Earth Day 2020 : लॉकडाउन के कारण झारखंड के कोल्हान में प्रदूषण में 50 फीसद गिरावट
Earth Day 2020.लॉकडाउन ने कारखानों से लेकर वाहनों तक पर ब्रेक लगा दिया। इस कारण झारखंड के सबसे प्रदूषित शहरों में एक जमशेदपुर के प्रदूषण के स्तर में काफी सुधार हुआ है।
जमशेदपुर, जासं। Earth Day 2020 कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन के बाद कोल्हान की धरती भी राहत महसूस कर रही है। झारखंड की औद्योगिक राजधानी में शुमार कोल्हान क्षेत्र में सर्वाधिक कल-कारखाने होने के कारण भारी वाहनों की आवाजाही भी ज्यादा है। कारखाने ज्यादा तो कर्मचारी भी ज्यादा, तो दोपहिया और चारपहिया वाहनों की संख्या भी ज्यादा है। पर, लॉकडाउन ने कारखानों से लेकर वाहनों तक पर ब्रेक लगा दिया। इस कारण झारखंड के सबसे प्रदूषित शहरों में एक जमशेदपुर के वायु प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण के स्तर में काफी सुधार हुआ है।
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के क्षेत्रीय पदाधिकारी की मानें तो लॉकडाउन के कारण कोल्हान में प्रदूषण के स्तर में 50 फीसद तक की गिरावट आई है। कारखाने बंद होने से चिमनियों से निकलना वाला धुआं, भारी वाहनों व दोपहिया और चार पहिया वाहनों से निकलने वाला धुंआ भी थम गया है। गाड़ियों का शोर भी कम हो चुका है। ऐसे में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) जो फरवरी 2020 में 122 था वह लॉकडाउन में घटकर 77 पर आ गया है। यह संतोषजनक है। जबकि, सबसे बेहतर आंकड़े आबादी के हिसाब से आस्ट्रेलिया, जापान, रूस, स्पेन जैसे देश हैं, जहां एयर क्वालिटी नौ एक्यूआइ से नीचे है।
आंकड़े लोगों को प्रफुल्लित करनेवाले
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के क्षेत्रीय पदाधिकारी सुरेश पासवान कहते हैं कि लॉकडाउन से पूर्व व वर्तमान जांच में प्रदूषण के स्तर पर 50 फीसद की गिरावट आई है। इसमें धूल-कण की मात्र, नाइट्रोजन गैस व सल्फर डाइऑक्साइड गैस की मात्रा में काफी सुधार हुआ है। वहीं जहां वाहनों के चलने के कारण शहर में प्रदूषण का स्तर काफी चिंताजनक होता था, अब काफी राहत प्रदान करने वाले हैं। सच पूछो तो ये आंकड़े लोगों को प्रफुल्लित करने वाले हैं।
प्रदूषण घटकर हो चुका है आधा
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा हर दिन शहर के विभिन्न इलाकों में प्रदूषण के स्तर को मापा जाता है। सामान्य दिनों में सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ 2) का औसतन स्तर 48.25 रहता है, जो लॉकडाउन के कारण घटकर 11.75 हो चुका है। नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) जो सामान्य दिनों में 62.17 रहता है, अब घटकर 13.69 हो चुका है। वहीं, रिसपेरिएबल सस्पेक्टेड पार्टिकल मीटर (आरएसपीएम) जो सामान्य दिनों में (गोलमुरी क्षेत्र में सबसे ज्यादा) 184.31 और आदित्यपुर में 108.17 रहता है। अब 75.93 तक पहुंच चुका है।
ध्वनि प्रदूषण भी हो चुका है आधा से कम
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के मानकों के अनुसार आवासीय, वाणिज्यिक व औद्योगिक क्षेत्र के लिए अलग-अलग ध्वनि के मानक तय किए गए हैं। लॉकडाउन में इनके आंकड़े काफी राहत देने वाले हैं जो मानव शरीर को तनावमुक्त रखेगा। ताजा आंकड़ों के अनुसार सभी क्षेत्रों का ध्वनि प्रदूषण मानक से भी आधे स्तर पर पहुंच चुका है।
दलमा में लौट आई हरियाली, आग लगने की घटनाएं घटीं
प्रदूषण के कारण जंगल और जानवर दोनों की स्थिति खराब थी। लेकिन, लॉकडाउन ने इनकी भी सूरत संवार दी है। आलम यह है कि दलमा जंगल की सुंदरता निखर उठी है। पेड़ों की हरियाली पुरानी रंगत में दिखने लगी है। सबको आक्सीजन देनेवाले जंगल को मानों खुद आक्सीजन मिल गया है। जंगल में वन्यजीवों के लिए तो मंगल ही मंगल है। इस समय कई जंगली जानवरों का प्रजनन काल चल रहा है। वातावरण शांत रहने से जानवरों की संख्या बढ़ेगी। यही नहीं दलमा जंगल में आग लगने की घटना में भी कमी आई है। पहले गर्मी शुरू होते ही घटनाएं शुरू हो जाती थीं। दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी के डीएफओ चंद्रमौली प्रसाद सिन्हा कहते हैं कि अब तक जंगल में आग लगने के सिर्फ दस मामले सामने आए हैं। डेढ़ हेक्टेयर वन भूमि में जंगली पौधों को नुकसान पहुंचा है। पहले की तुलना में चार गुना कमी आई है।
खरकई-स्वर्णरेखा का साफ दिख रहा पानी
लॉकडाउन में नदियां भी साफ हो गई हैं। कई वषों से गर्मी में जिस नदी में सिर्फ पत्थरों-चट्टानों के बीच कहीं-कहीं गंदा पानी जमा हुआ दिखता था, अब अविरल धारा बह रही है। पानी भी साफ है। मानगो पुल से गुजरने पर बदबू भी नहीं आ रही है। यह तब है, जब अभी सुबह-सुबह नदी में नहाने वालों की भीड़ दिखती है। यह बदलाव लॉकडाउन की वजह से ही हुआ है। पर्यावरणविद प्रो. केके शर्मा बताते हैं कि बसें नहीं चल रही हैं। मानगो बस स्टैंड से खुलने वालीं लंबी दूरी की बसें हर दिन नदी में धुलने जाती हैं। तेल-मोबिल सहित काफी कचरा नदी में जाता था। मानगो समेत आसपास के लघु व कुटीर उद्योगों का भी काफी कचरा नदी में जाता था। नदी में गंदगी को साफ करने की अपनी क्षमता होती है, पर यह तभी संभव है, जब कचरा या गंदगी की मात्र और अवधि में पर्याप्त अंतर हो। हालांकि अब भी बस्तियों के सीवरेज का पानी नदी में जा रहा, बाकी कचरे कम हैं, इसलिए नदी क्षमता के मुताबिक साफ कर दे रही है।