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रासायनिक रंगों के दौर में सिंदूरी लाल पलाश के फूल से बने रंग की डिमांड, खास है वजह

होली का त्योहार हो और सिंदूरी लाल पलाश या टेसू के फूल का जिक्र न हो ऐसा संभव नहीं है।रासायनिक रंगों के दौर में भी सिंदूरी लाल पलाश से बने रंग की काफी डिमांड है।

By Edited By: Published: Fri, 15 Mar 2019 07:00 AM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 11:49 AM (IST)
रासायनिक रंगों के दौर में सिंदूरी लाल पलाश के फूल से बने रंग की डिमांड, खास है वजह
रासायनिक रंगों के दौर में सिंदूरी लाल पलाश के फूल से बने रंग की डिमांड, खास है वजह

जमशेदपुर [दिलीप कुमार]। होली का त्योहार हो और सिंदूरी लाल पलाश या टेसू के फूल का जिक्र न हो ऐसा संभव ही नहीं है। जी हां, रासायनिक रंगों के दौर में भी सिंदूरी लाल पलाश से बने रंग की काफी डिमांड है। इसकी खास वजह भी है।

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होली रंगों का त्योहार है। रंगों के इस त्योहार में सिंदूरी लाल पलाश या टेसू के फूलों का प्रयोग लंबे समय से रंग बनाने के लिए किया जाता है। जिससे लोग होली खेलते थे। वर्तमान में रासायनिक रंगों की सुलभता ने भले ही लोगों को प्रकृति से दूर कर दिया हो, लेकिन रासायनिक रंगों से होने वाले नुकसान और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के कारण लोग दोबारा प्रकृति की ओर रुख करने लगे हैं।

बढ़ती रोग प्रतिरोधक क्षमता

ग्रामीण इलाकों में कुछ वर्ष पूर्व तक पलाश के फूल से बने रंगों से होली खेली जाती थी, क्योंकि इस रंग से त्वचा को कोई नुकसान नहीं होता है। पलाश के फूल का जिक्र साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में किया है, वहीं होली के दौरान गाए जाने वाले गीतों में भी पलाश या टेसू के फूल का जिक्र मिलता है। कवियों ने अपनी कविताओं में भी पलाश के फूलों का गुणगान किया है। साथ ही इसके असीमित औषधीय गुण शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। वर्तमान समय में भी पटमदा, ईचागढ और बंगाल के कुछ भागों में पलाश के फूल से रंग तैयार किया जाता है। पलाश के फूल से बने प्राकृतिक रंग से लोग होली खेलते हैं। प्राचीन काल में इसके फूलों का इस्तेमाल कपड़ों को रंगने के लिए किया जाता था। पलाश के फूल से बने रंग से होली खेलने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है। पलाश के फूल को पीसकर चिकन पॉक्स के रोगियों को भी लगाया जाता है।

ऐसे बनते हैं पलाश के फूल से रंग

पलाश के फूल से कई विधियों से रंग बनाया जाता है। फूल से रंग बनाने के लिए पहले फूल को छाया में सुखाया जाता है। सूखे फूलों को दो से तीन लीटर पानी में डालकर दो से तीन दिन तक के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद पानी का रंग लाल या सिंदूरी हो जाता है। इस रंगीन पानी का इस्तेमाल सुरक्षित होली खेलने के लिए किया जा सकता है। दूसरे तरीके से पलाश के फूल को पेड़ से तोड़कर मिट्टी के हंडी में दो से तीन दिनों तक रखा जाता है, इसके बाद इससे रंग निकल आता है, जो काफी गहरा होता है। वहीं कुछ लोग फूल को पानी में उबाल कर रंग निकालते हैं। रंग में चुना मिला देने से पलाश के फूल से बना रंग कपड़ों से नहीं छूटता है।

पलाश एक फायदे अनेक

झारखंड का राजकीय फूल पलाश इन दिनों शहर से सटे दलमा पहाड़ की सुंदरता बढ़ा रहा है। शहर से निकलते ही पलाश के पेड़ों पर लाल व पीले रंग के फूल खिले नजर आने लगते हैं, जो आखों को अलग ही सुकून देती है। पलाश के फूलों के अनगिनत फायदे हैं। इसलिए इसे ब्रह्मवृक्ष भी कहा जाता है। इसके कई औषधीय गुण हैं। पलाश के फूल ही नहीं बल्कि इसके पत्ते, टहनी, फल और जड़ का आयुर्वेदिक महत्व है। आयुर्वेद के अनुसार, रंग बनाने के अलावा इसके फूलों को पीसकर चेहरे पर लगाने से चमक बढ़ती है। इसकी फलिया कृमिनाशक का काम करती हैं।


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