लाह की खेती के लिए वन विभाग किसानों को देगा निशुल्क बीज और कृषि उपकरण Jamshedpur News
लाह उत्पादन के लिए अनुकूल सरायकेला जिले में अब जमकर लाह की खेती होगी। वन विभाग इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित करने में जुट गया है।
सरायकेला (जासं) । लाह उत्पादन के लिए अनुकूल सरायकेला जिले में अब जमकर लाह की खेती होगी। वन विभाग इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित करने में जुट गया है। पहली बार जिले में वन विभाग किसानों को लाह के बीज के साथ लाह की खेती करने के लिए आवश्यक औजार, खाद, दवा और अन्य जरूरी सामन निशुल्क मुहैया कराएगा। जिले में वन विभाग द्वारा लाह किसानों की 125 समितियों का गठन किया गया है। इन समितियों के माध्यम से वन क्षेत्र में स्थित कुसुम, प्लास और बेर के पौधों में लाह की खेती होगी।
इस बारे में जानकारी देते हुए सरायकेला जिले के वन प्रक्षेत्र के रेंजर प्रमोद कुमार ने बताया कि जिले के वन क्षेत्रों में प्लाश, कुसुम व बेर के पेड़ों की भरमार है। जिसमें लाह खेती की अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि इन पेड़ों में पहले भी किसान लाह की खेती करते थे, लेकिन प्रशिक्षण का अभाव, पूंजी का अभाव, बीज और अन्य आवश्यक सामानों की अनुलब्धता के कारण यहां लाह का उत्पादन बेहतर नहीं हो पाता था और काफी कम संख्या में किसान लाह की खेती करते थे।
किसानों को बीज आसानी से मिले इसलिए वन विभाग ने सरायकेला वन प्रक्षेत्र के सांपड़ा गांव में लाह बीज उत्पादन फार्म की स्थापना की है। जहां लाह के बीज की खेती शुरू की गई है। जिले में लाह की खेती की असीम संभावनों को देखते हुए वन विभाग द्वारा लाह किसानों को प्रोत्साहित करने के दिशा में यह प्रयास किया जा रहा है। इस जिले में कुसुम, बेर व फ्लाश के पौधों की भरमार है। ऐसे में यहां वर्षों से लाह की खेती होती थी। यह सारा प्रयास व्यक्तिगत स्तर से होता था। सक्षम लोग बाहर से लाह बीज लाकर खेती करते थे। वहीं सरायकेला वन प्रक्षेत्र के सांपड़ा वन समिति द्वारा लाह के बीज बनाने का काम भी चलता था। मगर आर्थिक और अन्य कारणों से बीते पांच वर्षों से यहां लाह बीज की खेती बंद थी।
पलाश के पेड़ में प्रचूर मात्रा में होता है लाह
लाहकी खेती के लिए पलाश के पेड़ को सबसे अच्छा माना जाता है। जिले में प्रचूर मात्रा में पलाश के पेड़ रहने के बावजूद यहां नाम मात्र की खेती होती है। पलाश के अलावा बैर और तूत के पेड़ से भी लाह निकलता है। जिले में बेर के पेड़ भी बड़ी मात्रा में हैं, लेकिन इनमें खेती नहीं होती है। लाह की खेती के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजने की तैयारी चल रही है।
साल में दो बार होती है लाह की खेती
रंगीनलाख कीट से एक वर्ष में दो फसलें ली जाती हैं, जिसे बैसाखी (ग्रीष्मकालीन) और कतकी (वर्षाकालीन) फसल कहते हैं। बैसाखी फसल हेतू लाह कीट या बीहन (बीज) को वृक्षों पर अक्टूबर या नवंबर माह में तथा कतकी के लिए जून या जुलाई माह में चढ़ाया जाता है। बैसाखी और कतकी फसल बीहन चढ़ाने के बाद क्रमशः 8 और 4 माह में तैयार हो जाते हैं। वर्षों पहले जब प्लास्टिक का प्रचलन कम था, तब कई तरह के किट, पाइप आदि के उपयोग का विकल्प लाह ही था।