झारखंड के इस गांव में गड्ढे में मोती उगा रहे किसान, यकीन नहीं होगा पर है सोलह आने सच
परंपरागत खेती करने वाले सुभाष महतो मोती की खेती से किस्मत बदलने जा रहे हैं। उन्हें इसकी प्रेरणा उनके दामाद राजेश महतो से मिली जिन्होंने यू-ट्यूब पर देखा था।
जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। झारखंड के किसान अब तक धान और सब्जी की खेती ही करते आए हैं। लेकिन एक किसान ऐसा है जो अपने खेत में ही मोती की खेती कर रहा है। जमशेदपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर रंगामटिया गांव में यह खेती हो रही है। अब तक ठेका मजदूरी और परंपरागत खेती करने वाले सुभाष महतो (50) मोती की खेती से किस्मत बदलने जा रहे हैं। उन्हें इसकी प्रेरणा उनके दामाद राजेश महतो से मिली, जिन्होंने यू-ट्यूब पर देखा था कि मोती की खेती से एक साल में पांच से दस गुणा तक आमदनी हो सकती है।
इसके बाद उन्होंने कोलकाता में तीन माह का प्रशिक्षण लिया। हालांकि उन्होंने अभी यह खेती शुरू की है, इसकी फसल मई-जून 2020 में तैयार होगी। ढाई लाख की पूंजी से जब यह फसल तैयार होगी, तो करीब 14 लाख रुपये की आय होगी। फिलहाल दो गड्ढों (30/30 और 40/40 फीट चौड़ाई और लंबाई) जिनकी गहराई छह फीट है में आठ हजार मोती के सीप डाले गए हैं। इसे तैयार होने में कम से कम एक साल का समय लगेगा। सुभाष बताते हैं कि कोलकाता और उसके पास मेचेदा में इसकी आसानी से बिक्री हो जाएगी। वैसे उन्हें स्थानीय स्तर पर भी ऑर्डर मिल रहे हैं।
ऐसे तैयार होते हैं मोती
मोती समुद्र में रहने वाले घोंघा प्रजाति के एक छोटे से प्राणी के पेट में बनता है। सबसे पहले समुद्र के सीप को गड्ढे में करीब एक सप्ताह तक छोड़ दिया जाता है। जब वह यहां के पानी में रहने लायक हो जाता है, तब सीप को बाहर निकालकर सर्जरी के माध्यम से मोती का बीज सीप में डाला जाता है। चूंकि सीप और मोती जीव होता है, लिहाजा एंटीबायोटिक दवा के घोल में करीब एक सप्ताह तक रखा जाता है। करीब 10 दिन बाद इसे दोबारा गड्ढे में डाला जाता है। इसके बाद सीप के अंदर मोती पर कैल्सियम काबरेनेट की परत चढ़ती जाती है। यह समय के साथ सफेद रंग का चमकदार गोल आकार का पत्थर जैसा बन जाता है। एक सीप को 18-20 माह तक रखने पर सामान्य से बड़े आकार के मोती तैयार होंगे। इसका उपयोग लॉकेट के रूप में उपयोग होता है, जबकि छोटे मोती अंगूठी और नेकलेस आदि बनाने के काम आते हैं।।
हर किसान बने खुशहाल
मोती की मांग बंगाल और ओडिशा में काफी ज्यादा है, स्थानीय बाजार में भी इसकी आसानी से बिक्री हो जाती है। सुभाष चाहते हैं कि झारखंड के दूसरे किसान भी इसकी खेती करें, वे सिखाने को तैयार हैं। वह चाहते हैं कि उनके राज्य का हर किसान खुशहाल हो।