डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के हो गए 20 वर्ष Jamshedpur News
डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 20 अक्टूबर 1999 को बिहार विधानसभा में नया कानून बना था। अधिनियम को लागू कराने का श्रेय शहर के प्रेमचंद को भी जाता है।
वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर : 'डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम' 20 अक्टूबर 1999 को बिहार विधानसभा ने पारित हुआ था। सती प्रथा के बाद यह देश का दूसरा कानून था जो अंधविश्वास के खिलाफ बना था। इसके बाद यह कानून देश के छह राज्यों में लागू हो चुका है, जबकि नौ राज्य बचे हैं।
इसे लागू कराने का श्रेय शहर के प्रेमचंद को जाता है, जो इस प्रथा के खिलाफ आज तक संघर्ष कर रहे हैं। प्रेमचंद कहते हैं कि जो समाज नारी की पूजा करता है। वही समाज अपनी महिलाओं के साथ इतना घिनौना व्यवहार कैसे कर सकता है, जो सभ्य समाज को मुंह दिखाने के लायक भी नहीं छोड़े। यह बात हर किसी को सोचने पर मजबूर कर सकती है, करती भी है। इसके बावजूद अधिकांश लोग इसे नियति का खेल समझकर या विरोध के डर से आंखें मूंद लेते हैं। उन्होंने ना केवल डायन प्रथा के नाम पर महिलाओं को शोषण से मुक्त कराने का बीड़ा उठाया, बल्कि आठ वर्षो तक संघर्ष के बाद सती प्रथा के बाद अंधविश्वास के खिलाफ देश में दूसरा कानून लागू कराने में सफल भी हो गए। प्रेमचंद बताते हैं उनके मन में आदिवासी महिलाओं के शोषण की बात तब आई, जब आपातकाल (इमरजेंसी) के दौरान पुलिस से छिपने के लिए बनारस से जमशेदपुर आ गए थे।
उन्होंने बाजार में एक व्यक्ति आदिवासी महिला से दातून खरीदने के दौरान झगड़ पड़ा। उन्होंने जब इसका विरोध किया, तो उस व्यक्ति ने उन्हें पीट दिया। उन्होंने देखा कि उनसे ज्यादा वह दातून बेच रही महिला सहम गई थी। उन्हें लगा कि इनके लिए कुछ करना चाहिए। इस घटना के करीब 14 वर्ष बाद वर्ष 1991 में अखबारों में खबर छपी 'करनडीह की एक महिला को डायन बताकर उसके पति व बेटे की हत्या कर दी गई। उस महिला को गांव से निकाल दिया गया। इस घटना ने उन्हें झकझोर दिया।
उनकी अगुवाई में फ्री लीगल एड कमेटी (फ्लैक) ने घटना की रिपोर्ट मानवाधिकार आयोग को भेजी। आयोग ने दो लोगों को जांच के लिए भेजा भी, लेकिन उनकी रिपोर्ट के आधार पर आयोग का जवाब आया कि डायन प्रथा जैसी कोई बात नहीं है। इसी बीच वर्ष 1995 में सरायकेला-खरसावां स्थित कुचाई में डायन के नाम पर एक ही परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी गई। एक बच्ची बच गई, जिसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया। उसमें सिंहभूम के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने मदद की, जिससे हम बिहार विधानसभा से इस प्रथा के खिलाफ कानून बनाने में कामयाब हुए। इसमें पटना व रांची के पत्रकारों ने भी काफी साथ दिया।