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अति उग्रवाद से मुक्त हुआ झारखंड का यह जिला, पिछड़े का भी कलंक मिटा

झारखंड का पूर्वी सिंहभूम जिला अति उग्रवाद से बाहर हो गया। इसके साथ ही जिला के पिछड़े जिले की फेहरिस्त में शामिल होने का कलंक भी मिट गया है।

By Edited By: Published: Thu, 24 May 2018 08:00 AM (IST)Updated: Thu, 24 May 2018 01:43 PM (IST)
अति उग्रवाद से मुक्त हुआ झारखंड का यह जिला, पिछड़े का भी कलंक मिटा

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। झारखंड के 16 जिले अति उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में शामिल थे, जिससे पूर्वी सिंहभूम जिला बाहर हो गया। इसके साथ ही जिला के पिछड़े जिले की फेहरिस्त में शामिल होने का कलंक भी मिट गया है। इस संबंध में बुधवार को समाहरणालय में जिला कार्ययोजना की बैठक हुई, जिसमें जिला में किए गए विकास कार्यो की समीक्षा की गई। उपायुक्त अमित कुमार ने बताया कि गृह विभाग ने जो सूची जारी की है, उसमें पूर्वी सिंहभूम जिला शामिल नहीं है।

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इसके पीछे केंद्र व राज्य सरकार की लोक कल्याणकारी योजनाओं को गंभीरता से लागू करना रहा। हमने जिला में16 पंचायत के 30 गांव को फोकस एरिया (नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र) के रूप में चिह्नित करके विकास योजनाओं को लागू किया। आधारभूत संरचना निर्माण के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर विशेष कार्य किए। इसकी विस्तृत रूपरेखा केंद्र को भी भी गई थी। कौशल विकास योजना में जिला को पहला स्थान प्राप्त हुआ। इसके तहत जिला में मेगा स्किल डेवलपमेंट सेंटर की स्थापना की गई, नियोक्ता सम्मेलन कराया गया। इसके तहत पिछली बार 15,000 युवाओं को नियुक्ति पत्र दिया गया था। इस बार 20,000 युवाओं को नियुक्ति पत्र देने का लक्ष्य है। इसी कड़ी में 31 मई को पैन-आइआइटी, गुरुकुल व आरसेटी के सहयोग से इंडस्ट्री कनेक्ट प्रोग्राम किया जाएगा।

गांधी जयंती से पहले खुले में शौच मुक्त होगा जिला
पूर्वी सिंहभूम जिला गांधी जयंती (दो अक्टूबर) से पहले खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया जाएगा। जून तक शौचालय निर्माण का काम पूरा करने के लक्ष्य पर काम हो रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में विद्यालयों के पुनर्गठन, विलय, स्मार्ट क्लास, शून्य ड्रॉपआउट आदि कार्य होंगे। महिला साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक शिक्षक 10 निरक्षर महिलाओं को साक्षर बनाएंगे। कृषि क्षेत्र में कृषक मित्र बनाने, स्वाइल हेल्थ कार्ड, बीज ग्राम आदि बनाने पर काम किया जाएगा।

मुख्य फैक्टरः ऐसा पनपा था उग्रवाद और यूं होता गया कमजोर
ज्ञानेश्वरी ट्रेन हादसे को अंजाम देने के बाद जिले में माओवादियों के सफाए के संकल्प के साथ व्यापक रणनीति के तहत काम शुरू किया गया। हादसे के करीब डेढ़ साल बाद जब नवंबर 2011 में लालगढ़ में सीआरपीएफ ने माओवादियों के पोलित ब्यूरो सदस्य किशनजी उर्फ कोटेश्वर राव को मार गिराया तो वहीं से पूर्वी सिंहभूम में नक्सलवाद की पकड़ कमजोर करने की राह प्रशस्त हुई।

टर्निंग प्वाइंटः कान्हू मुंडा के आत्मसमर्पण ने बनाया रास्ता
बंगाल में चले लालगढ़ ऑपरेशन के बाद कई शीर्ष नक्सली छिपने के लिए बंगाल के पश्चिमी मेदिनीपुर जिला से सटे पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला अनुमंडल के जंगलों में शरण लेने लगे। बंगाल के माओवादियों का पूर्वी सिंहभूम में जबरदस्त प्रभाव रहा। लालगढ़ से तो माओवादियों का सफाया हो गया, लेकिन पूर्वी सिंहभूम में उन्होंने अपने संगठन को मजबूत करना शुरू कर दिया। एक ओर बंगाल से आये माओवादी और दूसरी ओर गुड़ाबाधा और मुसाबनी के स्थानीय माओवादी। इनमें कान्हू मुंडा का दस्ता मुख्य था, जिसके साथ फोगड़ा मुंडा और सुपाई टुडू मुख्य नक्सली थे। कान्हू मुंडा के दस्ते का सरेंडर जिले को नक्सल मुक्त करने की दिशा में टर्निग प्वाइंट साबित हुआ।

रिजल्टः दस्ते टूट गए, हथियार छोड़ गांवों में हुए भूमिगत
पुलिस के बढ़ते दबाव के कारण माओवादियों ने अपनी रणनीति बदल दी। उन्होंने अपने हथियार छुपा दिए और खुद भूमिगत हो गांवों में रहने लगे। अधिकतर दस्ते टुकड़ों में बंट गए। उस समय कान्हू मुंडा के दस्ते के साथ 20 लोग थे, लेकिन कई नक्सलियों के मारे जाने और कई के सरेंडर करने के बाद उसमें सिर्फ पाच लोग बच गए। जिसके बाद कान्हू ने सरेंडर कर दिया। घाटशिला के गुड़ाबादा में नक्सलियों के सफाए और लगातार सरेंडर के बाद अब नक्सलियों का केवल बेलपहाड़ी दस्ता ही शेष रह गया है। इस दस्ते में 12-13 नक्सली हैं।

टारगेट तयः पूरी तरह नक्सल मुक्त जिला बनने की ओर
झारखंड पुलिस अब पश्चिम बंगाल पुलिस के साथ रणनीति बनाकर लगातार अभियान चला रही है ताकि ये बाकी बचे कुछ इलाकों को भी पूरी तरह नक्सल समस्या मुक्त करा दिया जाए। पूर्वी सिंहभूम पुलिस का दावा भी है कि वह अब कामयाबी के बेहद करीब है। जिले में बचा एकमात्र नक्सली दस्ता अगर सरेंडर कर देता है या फिर इसका सफाया हो जाता है तो पूर्वी सिंहभूम जिला पूरी तरह नक्सलवाद मुक्त हो जाएगा।


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