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लॉकडाउन में एक लाख नहीं 20 हजार लोगों को बंट रहा भोजन

कोरोना (कोविड-19) को लेकर 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन लागू हो गया। इसके बाद जब राशन-दवा को छोड़कर सभी तरह की दुकान कंपनी और बाद में दफ्तर भी बंद हो गए तो सबसे बड़ा संकट यही दिखा कि दिहाड़ी मजदूर गरीब बेसहारे क्या खाएंगे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 05 Apr 2020 09:00 AM (IST)Updated: Mon, 06 Apr 2020 06:16 AM (IST)
लॉकडाउन में एक लाख नहीं 20 हजार लोगों को बंट रहा भोजन
लॉकडाउन में एक लाख नहीं 20 हजार लोगों को बंट रहा भोजन

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : कोरोना (कोविड-19) को लेकर 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन लागू हो गया। इसके बाद जब राशन-दवा को छोड़कर सभी तरह की दुकान, कंपनी और बाद में दफ्तर भी बंद हो गए, तो सबसे बड़ा संकट यही दिखा कि दिहाड़ी मजदूर, गरीब, बेसहारे क्या खाएंगे।

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इसके लिए जिला प्रशासन ने ना केवल मुख्यमंत्री कैंटीन योजना शुरू कर दी, बल्कि सैकड़ों स्वयंसेवी संस्थाएं, राजनीतिक-सामाजिक संगठन जरूरतमंदों को खाना खिलाने में जुट गई। इस बीच शहर में जितने दावे किए गए, उसके मुताबिक शहर में एक लाख लोगों को रोज भोजन बंट रहा है। लेकिन जब दैनिक जागरण ने शनिवार को इसकी पड़ताल की, तो यह आंकड़ा 20 हजार के आसपास दिखा।

इसमें सबसे पहले विधायक सरयू राय ने लॉकडाउन रहने तक हर दिन 3000 लोगों को खिलाने की घोषणा की, तो अगले दिन टाटा स्टील ने 50 हजार भोजन के पैकेट बांटने की बात कही। मुख्यमंत्री कैंटीन योजना की आठ गाड़ियां पहले से चल रही थीं, जिससे औसतन आठ हजार लोगों को खिचड़ी बांटी जा रही है। स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने भी जन-आहार केंद्र शुरू कर दिया, जहां से करीब 1000 लोगों को भोजन खिलाने की बात कही जा रही है। काले की संस्था नमन भी हर दिन करीब 2000 जरूरतमंदों की सेवा कर रही है। बिरसानगर में कोरोना किचन चल रहा है, जहां से हर दिन 500 पैकेट पूड़ी-सब्जी बंट रही है। इनके अलावा शहर में सिंहभूम जिला मारवाड़ी सम्मेलन व विभिन्न गुरुद्वारों सहित कई संस्थाएं गरीबों-जरूरतमंदों को भोजन करा रही हैं। इनमें से अधिकांश संस्थाएं नाम छपवाने के लिए लालायित रहती हैं, जबकि कुछ ऐसी संस्थाएं भी हैं जो नाम या फोटो छापने तक से मना कर देती हैं। ये संस्था सीमित मात्रा में भोजन बांट रही हैं, लेकिन इनके भोजन की गुणवत्ता काफी बेहतर है। वहीं मुख्यमंत्री कैंटीन की खिचड़ी में चावल-दाल के अलावा सिर्फ हल्दी और नमक ही है। जो भी हो सरकार ने इसका शुल्क 10 रुपये से पांच रुपये किया, तो दो दिन बाद निश्शुल्क कर दिया गया। यही बड़ी बात है। मुख्यमंत्री दाल-भात केंद्र भी निश्शुल्क चल रहा है।

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नियमित रूप से नहीं पहुंच रही मुख्यमंत्री कैंटीन

मुख्यमंत्री कैंटीन योजना की गाड़ी अब पूरी तरह टाटा स्टील के सौजन्य से चल रही है, लेकिन यह नियमित रूप से नियत स्थान पर नहीं पहुंच रही हैं। शुक्रवार को मानगो चौक के पास गाड़ी नहीं पहुंची थी, जबकि डिमना चौक पर 26 मार्च के बाद से गाड़ी गई ही नहीं। यहां श्याम सेवा समिति व मानगो गुरुद्वारा समेत अन्य संस्थाओं द्वारा भोजन कराया जा रहा है।

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कुछ संस्था बांट रही राशन

कई संस्थाएं शहर में गरीबों को भोजन करा रही हैं, तो कुछ संस्था सीधे राशन बांट रही हैं। इसमें चावल, दाल, आलू, मसाला, हल्दी आदि शामिल हैं।

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कब तक खिचड़ी खाएं

मुख्यमंत्री कैंटीन और टाटा स्टील सहित कई संस्थाएं हर दिन खिचड़ी बांट रही हैं। इससे जरूरतमंद भी ऊब गए हैं। उनका कहना है कि हम कब तक खिचड़ी खाएंगे, रोज-रोज खिचड़ी ठीक नहीं लग रही है।

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कुछ दिन बाद बदलेंगे मेनू : टाटा स्टील

रोज-रोज खिचड़ी बांटने के सवाल पर टाटा स्टील के चीफ (सीएसआर) सौरभ राय ने कहा कि अभी तक भोजन वितरण की व्यवस्था सुचारू नहीं हो सकी है। हर दिन हमें जिला प्रशासन से नया मोहल्ला मिल जाता है, तो हर दिन रूट चार्ट बदलना पड़ रहा है। कुछ दिनों में व्यवस्था ठीक हो जाएगी तो भोजन का मेनू बदला जाएगा।


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