बुजुर्ग टाइपिस्ट की देशभक्ति पर हर कोई फिदा, हर रोज शान से फहराता तिरंगा
कुछ लोग मुझे पागल कहते होंगे, पर अधिकतर मुझे सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। इन्हीं लोगों से मुझे ऊर्जा मिलती है।
जमशेदपुर [मनोज सिंह]। 15 अगस्त और 26 जनवरी ही नहीं, जमशेदपुर के चौराहों पर वे हर रोज पूरे विधिविधान संग तिरंगा फहराते हैं। 60 साल के केदारनाथ भारतीय की देशभक्ति देख दिल तपाक से बोल उठता है- जय हिंद।
जमशेदपुर, झारखंड स्थित बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर चौक और उपायुक्त कार्यालय चौराहे पर हर रोज शान से फहराता तिरंगा देशभक्ति की निराली छटा बिखेरता है। इन दो चौराहों पर केदारनाथ को हर सुबह तिरंगा फहराते और शाम ढलते ही सम्मान के साथ उसे उतारते देखा जा सकता है। लोग जुट गए तो ठीक, नहीं तो वह अकेले ही यह काम करते हैं। पूरे समर्पण के साथ। ध्वजारोहण कर सावधान की मुद्रा में खड़े हो ध्वज को नमन और सैल्यूट भी करते हैं।
केदारनाथ भारतीय पेशे से हिंदी-अंग्रेजी टाइपिस्ट हैं। 30 वर्षों से जमशेदपुर कोर्ट परिसर में टाइपराइटर लेकर बैठते हैं। मानगो पारसनगर में रहते हैं। वर्ष 1977 में मैट्रिक पास करने के बाद आगे की पढ़ाई नहीं कर सके। दो पुत्रों के पिता हैं। कहते हैं कि साकची के राजस्थान विद्यामंदिर से मैट्रिक करते हुए देशभक्ति का संस्कार पड़ा। युवा होते-होते यह जुनून बन गया।
पिछले 41 वर्षों से देशप्रेम की इसी प्रेरणा से प्रेरित हो, इसे अभिव्यक्त करने और समाज में इसकी अलख जगाए रखने के लिए कोई न कोई अभियान चलाते रहता हूं। शहर के चौराहे पर रोजाना तिरंगा न फहराऊं तो चैन नहीं मिलता।
हर सुबह स्नान आदि के बाद सादे और साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर केदारनाथ निर्धारित स्थलों पर पहुंच जाते हैं। विधि-विधान सहित राष्ट्रध्वज फहराते हैं। इस दौरान वंदे मातरम और भारत माता की जय का नारा लगाते हुए झंडे को सलामी भी देते हैं। फिर शाम होते ही वापस पहुंचते हैं और विधि-विधान संग राष्ट्रध्वज को उतारते हैं। कहते हैं, अब स्थानीय लोग भी एकत्र होने लगे हैं।
उम्मीद है कि अब यह सिलसिला कभी नहीं थमेगा। देशभक्ति का पैगाम देने वाले अपने अन्य अभियानों के बारे में पूछने पर वह बताते हैं कि जन-जन के बीच देशप्रेम की भावना जगाने के लिए साइकिल से शहर भर का कई दिनों तक भ्रमण कर चुके हैं। साइकिल पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की तस्वीर लगाकर गली-गली में घूमा करते थे। लोग उन्हें देखकर बोल उठते- देखो सुभाषचंद्र बोस आ गए हैं। केदारनाथ को यह सुनकर खुद पर खूब गर्व होता। कहते हैं, ऐसा लगाता मानों सपना पूरा हो गया।
शहर में घूमते समय एक दिन उनकी नजर एक गुटखे के पाउच पर पड़ी। जिस पर तिरंगा बना हुआ था और गुटखे का नाम भी तिरंगा रखा गया था। इसके विरोध में उन्होंने घर-घर जाकर अपील की और लोगों को इसके बारे में बताया। परिणाम यह रहा कि तिरंगा गुटखा के खिलाफ जमकर जन विरोध शुरू हो गया। अंतत: गुटखे के पाउच का रंग और नाम दोनों बदलने पड़े।
कुछ लोग मुझे पागल कहते होंगे, पर अधिकतर मुझे सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। इन्हीं लोगों से मुझे ऊर्जा मिलती है। जब तक सांसें रहेंगी और शरीर साथ देगा, मैं रोजाना राष्ट्रध्वज फहराता रहूंगा।
-केदारनाथ भारतीय