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झारंखड के ताज में नया नगीना, दुर्गा के वाद्य यंत्र बानाम की जर्मनी एवं इटली में धूम, जानिए इसकी खासियत

Jharkhand Musical instrument . पूर्वी सिंहभूम जिला के चाकुलिया प्रखंड अंतर्गत बड्डीकानपुर पंचायत का एक अत्यंत पिछड़ा गांव माचकांदना। लेकिन इसी गांव में रहने वाले एक सामान्य कद काठी के युवक दुर्गा प्रसाद हांसदा ने अपने हुनर से देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रखी है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Mon, 22 Feb 2021 04:51 PM (IST)Updated: Tue, 23 Feb 2021 09:22 AM (IST)
जमशेदपुर के एक व्यक्ति ने दुर्गा को 1300 पीस बनाम का आर्डर देकर खरीदा था।

चाकुलिया, पंकज मिश्रा। पूर्वी सिंहभूम जिला के चाकुलिया प्रखंड अंतर्गत बड्डीकानपुर पंचायत का एक अत्यंत पिछड़ा गांव माचकांदना। लेकिन इसी गांव में रहने वाले एक सामान्य कद काठी के युवक दुर्गा प्रसाद हांसदा ने अपने हुनर से देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रखी है।

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दुर्गा अपने गांव के ही कुछ सहयोगी मित्रों के साथ मिलकर एक वाद्य यंत्र बानाम (सारंगी की तरह का एक वाद्य यंत्र) बनाते हैं जिसकी मांग दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। हाल ही में दुर्गा ने देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित जनजातीय महोत्सव में भाग लिया था। इसमें उनके द्वारा बनाए गए वाद्य यंत्र बानाम को देश के विभिन्न हिस्सों के अलावा विदेशों से आए सैलानियों ने भी काफी पसंद किया। जर्मनी, इटली एवं अन्य कई देशों के लोग उत्सुकता पूर्वक बानाम खरीदकर अपने देश ले गए। दिल्ली से लौटने के बाद दुर्गा ने चाकुलिया में आयोजित अखिल भारतीय संथाली लेखक संघ के दो दिवसीय सम्मेलन में भी अपना स्टॉल लगाया था। यहां भी उनके द्वारा निर्मित बानाम की अच्छी बिक्री हुई। कुछ दिनों पूर्व जमशेदपुर के एक व्यक्ति ने दुर्गा को 1300 पीस बनाम का आर्डर देकर खरीदा था। 

डेढ़ से दो हजार में बिकता है एक बानाम 

दुर्गा ने बताया कि सामान्यत: एक बनाम की कीमत 1500 से 2,000 रुपए तक मिल जाती है। हालांकि दिल्ली में यह 3000 रु तक बिका था। इसे बनाने में वह लकड़ी, नागफनी का रेशा, नारियल की खोपड़ी एवं बकरी के चमड़े का उपयोग करते हैं। इस काम में उनके साथ गांव के युवक रविंद्र हांसदा, चंद्राय हांसदा, महेंद्र मुर्मू, चेतन मांडी एवं सीमाल किस्कू सहयोग करते हैं। ये लोग बानाम के अलावा बांसुरी भी बनाते हैं। दुर्गा के इस हुनर को टाटा कल्चरल सोसाइटी से समय-समय पर प्रोत्साहन मिलता रहा है। जनजातीय बच्चों को कला संस्कृति की शिक्षा देने के लिए सोसाइटी अब तक अनेक बानाम खरीद चुकी है। दुर्गा बानाम बनाने के अलावा एक अच्छे पेंटर भी है। लेकिन विडंबना यह है कि आजीविका के लिए वे आज भी खेती पर निर्भर हैं।

बाजार उपलब्ध कराए सरकार: दुर्गा 

सुदूर गांव में रहकर भी अपने हुनर के बल पर बेहतरीन वाद्य यंत्र बनाने वाले दुर्गा प्रसाद हांसदा ने कहा कि बनाम की मांग स्थानीय स्तर से लेकर विदेशों में भी है। अगर सरकार सही तरीके से हमें बाजार उपलब्ध करा दें तो न केवल इसके निर्माण को बढ़ावा मिलेगा बल्कि मुझ जैसे अनेक ग्रामीण युवाओं को रोजगार भी मिल सकेगा।


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