डॉ. सुब्रह्माण्यम ने बदली आदवािसयों की शिक्षण व्यवस्था
निर्मल प्रसाद, जमशेदपुर कर्नाटक में डॉ. आर बालू सुब्रह्माण्यम द्वारा संचालित स्वामी विवेकानंद यूथ
निर्मल प्रसाद, जमशेदपुर
कर्नाटक में डॉ. आर बालू सुब्रह्माण्यम द्वारा संचालित स्वामी विवेकानंद यूथ मूवमेंट ने आदिवासियों के शिक्षण व्यवस्था को पूरी तरह से बदल दिया है। डॉ. सुब्रह्माण्यम बताते हैं कि वे आदिवासी बच्चों को एंग्लो-ब्रिटिश पद्धति की बजाय अनुभव आधारित शिक्षा देते हैं। उनके स्कूल में आदिवासी समुदाय के बच्चे ही पढ़ते हैं। उनके स्कूल में कोई खिड़की, छत या दरवाजे नहीं है। वे बच्चों को प्रकृति के बीच पढ़ाते हैं। हमारा मानना है कि आदिवासियों को कोई सिखा नहीं सकता। इसलिए हम उनमें खुद निर्णय लेने की क्षमता विकसित करते हैं। उनके यहा बच्चे साइंस, कॉमर्स, लैब के अलावे खेती करने का गुर भी सीखते हैं। साथ ही सप्ताह में एक दिन आदिवासी समुदाय के लीडर बच्चों की क्लास लेते हैं। उन्हें अपने समुदाय, उनका इतिहास, परंपरा और प्रचलित कहानियों से संबधित शिक्षा देते हैं। अब तक इस स्कूल से एक हजार बच्चे पढ़कर निकल चुके हैं। डॉ. सुब्रह्माण्यम टाटा स्टील द्वारा आयोजित जनजातीय सम्मेलन संवाद में शामिल होने आए हैं।
शनिवार को दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में डॉ. सुब्रह्माण्यम ने बताया कि उनकी संस्था वर्ष 1984 से बंडीपुर नेशनल पार्क में 2000 आदिवासियों के साथ काम करना शुरू किया। अब उनके साथ लगभग 25 लाख विभिन्न समुदाय के आदिवासी जुड़ चुके हैं।
साइंस पार्क इनकी ही देन : बिष्टुपुर स्थित जुस्को साउथ पार्क में जो साउंस पार्क बना है, उसका निर्माण डॉ. सुब्रह्माण्यम के स्वामी विवेकानंद यूथ मूवमेंट ने ही तैयार किया है। वे बताते हैं कि उनके स्कूल में भी साइंस पार्क है जिसे देखने एक बार सुनील भास्करन उनके स्कूल आए थे। इसके बाद जुस्को स्कूल में साइंस पार्क का निर्माण किया गया। उनका उद्देश्य है कि बच्चों को खेल-खेल में शिक्षित करना है।
चार क्षेत्रों में कर रहे हैं काम : वे मुख्य रूप से चार क्षेत्र स्वास्थ्य सेवा के लिए आरोग्य, शिक्षा, लाइवलीहुड मिशन के तहत महिलाओं को स्वालंबी बनाते हैं। इसके अलावे ट्रेनिंग एंड रिसर्च के तहत युवा आदिवासियों को लीडरशिप प्रोग्राम के तहत दो वर्ष का मास्टर्स इन डेवलपमेंट मैनेजमेंट का प्रशिक्षण देते हैं। उनके स्कूल व कॉलेज मैसूर विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त है। झारखंड से भी कई आदिवासी युवा उनके संस्थान से शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं।