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सरकार की बढ़ी मुश्किल, डॉक्टर नहीं आना चाह रहे सरकारी अस्पताल Jamshedpur news

सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की दिलचस्पी नहीं है। एमजीएम अस्पताल के लिए चयनित 33 सीनियर डॉक्टरों में अबतक केवल चार ने ही योगदान दिया है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Tue, 30 Jul 2019 01:57 PM (IST)Updated: Tue, 30 Jul 2019 01:57 PM (IST)
सरकार की बढ़ी मुश्किल, डॉक्टर नहीं आना चाह रहे सरकारी अस्पताल Jamshedpur news

जमशेदपुर, जासं।  पूर्वी सिंहभूम जिले के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर नहीं आना चाह रहे हैं। कोल्हान प्रमंडल के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल में कुल 33 सीनियर डॉक्टरों की नियुक्ति की गई है, लेकिन इनमें सिर्फ चार ने ही अबतक योगदान दिया है। शेष अब तक नहीं आए हैं। वहीं एक मनोचिकित्सक डॉक्टर की भी नियुक्त हुई है, लेकिन वह अधिकांश समय रांची में ही रहते हैं। उनके नहीं रहने से मानसिक मरीजों को बिना इलाज कराए ही लौटना पड़ता है।

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विभाग द्वारा नियुक्त किए गए चिकित्सकों के योगदान नहीं देने से सरकार की मुश्किलें बढ़ गई है। इससे पूर्व भी एमजीएम अस्पताल में 21 सीनियर रेजीडेंट डॉक्टरों की नियुक्ति हुई थी। इसमें सिर्फ नौ डॉक्टर ने ही योगदान दिया था। इससे एमजीएम अस्पताल में चिकित्सकों की कमी बनी हुई है और मेडिकल कॉलेज की मान्यता भी खतरें में है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) ने कॉलेज में प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर, ट्यूटर, रेजीडेंट सहित अन्य कमियां होने के कारण एमबीबीएस की सीटें 100 से घटकर 50 कर दी हैं। अब एमजीएम कॉलेज सह अस्पताल को फिर से 100 सीट की मान्यता के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। 

जूनियर के लिए मजबूरी तो सीनियर ढूंढते बेहतर विकल्प

एमजीएम मेडिकल कॉलेज से हर साल 50 छात्र पढ़ाई कर निकलते हैं। इनमें से करीब 20 डॉक्टर पीजी की पढ़ाई करने के लिए तत्काल दूसरे प्रदेशों में निकल जाते है। वहीं शेष जूनियर डॉक्टर के पद पर योगदान देते हैं लेकिन ये भी कुछ महीनों के बाद पढ़ाई के सिलसिले में पलायन कर जाते हैं। जूनियर डॉक्टरों का कहना है कि अगर उन्हें जमशेदपुर में ही पीजी की पढ़ाई करने को मिले तो वह बाहर क्यों जाएंगे? इससे चिकित्सकों की कमी भी दूर हो सकेगी। वहीं रेजीडेंट डॉक्टरों को बेहतर विकल्प मिलते ही वह सरकारी नौकरी छोड़ दूसरे प्रदेश या फिर निजी अस्पतालों में योगदान देते हैं। एमजीएम मेडिकल कॉलेज में नियुक्ति किए गए रेजीडेंट डॉक्टरों की वेतन काफी कम है। उनका प्रतिमाह का वेतन करीब साठ हजार रुपये है। इसके साथ ही तीन साल अनुबंध है। तीन साल के बाद सरकार उन्हें किसी भी प्रखंड में चिकित्सा प्रभारी बनाकर भेज सकती है। चिकित्सकों का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर दो कारणों से आते है। एक सिखने और दूसरा सेवा करने को। यहां संसाधन के अभाव के कारण कुछ भी नहीं किया जा सकता है। हर साल जूनियर-सीनियर मिलाकर करीब 30 से अधिक डॉक्टर पलायन करते हैं।

रिटायर्ड प्रोफेसरों से भरे जा रहे पद

एमजीएम मेडिकल कॉलेज की मान्यता बचाने के लिए रिटायर्ड प्रोफेसरों से रिक्त पद भरे जा रहे हैं। वर्तमान में प्रोन्नति देकर कुल सात को अनुबंध पर प्रोफेसर बनाया गया है। इन चिकित्सकों को 70 वर्ष तक पढ़ाने का मौका मिलेगा। लेकिन इन्हें हर साल अपना मेडिकल फिटनेस सार्टिफिकेट जमा करना होगा। 

कारण को जानने की जरूरत

एमजीएम में चिकित्सक, स्वास्थ्य कर्मियों की कमी व नियुक्त किए जाने के बावजूद डॉक्टर योगदान नहीं दे रहें हैं तो यह चिंता का विषय है। नियुक्त किए गए चिकित्सक योगदान क्यों नहीं दे रहें, उसके कारण को जानने की जरूरत है और उसे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।

- सरयू राय, मंत्री, खाद्य-आपूर्ति विभाग।

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