबुद्दीन की पेशी नहीं हो सकी। काफी लिखा-पढ़ी के बाद बिहार सरकार ने 10 नवंबर 2005 को पत्र लिखकर बताया कि छह माह के लिए शहाबुद्दीन को बाहर नहीं भेजा जा सकता है। पेशी नहीं होने के कारण मामला लंबित होता चला गया था। घटना के 28 साल बाद तीन अप्रैल 2017 को जमशेदपुर अदालत मेें मो. शहाबुद्दीन की पेशी वीडियो कॉन्फ्रेसिंग से हुई। 313 का बयान भी इसी के माध्यम से अदालत में दर्ज किया गया था। जिसमें खुद को निर्दोष बताया था। मामले में अरविंद मंगोतिया, मो. नौशाद, तरुण कुमार घोष, नान्टूू दास, बिज लाल साव, परमात्मा मिश्रा, सुरेंद्र राय, शिव शंकर, अख्तर हुसैन समेत अन्य थे।


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