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मुर्गा लड़ाई, यहां इंसानों के मनोरंजन के लिए लड़ रहे बेजुबान

जीतने वाले मुर्गों के मालिक एलइडी टीवी से लेकर सोने की अंगूठी तक जीत रहे हैं।

By Sachin MishraEdited By: Published: Mon, 15 Jan 2018 05:16 PM (IST)Updated: Mon, 15 Jan 2018 05:34 PM (IST)
मुर्गा लड़ाई, यहां इंसानों के मनोरंजन के लिए लड़ रहे बेजुबान

जमशेदपुर, जेएनएन। मकर संक्रांति पर झारखंड में मुर्गा लड़ाई की परंपरा है, जिसमें झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री दुलाल भुइयां बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। वह इस बार भी स्वर्णरेखा नदी के तट पर मुर्गा लड़ा रहे हैं। दुलाल भुइयां झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व वाली सरकार में भूमि सुधार व राजस्व मंत्री थे, अभी कांग्रेस में हैं।

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भुइयांडीह में इस बार भी मुर्गा लड़ाई की प्रतियोगिता हो रही है, जिसमें झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल से सैकड़ों प्रतिभागी भाग ले रहे हैं। जीतने वाले मुर्गों के मालिक एलइडी टीवी से लेकर सोने की अंगूठी तक जीत रहे हैं। यह प्रतियोगिता करीब एक सप्ताह तक चलेगी। 

इंसानों के मनोरंजन को लड़ रहे हैं बेजुबान

शुक्रवार को भुइयांडीह मैदान में टुसू मेले में पारंपरिक मुर्गा पाड़ा का आयोजन किया गया। जिसमें लोगों ने मनोरंजन तो किया ही साथ आपस में शर्त भी लगाई, लेकिन इंसानों के इस मनोरंजन के लिए कई मुर्गों को जान गंवानी पड़ी। इस दौरान झारखंड के पूर्व मंत्री दुलाल भुइयां ने भी मुर्गा लड़ाई का आनंद लिया।

गौरतलब है कि मुर्गा लड़ाई देखने में बेहद रोचक होती है। गांव और कस्‍बों में अभी तक यह मनोरंजन का हिस्‍सा है। झारखंड के बाजारों और मेलों में मुर्गा लड़ाई का खास आयोजन किया जाता है। कई जगह प्रतियोगिता आयोजित होती है।

ऐसे दिया जाता है प्रशिक्षण

मुर्गों को खास तौर पर लड़ने के लिए न केवल प्रशिक्षण दिया जाता है, बल्कि उसके खान-पान पर भी खास ध्यान दिया जाता है। झारखंड के लोहरदगा, गुमला, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सिमडेगा सहित कई जिलों में इस लड़ाई को आदिवासियों की संस्कृति से जोड़कर देखा जाता है। मुर्गा लड़ाई के लिए कई क्षेत्रों में मुर्गा बाजार भी लगाया जाता है।

पहले मुर्गा लड़ाई मनोरंजन का हिस्सा हुआ करता था, जहां लोग अपने पसंद के मुर्गों पर दांव भी लगाते थे। अब इस लड़ाई के नाम पर जुआ शुरू हो गया है। इस लड़ाई से आदिवासी संस्कृति की पहचान गुम होती जा रही है।

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