कोरोना ने तोड़ दी 98 वर्ष से चली आ रही परंपरा
कुंभकरण मेघनाथ और रावण वध पर गूंज उठती थी तालियों की गड़गड़ाहट
जास, जमशेदपुर : नवरात्रि के दौरान जहां शाम ढलते ही लोगों का होता था जुटान, जहां कुंभकरण, मेघनाथ और रावण वध पर गूंज उठती थी तालियों की गड़गड़ाहट, जहां राम के वनवास जाने के वक्त आंखों से छलक जाते थे आंसू की धार, जहां हरएक किरदार के अभिनय का मिलता था त्वरित प्रतिक्रिया, आज वो स्थान वीरान है। शाम होने पर ना लोगों की जुटान ना कोई उल्लास। हम बात कर रहे हैं नवरात्रि पर होने वाले रामलीला की। साकची बाजार से सटे काशीडीह के रामलीला मैदान में नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक लोग शाम होते ही जुटने लगते थे और आधी रात के बाद ही उठते थे। कभी-कभी तो रामलीला भोर तक चलती थी। इस साल कोरोना महामारी के कारण रामलीला का मंचन नहीं हो रहा है। 98 वर्षो से चला आ रहा रामलीला के मंचन का सिलसिला इस वर्ष टूट गया।
रामलीला के आयोजन नहीं होने पर आयोजक मंडली के साथ इसके चाहने वाले भी मायूस हैं। कोरोना को लेकर सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन के कारण इस वर्ष रामलीला का मंचन नहीं हो पाया। 1922 से अबतक पहली बार ऐसा हुआ कि नवरात्रि के दौरान रामलीला का मंचन नहीं हो रहा है। श्रीश्री रामलीला उत्सव समिति के महासचिव मुन्ना बाबू गुप्ता बताते हैं कि आपातकाल के दौरान भी रामलीला का मंचन हुआ था। समिति के सचिव मुन्ना बाबू गुप्ता बताते हैं कि रामस्नेही मिश्र का निधन 1985 में हो गया। इसके बाद रामफल मिश्र समिति के अध्यक्ष और वे महासचिव बने। शुरू से ही रामफल मिश्र के कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे मुन्नाबाबू बताते हैं कि रामलीला के आयोजन में शहर के तमाम समाजसेवी साथ देते हैं। टेलीविजन आने के बाद से ही इसका क्रेज कम हो गया। अब तो मोबाइल ने नाटक-थियेटर को चौपट ही कर दिया है। खुले मैदान में रात भर बैठकर रामलीला देखने वाले कम ही लोग हैं, लेकिन मिश्र परिवार का जुनून ही है, जो इसे जारी रखे हुए है।
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कोरोना ने तोड़ दी विरासत में मिली परंपरा
वैसे दुर्गापूजा का नाम लेते ही ज्यादातर लोगों के जेहान में भव्य पूजा पंडाल, मूर्तियों और मेला की तस्वीर उभरती है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें नवरात्रि पर रामलीला का इंतजार रहता है। कुछ जुनूनी लोगों के दम पर रामलीला आज भी हो रही हैं लेकिन, आयोजन के पैसे से लेकर दर्शक तक जुटाने में रामलीला समितियों को अच्छी-खासी मशक्कत करनी पड़ती है। रामलीला उत्सव समिति के महासचिव मुन्ना बाबू गुप्ता बताते हैं कि रामलीला के आयोजन में शहर के कुछ व्यासायी सहयोग करते हैं। धालभूम के अनुमंडल पदाधिकारी बहादुर प्रसाद ने 1997 में रामलीला मैदान में चबूतरे का निर्माण कराने में सहयोग किया था। अब धीरे-धीरे मैदान का आकार छोटा होता जा रहा है। रामलीला के अलावा अन्य किसी प्रकार का आयोजन नहीं होने के कारण मैदान का नाम रामलीला मैदान पड़ा है। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ वर्षो से रीवा मध्यप्रदेश से रामलीला मंडली को बुलाया जा रहा था। उनके टीम की प्रस्तुति बेहतर होने के कारण लोगों को रामलीला देखने में भी आनंद आता है। पहले यहां सीवान, छपरा, सहरसा, चित्रकूट, कोलकाता आदि स्थानों से रामलीला मंडली को बुलाया जाता था। उन्होंने बताया कि अब रामलीला की पहले जैसी लोकप्रियता नहीं है लेकिन, मिश्रा परिवार पूरी श्रद्धा से इसका आयोजन कराता है।
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रामस्नेही मिश्र ने 1922 में शुरू किया था रामलीला का मंचन
साकची के काशीडीह रामलीला मैदान में होने वाली रामलीला की शुरुआत रामस्नेही मिश्र ने 1922 में की थी। उस वक्त आपस में कुछ लोग रामलीला का मंचन करते थे। धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ता गया और यहां दूर-दूर से कलाकार आकर इसमें अपनी भूमिकाएं निभाने लगे। वहीं दर्शक भी रामलीला देखने दूर-दूर से आते थे। लौहनगरी का रामलीला किसी जमाने में छोटानागपुर और संतालपरगना इलाके की इकलौती बड़ी रामलीला थी। रामस्नेही के निधन के बाद अब पूरा मिश्र परिवार उनकी विरासत को आगे बढ़ाने में जुटा है। इस काम में अब मिश्र परिवार की तीसरी-चौथी पीढ़ी के कई लोग जुटे हैं। फिलहाल रामस्नेही मिश्र के पौत्र मनोज मिश्र आयोजन समिति के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। श्रीश्री रामलीला उत्सव समिति के वर्तमान अध्यक्ष रामफल मिश्र, कार्यकारी अध्यक्ष मनोज कुमार मिश्र, महासचिव मुन्ना बाबू गुप्ता और कोषाघ्यक्ष रामकेवल मिश्र हैं।